यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) का गठन 1964 में हुआ था. यह भारतीय क्षेत्र के भीतर और बाहर दोनों जगह से काम कर रहा है. यह उन आठ मेईतेई चरमपंथी संगठनों में से एक है, जिन्हें गृह मंत्रालय ने आतंकवाद विरोधी क़ानून, ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत ग़ैर-क़ानूनी संगठन घोषित किया है.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने निर्णय लिया है कि मणिपुर के हिंसा प्रभावित क्षेत्रों के चार मेडिकल कॉलेजों के सभी विस्थापित छात्रों को चुराचांदपुर मेडिकल कॉलेज में ऑनलाइन कक्षाएं या हाइब्रिड मोड में कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति दी जाएगी. एनएमसी ने कहा कि उपरोक्त अनुमति मणिपुर में असाधारण स्थिति को ध्यान में रखते हुए दी गई है.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला एवं जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि शवों को अनिश्चितकाल तक मुर्दाघर में नहीं रखा जा सकता. अदालत में दी गई दलीलों के अनुसार, 88 पहचाने गए शव मुर्दाघर में हैं, जिन पर उनके परिजनों ने दावा नहीं किया है. छह शवों की कथित तौर पर पहचान नहीं हुई है.
मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद बीते 3 मई से मोबाइल इंटरनेट पूरी तरह या आंशिक रूप से निलंबित कर दिया गया है. बीते सितंबर महीने में इंटरनेट को तीन दिनों के लिए बहाल किया गया था, लेकिन फिर से प्रतिबंध लागू कर दिया गया.
मणिपुर के कांगपोकपी ज़िले में 20 नवंबर को हुई हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के दो व्यक्तियों की गोली लगने से मौत हो गई. वहीं, आदिवासी एकता समिति ने कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों पर हमले की निंदा करते ज़िले में ‘आपातकालीन बंद’ की घोषणा की है.
पूर्वोत्तर राज्यों के मामलों की सुनवाई करने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष जस्टिस अरुण कुमार ने कहा कि मणिपुर हिंसा में एक विशेष तारीख तक 180 लोग मारे गए थे, लेकिन 93 लोगों को ही 10 लाख रुपये का मुआवज़ा मिला है. चार सप्ताह के भीतर सरकार सभी को मुआवज़ा जारी करे.
मणिपुर में कुकी-ज़ो लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने तेंगनौपाल, कांगपोकपी और चुराचांदपुर ज़िलों में ‘स्व-शासन’ की घोषणा की है. आईटीएलएफ के एक नेता ने कहा कि हमें ‘मेईतेई मणिपुर सरकार’ से कोई उम्मीद नहीं है और अगर केंद्र हमें मान्यता नहीं देता है तो हमें कोई परवाह नहीं है.
मणिपुर में 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसे 23 सितंबर को कुछ समय के लिए बहाल किया गया था, लेकिन 26 सितंबर को दो लापता युवाओं के शवों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों के मद्देनज़र फिर से प्रतिबंध लगा दिया गया.
बीते 27 सितंबर को मणिपुर सरकार ने पहाड़ी इलाकों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को छह महीने का विस्तार दे दिया था, जबकि इंफाल घाटी के 19 थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. कुकी, ज़ोमी और नगा जनजातियों के शीर्ष निकायों ने इस क़दम को ‘दमनकारी’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ क़रार दिया है.
मणिपुर में इंटरनेट पर प्रतिबंध को आगे बढ़ाए जाने के साथ ही इंफाल पूर्वी और इंफाल पश्चिमी ज़िले से हिंसा और आगज़नी की ख़बरें आई हैं. इंफाल पूर्व में जहां एक महिला की गोली मारकर हत्या कर दी गई है, वहीं इंफाल पश्चिम में उपद्रवियों ने तीन ख़ाली खड़े ट्रकों को आग के हवाले कर दिया.
मणिपुर में हिंसा के बीच सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी एक सर्कुलर में कहा गया है कि उन सभी कर्मचारियों पर 'काम नहीं, वेतन नहीं' नियम लागू किया जा सकता है जो अधिकृत अवकाश के बिना अपनी आधिकारिक ड्यूटी पर नहीं पहुंच रहे हैं.
मणिपुर हाईकोर्ट के 27 मार्च के विवादास्पद आदेश पर मेईतेई ट्राइब्स यूनियन ने समीक्षा याचिका दायर करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक किसी भी समुदाय को एसटी में शामिल करना या बाहर करना संसद और राष्ट्रपति का विशेषाधिकार है, हाईकोर्ट का आदेश इसका पालन नहीं करता है. इस बीच, उच्च न्यायालय ने राज्य में सीमित इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं.
मणिपुर मानवाधिकार आयोग ने एक आदेश में कहा है कि हिरासत अवधि समाप्त होने के बाद भी राज्य की जेलों में रखे गए म्यांमार के शरणार्थियों को तत्काल रिहा किया जाए और राज्य सरकार उन्हें उनके देश निर्वासित करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री के समक्ष यह मामला उठाए.
मणिपुर में जारी हिंसा के संबंध में पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के विभिन्न महिला संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि मणिपुर और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में चल रहे विभिन्न संघर्षों का मूल कारण सदियों का उपनिवेशवाद, हाशिए पर रखा जाना, उपेक्षा, भेदभाव, सुशासन की कमी, सैन्यीकरण, शस्त्रीकरण और इस क्षेत्र का अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध के एक मार्ग के रूप में दुरुपयोग किया जाना है.
मणिपुर हाईकोर्ट द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बेदख़ली अभियान पर इसी अदालत के 2020 में दिए यथास्थिति के आदेश को रद्द करने के कुछ दिनों बाद चर्चों को ध्वस्त कर दिया गया. इंफाल पूर्वी ज़िले में ध्वस्त की गईं तीन चर्चों में से एक 1974 से अस्तित्व में थी. राज्य की 41 प्रतिशत से अधिक आबादी ईसाई है.