हाल ही में रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को ज़मानत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट एवं ज़िला न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे बेल देने पर जोर दें, न कि जेल भेजने में. सवाल ये है कि क्या ख़ुद शीर्ष अदालत हर एक नागरिक पर ये सिद्धांत लागू करता है या फिर रसूख वाले और सत्ता के क़रीबी लोगों को ही इसका लाभ मिल पा रहा है?
बीते आठ अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने टीआरपी से छेड़छाड़ करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ करने का दावा किया था. मुंबई के पुलिस आयुक्त ने दावा किया था कि रिपब्लिक टीवी सहित कुछ चैनलों ने टीआरपी के साथ हेराफेरी की है.
शहला राशिद, उनकी मां ज़ुबेदा अख़्तर और बहन अस्मा राशिद ने यह कहते हुए मुक़दमा दायर किया था कि उनके पिता अब्दुल राशिद शोरा झूठे और तुच्छ आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को कम करने का काम कर रहे हैं, जिसमें उन्हें राष्ट्रविरोधी कहना तक शामिल है. प्रतिवादियों में अब्दुल, कुछ मीडिया आउटलेट्स, फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और गूगल शामिल हैं.
पुलिस के अनुसार हमले में कोई पत्रकार घायल नहीं हुआ है. वहीं राज्य के एक मीडिया संगठन का कहना है कि यह हमला अचानक हुई घटना नहीं है बल्कि सितंबर में मुख्यमंत्री बिप्लब देब के मीडिया को कथित तौर पर धमकाने के बाद राज्य भर में पत्रकारों पर हुए लगातार हमलों का हिस्सा है.
दहेज हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी की ज़िम्मेदारी होती है कि वो निष्पक्ष जांच करे, लेकिन ये काम पूरी ईमानदारी से नहीं किया जा रहा है, जिसके कारण मीडिया में कई जानकारियां चुनिंदा तरीके से लीक कर दी जाती हैं.
बीते आठ अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने टीआरपी से छेड़छाड़ करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ करने का दावा किया था. आरोप है कि जिन घरों में लगे बार ओ मीटर से टीआरपी मापी जाती है, उन्हें ‘बॉक्स सिनेमा’, ‘फ़क्त मराठी’, ‘महा मूवी’ और ‘रिपब्लिक टीवी’ जैसे चैनल चलाने के लिए पैसे दिए गए थे. इस मामले में अब तक 14 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.
ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल के रिपब्लिक समेत कुछ चैनलों द्वारा टीआरपी में गड़बड़ी का आरोप लगाने के बाद पुलिस ने इस कथित घोटाले की जांच शुरू की थी. अब तक इस मामले में रिपब्लिक के पश्चिमी क्षेत्र वितरण प्रमुख और दो अन्य चैनलों के मालिकों समेत 13 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.
पत्रकारिता और देशभक्ति का साथ विवादास्पद है. देशभक्ति अक्सर सरकार के पक्ष का आंख मूंदकर समर्थन करती है और फिर प्रोपगेंडा में बदल जाती है. आज सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर अपना प्रोपगेंडा फैलाने की कला में पारंगत हो चुकी है और जिन पत्रकारों पर सच सामने रखने का दारोमदार था, वही इसमें सहभागी हो गए हैं.
बीते 26 नवंबर को गुजरात के राजकोट शहर के एक कोविड-19 अस्पताल के आईसीयू में आग लगने से पांच मरीज़ों की मौत हो गई थी. गुजराती के दिव्य भास्कर ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया था कि अस्पताल में आग लगने के संबंध में गिरफ़्तार तीन लोगों को वीआईपी सुविधाएं मुहैया कराई गईं.
रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को 2018 में हुए एक इंटीरियर डिज़ाइनर और उनकी मां की आत्महत्या से जुड़े मामले में अलीबाग पुलिस ने बीते नवंबर माह में गिरफ़्तार किया था. इस मामले में अब पुलिस ने 1,914 पेजों की चार्जशीट दाख़िल की है.
भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय द्वारा किसानों के विरोध प्रदर्शन की एडिटेड क्लिप ट्वीट किए जाने के एक दिन बाद ट्विटर ने उसे 'मैनीपुलेटेड मीडिया' के तौर पर चिह्नित किया है, जिसका आशय है कि उस ट्वीट में शेयर की गई जानकारी से छेड़छाड़ की गई है.
25 नवंबर को जारी एक मीडिया एडवाइज़री में भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) ने कहा था कि स्रोत दिए जाने के बावजूद भारतीय अखबारों में प्रकाशित विदेशी अख़बारों के कंटेंट के लिए रिपोर्टर, संपादक और प्रकाशक को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने प्रणय और राधिका रॉय को 12 साल पहले इनसाइडर ट्रेडिंग गतिविधियों से अवैध तरीके से कमाए गए 16.97 करोड़ रुपये लौटाने को भी कहा है.
सर्वोच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी मामले में सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट एवं ज़िला अदालतों को निर्देश दिया है कि लंबित ज़मानत याचिकाओं की समस्या का समाधान करने के लिए तत्काल क़दम उठाएं और इस संबंध में अपने फैसलों में जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार को पर्याप्त महत्व दें.
वीडियो: इतनी सारी सामाजिक-आर्थिक मुश्किलों के बीच मीडिया में किसी संकीर्ण धारा की राजनीतिक प्रयोगशाला में गढ़े हुए ‘लव जिहाद’ जैसे शब्द राष्ट्रीय-समाचार और ब्रेकिंग न्यूज़ क्यों बनते हैं? हाल में ‘एयर स्ट्राइक’ की एक फ़र्ज़ी ख़बर काफ़ी देर तक न्यूज़ चैनलों पर क्यों और कैसे चलती रही? इन मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष से वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की बातचीत.