कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारे लोकतंत्र की एक विडंबना यह रही है कि उसके आरंभ में तो राजनीतिक नेतृत्व में बुद्धि ज्ञान और संस्कृति-बोध था जो धीरे-धीरे छीजता चला गया है. हम आज की इस दुरवस्था में पहुंच हैं कि राजनीति से नीति का लोप ही हो गया है.
जन्मदिन विशेष: मान्यवर कांशीराम के निकट राजसत्ता की चाभी बहुजन हितकारी सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के बंद ताले खोलने का पूरी तरह अपरिहार्य साधन थी और वे मानते थे कि देश की सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्थाओं में बहुजनों को अपरहैंड तभी मिल सकता है, जब यह चाभी उनके पास रहे. इसके इतर स्थिति में जिसके हाथ में यह चाभी रहेगी, उन्हें उसी की धुरी पर नाचते रहना होगा.
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना सोरेन के सार्वजनिक जीवन में आने के बाद यह आकलन शुरू हो गया है कि लोकसभा चुनाव में वे भाजपा के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकती हैं. निगाहें इस ओर भी हैं कि इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में कल्पना क्या झामुमो की खेवनहार बनेंगी.
वीडियो: तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यह बेहद चिंता की बात है कि ज़्यादातर लोग लोकतंत्र में सत्तारूढ़ शक्तियों द्वारा हर दिन की जा रही कटौतियों या ज़्यादतियों को लेकर उद्वेलित नहीं हैं और उन्हें नहीं लगता कि लोकतंत्र दांव पर है. स्थिति यह है कि लगता है कि लोक ही लोकतंत्र को पूरी तरह से तंत्र के हवाले कर रहा है.
क्या वाकई सड़कों पर सभी प्रकार के धार्मिक आयोजनों पर रोक लगा सकते हैं? तब तो बीस मिनट की नमाज़ से ज़्यादा हिंदुओं के सैकड़ों धार्मिक आयोजन प्रभावित होने लग जाएंगे, जो कई दिनों तक चलते हैं. बैन करने की हूक सड़कों के प्रबंधन बेहतर करने की नहीं है, एक समुदाय के प्रति कुंठा और ज़हर उगलने की ज़िद है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2022-23 में छह राष्ट्रीय दलों द्वारा आय के रूप में घोषित 3,076.88 करोड़ रुपये में से 59% से अधिक अज्ञात स्रोतों से आया था. इसमें से चुनावी बॉन्ड से होने वाली आय का हिस्सा 1,510.61 करोड़ रुपये या 82.42% था. इसका बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि राज्य एनआरसी लागू नहीं कर सकता. हमने सदन में प्रस्ताव पारित किया है और मणिपुर में एनआरसी लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए केंद्र सरकार को सिफ़ारिश भेज रहे हैं.
हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा को ऐसे समय में विपरीत परिस्थतियों का सामना करना पड़ा है, जब कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनाव हैं और इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, ऐसी स्थिति में निकाली जा रही झामुमो की 'न्याय यात्रा' को आदिवासी समुदाय का खासा समर्थन मिल रहा है.
विपक्ष की सबसे बड़ी समस्या यह है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अपने आक्रामक हिंदुत्व कहें या बहुसंख्यकवाद की बिना पर समता, बंधुत्व और धर्मनिरपेक्षता जैसे उदार संवैधानिक मूल्यों को आक्रांत कर देश के राजनीतिक विमर्श को इस हद तक बदल दिया है कि हतप्रभ विपक्ष इन मूल्यों की बिना पर उससे जीतने का विश्वास ही खो बैठा है.
मनोहर जोशी 1995 से 1999 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे और अविभाजित शिवसेना से राज्य में शीर्ष पद पर आसीन होने वाले पहले नेता थे. वह संसद सदस्य के रूप में भी चुने गए और 2002 से 2004 तक लोकसभा अध्यक्ष रहे थे. बाद में वह केंद्रीय भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम मंत्री भी बने थे.
वीडियो: पिछले कुछ समय में ऐसे लोग सामने आए हैं, जिनका कहना है कि मुसलमानों को उन्हीं पार्टियों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है, जो ख़ुद को कथित तौर पर धर्मनिरपेक्ष कहते हैं. इस मुद्दे पर हाल ही में कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले महाराष्ट्र के नेता बाबा सिद्दीक़ी और पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री सलीम शेरवानी से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की.
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने कॉरपोरेट मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को उन्हें सौंपने और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाना चाहते थे. इसलिए सबसे पहले उन्होंने 2017 में नियमों को बदल दिया, ताकि उन परियोजनाओं को वैध बनाया जा सके, जिन्होंने वन मंज़ूरी का उल्लंघन किया था.
कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के ख़िलाफ़ दर्ज किए हैं, लेकिन सज़ा की दर सिर्फ़ 1 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि ईडी का इस्तेमाल चरित्र हनन और विपक्ष की आवाज़ को कुचलने के लिए किया जा रहा है. सचिन पायलट ने देश में बेरोज़गारी को लेकर भी सरकार पर हमला बोला.
‘जन विश्वास यात्रा’ की शुरुआत करते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास राज्य के लोगों के लिए कोई दृष्टिकोण नहीं है. उनके पास हमें छोड़कर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में वापस जाने का कोई उचित कारण भी नहीं था. वे जनादेश को अपने पैर की जूती समझते हैं.