यह मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी निवासी मोहम्मद फ़ैयाज़ मंसूरी से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अगस्त 2020 को फेसबुक पर बाबरी मस्जिद को लेकर एक पोस्ट लिखा था, जिसके बाद उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ दर्ज चार्जशीट और संज्ञान आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इसके लिए सरकार की अनुमति नहीं ली गई थी. 29 जनवरी 2020 को यूपी-एसटीएफ ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिसंबर 2019 में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में कफ़ील ख़ान को मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ़्तार किया था. वहां वे सीएए विरोधी रैली में हिस्सा लेने गए थे.
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर का मामला. आरोप है कि बीते 19 अगस्त को उज्जैन में मुहर्रम के मौके पर एक कार्यक्रम के दौरान कुछ लोगों ने पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि फ़र्ज़ी ख़बर के आधार पर ‘क़ाज़ी साहब ज़िंदाबाद’ को ‘पाकिस्तान ज़िदाबाद’ बताकर कई लोगों पर मुक़दमे दायर हो गए हैं. मध्य प्रदेश पुलिस को कार्रवाई करने के पूर्व वास्तविकता का पता लगा लेना
बीते 13 जून को सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में बुज़ुर्ग अब्दुल समद सैफ़ी ने ग़ाज़ियाबाद के लोनी इलाके में चार लोगों पर उन्हें मारने, उनकी दाढ़ी काटने और उन्हें ‘जय श्रीराम’ बोलने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था. सपा नेता नेता उम्मेद पहलवान इदरीसी बुजु़र्ग के साथ एक फेसबुक लाइव किया था, जिसके बाद भड़काऊ बयान देने और धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में उन्हें गिरफ़्तार किया गया था.
ये मामला उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले का है, जहां पिछले साल जुलाई में कथित गोहत्या के आरोप में इरफ़ान, रहमतुल्लाह और परवेज़ को गिरफ़्तार किया गया था. ये पहला मौका नहीं है जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के इस्तेमाल पर सवाल उठाया है, जो राज्य को बिना औपचारिक आरोप या सुनवाई के गिरफ़्तारी का अधिकार देता है.
22 जुलाई को जारी की गई अधिसूचना में कहा गया कि दिल्ली पुलिस प्रमुख को यह शक्तियां 19 जुलाई से 18 अक्टूबर 2021 तक के लिए दी गई हैं. दिल्ली पुलिस का कहना है कि यह नियमित आदेश है और इसे सामान्य तौर पर जारी किया जाता है. हालांकि यह आदेश ऐसे समय में आया है जब केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘किसान संसद’ का आयोजन कर रहे हैं.
मणिपुर के कार्यकर्ता एरेन्द्रो लीचोम्बाम पर कोविड-19 संक्रमण के उपचार के तौर पर गौमूत्र एवं गोबर के इस्तेमाल को लेकर भाजपा नेताओं की आलोचना करने पर एनएसए के तहत मामला दर्ज कर गिरफ़्तार किया गया था. ज़मानत मिलने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया गया था. बीते सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी तत्काल रिहाई को आदेश जारी किया था.
मणिपुर के कार्यकर्ता एरेन्द्रो लीचोम्बाम को कोरोना वायरस से मणिपुर भाजपा अध्यक्ष की मौत के संबंध में आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट करने के आरोप में बीते 13 मई को गिरफ़्तार किया गया था. इस पोस्ट में कोविड-19 के इलाज के लिए गोबर तथा गोमूत्र के इस्तेमाल की आलोचना की गई थी. मई महीने में ही उन्हें ज़मानत मिल गई थी, लेकिन उन्हें अब तक रिहा नहीं किया गया है.
पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विरोध के अधिकार को दबाने के लिए हिरासत, आपराधिक आरोप और वसूली का आदेश आम तरीके बन गए हैं. उन्होंने पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की गिरफ़्तारी का भी उल्लेख करते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट और पुलिस सहित यूपी में प्रशासन की सभी शाखाएं ‘ध्वस्त’ हो गई हैं.
बीते दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में मुस्लिम बुज़ुर्ग अब्दुल समद सैफी ने गाज़ियाबाद के लोनी इलाके में चार लोगों पर उन्हें मारने, दाढ़ी काटने और ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए मजबूर करने का आरोप लगाया था. इसके बाद सपा नेता उम्मेद पहलवान इदरीसी ने उनके साथ फेसबुक लाइव किया था.
पिछले हफ़्ते एप्पल डेली ने कर्मचारियों की सुरक्षा एवं भुगतान कर पाने में असमर्थता जताते हुए अख़बार का प्रकाशन/संचालन बंद कर दिया था. एप्पल डेली अक्सर चीन और हांगकांग की सरकार की आलोचना शहर पर नियंत्रण सख़्त करने को लेकर करता रहा है. संपादकीय लेखक फंग वाई कोंग दो हफ़्तों के भीतर गिरफ़्तार किए गए अख़बार के सातवें कर्मचारी हैं. एप्पल डेली के संस्थापक जिम्मी लाय इस समय 20 महीने की सज़ा काट रहे हैं.
हांगकांग पुलिस ने लोकतंत्र समर्थक अख़बार ‘एप्पल डेली’ के प्रधान संपादक और चार अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को विदेशी ताकतों से साठगांठ करने के आरोप में राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत बृहस्पतिवार को गिरफ़्तार कर लिया. पुलिस ने कहा कि उसके पास पुख्ता सबूत हैं कि एप्पल डेली द्वारा प्रकाशित 30 से अधिक आलेखों ने चीन और हांगकांग के ख़िलाफ़ विदेशी ताकतों की साज़िश में ‘अहम भूमिका’ निभाई.
यूपी सरकार द्वारा बीते तीन सालों में दर्ज राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के 120 मामलों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है, जिसमें आधे से अधिक गोहत्या और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े थे. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कोर्ट ने सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़ी सभी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को सुनते हुए एनएसए के आदेश को रद्द कर दिया.
पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि एनएसए लगाने के मामलों में एक ढर्रे का पालन किया जा रहा था, जिसमें पुलिस द्वारा अलग-अलग एफ़आईआर में महत्वपूर्ण जानकारियां कट-पेस्ट करना, मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित डिटेंशन ऑर्डर में विवेक का इस्तेमाल न करना, आरोपी को निर्धारित प्रक्रिया मुहैया कराने से इनकार करना और ज़मानत से रोकने के लिए क़ानून का लगातार ग़लत इस्तेमाल शामिल है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जहां क़ानून ने सत्ता को अत्यधिक शक्ति प्रदान की है कि वे किसी भी व्यक्ति को सामान्य क़ानून के तहत मिले संरक्षण और कोर्ट के ट्रायल के बिना गिरफ़्तार कर सकते हैं, ऐसे क़ानून को इस्तेमाल करते वक़्त बेहद सावधानी बरती जानी चाहिए.