अबकी बार, इवेंट सरकार

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार लिखते हैं,‘ये इवेंट सरकार है. आपको इवेंट चाहिए इवेंट मिलेगा. किसी भी चीज़ को मेक इन इंडिया से जोड़ देने का फन सबमें आ गया जबकि मेक इन इंडिया के बाद भी मैन्यूफैक्चरिंग का अब तक का सबसे ख़राब रिकॉर्ड है.’ ​​​​​​​​

रेल सुरक्षा के लिए 1.1 लाख करोड़ की ज़रूरत, मोदी सरकार ने महज पांच फ़ीसद आवंटित किया

बुलेट ट्रेन को कांग्रेस ने बताया चुनावी परियोजना, कहा- यूपीए की परियोजना को तीन साल बाद गुजरात चुनाव से पहले लाई है मोदी सरकार.

बढ़ते सामाजिक टकराव पर प्रधानमंत्री चुप क्यों?

बढ़ती जातीय और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं प्रधानमंत्री मोदी की विकास के उनके घोषित एजेंडे के अनुकूल नहीं रहीं, लिहाजा देश को अपेक्षा थी कि ऐसी घटनाओं पर मोदी सख्ती से पेश आएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

क्या मोदी सरकार में एक मुसलमान के सामने ज़िंदा बचे रहना ही सबसे बड़ी चुनौती है?

नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले तीन साल के राज में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुसलमानों में असुरक्षा और भय की तीव्र भावना पैदा करने का काम किया.

क्या नए पिछड़ा वर्ग आयोग का लक्ष्य आरक्षण नीति में परिवर्तन लाना है?

राष्ट्रीय सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन से क्या होगा यह सिर्फ मोदी जानते हैं. लेकिन यह तय है कि जाति विषमता पर कुछ करना है तो सिर्फ नाम बदलने से काम नहीं चलेगा.

भाजपा की आलोचना पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा को मिली धमकी

भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा को ईमेल से धमकी दी गई है. धमकी में कहा गया है कि दुनिया बदलने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भगवान महाकाल ने चुना है.

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और फिर उसे चुप कराओ!

अच्छा होता केंद्र सरकार शैक्षिक परिसरों में खुलापन क़ायम करने का प्रयास करती. गुंडा तत्वों, उत्पात मचाने वालों और गुरमेहर को हत्या व रेप आदि की धमकी देने वालों की मुस्तैदी से धरपकड़ की जाती.

बोलते वक़्त मोदी क्यों भूल जाते हैं कि वो देश के पीएम हैं!

वे मुझे मार डालेंगे, मुझे थप्पड़ मार देना’, 'मुझे लात मार कर सत्ता से हटा देना’, 'मुझे फांसी पर चढ़ा देना’, 'मुझे उलटा लटका देना’, 'मुझे चौराहे पर जूते मारना’.... ये सब मोदी क्यों बोलते हैं?

किसी भी प्रधानमंत्री ने मोदी जैसी स्तरहीन भाषा का प्रयोग नहीं किया

सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी भाषिक संयम के लिए नहीं जाने जाते हैं. मोदी की पकड़ भाषा और उसके नाटकीय इस्तेमाल पर कहीं ज़्यादा गहरी है.

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