मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने चुनाव घोषणापत्रों में वादे करने का अधिकार है और मतदाताओं को यह जानने का अधिकार है कि क्या ये असली हैं और इनकी फंडिंग कैसी होगी.
कर्नाटक के चित्रदुर्ग ज़िले में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने सरकार के मुफ्त में सामान और सुविधा देने के वादों पर सवाल खड़े किए थे, जिसमें कहा गया था कि सरकार की ओर से मुफ्त वादों के चलते राज्य पर हमेशा क़र्ज़ बढ़ जाता है.
निर्वाचन आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को लिखे एक पत्र में कहा है कि वह चुनावी वादों पर अपर्याप्त सूचना और वित्तीय स्थिति पर अवांछित प्रभाव की अनदेखी नहीं कर सकता है, क्योंकि खोखले चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे. सिब्बल के साथ माकपा ने भी इसकी आलोचना की है.
समान नागरिक संहिता 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी वादों में से एक रहा है. केंद्रीय विधि मंत्री किरेन रिजीजू ने लोकसभा में जानकारी दी कि समान नागरिक संहिता को लेकर कुछ रिट याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस संबंध में कोई फैसला नहीं लिया गया है.
असम विधानसभा में बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल जगदीश मुखी के संबोधन के दौरान निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने एक लाख युवाओं को रोज़गार, किसानों से धान की ख़रीद, स्वदेशी मूल के लोगों को ज़मीन का अधिकार देने और जलापूर्ति योजना में भ्रष्टाचार जैसे अन्य मुद्दे उठाने की कोशिश की थी. राज्यपाल के भाषण के बाद उनका निलंबन वापस ले लिया गया.
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने कहा कि नागरिकों की याददाश्त अल्पकालिक होने की वजह से चुनावी घोषणा पत्र कागज के टुकड़े बनकर रह जाते हैं.