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शाम सात बजे मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा 101 पर जीत चुकी है और 63 सीटों पर आगे है. वहीं कांग्रेस में अब तक 31 सीटें जीती हैं और 34 पर बढ़त बनाए हुए है. एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी आगे है.
मध्य प्रदेश में चौदहवीं विधानसभा (2018-2023) ने भाजपा और कांग्रेस, दो सरकारों को देखा, जहां जनता ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं, दल-बदल तो देखे ही, साथ ही बढ़ती कट्टरता और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को पैठ बनाते देखा. इन पांच सालों के घटनाक्रमों से प्रदेश में भविष्य की राजनीति की दिशा समझी जा सकती है.
विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री समेत सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को उतारा, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भाषण आदि में मौजूदा सीएम का कोई ज़िक्र नहीं हुआ. ऐसे में पार्टी का संभावित मुख्यमंत्री के सवाल पर गोलमोल जवाब देना शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश की राजनीति में भविष्य पर सवाल खड़े करता है.
मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा उम्मीदवारों की दूसरी सूची में तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत 7 सांसदों और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को टिकट मिला है. कई वरिष्ठ नेताओं के चुनाव में उतरने पर कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री चेहरे को बदलने की फिराक़ में है.
मध्य प्रदेश सरकार बीते दिनों पेसा क़ानून लागू करने के बाद से इसे अपनी उपलब्धि बता रही है. 1996 में संसद से पारित इस क़ानून के लिए ज़रूरी नियम बनाने में राज्य सरकार ने 26 साल का समय लिया. आदिवासी नेताओं का कहना है कि शिवराज सरकार के इस क़दम के पीछे आदिवासियों की चिंता नहीं बल्कि समुदाय को अपने वोट बैंक में लाना है.