द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
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लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतरधार्मिक जोड़े द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होती है. अपनी याचिका में मुस्लिम महिला और उसके हिंदू पार्टनर ने उनके परिवार के सदस्यों को उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की थी.
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक 17 वर्षीय मुस्लिम लड़के की याचिका को ख़ारिज कर दी जिसमें आपराधिक मुकदमे से संरक्षण की मांग की थी. यह मुक़दमा उनकी 19 वर्षीय हिंदू लिव-इन पार्टनर के परिवार द्वारा दायर किया गया था. कोर्ट ने कहा कि 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चा माना जाता है और कोई बच्चा लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता.
राज्यसभा में केंद्र सरकार ने लिव इन संबंधों को पंजीकृत करने के लिए कोई व्यवस्था शुरू करने और ऐसे रिश्तों में रहने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करने के बारे में पूछे गए एक सवाल का उत्तर देते हुए कहा कि लिव-इन संबंध, जो विवाह की प्रकृति के होते हैं, घरेलू हिंसा क़ानून के प्रावधानों के अंतर्गत आते हैं.
महाराष्ट्र सरकार ने अंतरजातीय और अंतरधार्मिक शादी करने वाले दंपति और इस तरह के विवाह के बाद परिवार से अलग हुई महिलाओं व उनके परिवार के बारे में जानकारी जुटाने के लिए एक समिति बनाई है. एनसीपी ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सरकार को लोगों के निजी जीवन की जासूसी करने का कोई हक़ नहीं है.
जबलपुर के एक व्यक्ति ने एक याचिका में कहा था कि उन्होंने महाराष्ट्र की एक हिंदू महिला से शादी की और महिला ने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म अपनाया पर उनके माता-पिता ने जबरन उन्हें ले जाकर क़ैद कर लिया. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उन्हें साथ रहने की इजाज़त देते हुए कहा कि बिना किसी दबाव के साथ रहने के इच्छुक बालिगों के मामले में किसी तरह की नैतिक पुलिसिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती.
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 16 दिसंबर को दिए आदेश में कहा कि दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और उन्हें अपने परिवार के विरोध के बावजूद अपना जीवनसाथी चुनने का मौलिक अधिकार है.
कोर्ट ने दो अंतरधार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप मामलों की सुनवाई के दौरान कहा कि इसे सामाजिक नैतिकता के नज़रिये से नहीं, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन जीने के अधिकार से मिली निजी स्वायत्तता के नज़रिये से देखा जाना चाहिए. दोनों मामलों में आरोप है कि लड़कियों के परिजन उनके दैनिक जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं.
झुंझुनू ज़िले में पति से अलग रहने वाली एक महिला और अविवाहित शख़्स ने संयुक्त रूप से हाईकोर्ट में याचिका दायर कहा था कि उनके लिव-इन संबंध में रहने की वजह से उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं इसलिए उन्हें पुलिस सुरक्षा दी जाए. अदालत ने इससे इनकार कर दिया.
याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ बर्ख़ास्तगी का आदेश इस आधार पर पारित किया गया था कि शादीशुदा होने के बावजूद वह एक अन्य महिला के साथ लिव-इन में रह रहे हैं. कहा गया था कि यह आचरण उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियम, 1956 के प्रावधानों और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के भी ख़िलाफ़ है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उन याचिकाकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा देते हुए की, जो साथ रहना चाहते थे और बाद में उन्होंने विवाह कर लिया. इससे पहले लिव-इन में रहने वाले एक दंपति की सुरक्षा की मांग वाली याचिका अदालत ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि महिला पहले से विवाहित थीं.
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही 17 साल की लड़की और 20 साल के लड़के को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देते हुए कहा है कि उत्तर भारत में ख़ासकर हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में ‘ऑनर किलिंग’ की घटनाएं होती रहती हैं, ऐसे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी राज्य की है.
पिछले महीने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे युवक-युवती को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कहा था कि यह नैतिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं है. शीर्ष अदालत ने इस आदेश को ख़ारिज करते हुए पुलिस से याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा देने को कहा है.