प्रबीर पुरकायस्थ-न्यूज़क्लिक के समर्थन में विपक्षी नेता, पत्रकार और नागरिक समाज एकजुट हुए

विदेशी फंडिंग प्राप्त करने के आरोप में बीते छह माह से जेल में बंद न्यूज़क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के समर्थन में एकजुटता व्यक्त करने के लिए राजधानी दिल्ली में आयोजित एक कार्यकर्म में विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और नागरिक समाज के लोगों ने मोदी सरकार पर असहमति की आवाज़ कुचलने और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के हनन का आरोप लगाया.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश- न्यूज़क्लिक के संपादक की मेडिकल जांच के लिए बोर्ड गठित करे एम्स

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने यह भी कहा कि एम्स निदेशक द्वारा नियुक्त बोर्ड जेल रिकॉर्ड और याचिकाकर्ता प्रबीर पुरकायस्थ की पूरी मेडिकल हिस्ट्री पर भी विचार करेगा.

न्यूज़क्लिक पर छापेमारी में 250 इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ज़ब्त किए जाने से पत्रकारों का कामकाज ठप

बीते ​3 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने यूएपीए के तहत दर्ज एक केस के सिलसिले में समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक और इसके कर्मचारियों के यहां छापेमारी की थी. इस दौरान 90 से अधिक पत्रकारों के क़रीब 250 इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ज़ब्त किए गए थे. लगभग एक महीने बाद भी इन्हें वापस नहीं करने से पत्रकारों के लिए काम करना मुश्किल हो गया है.

पत्रकार संगठनों ने मीडिया की स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की मांग की

विभिन्न पत्रकार संगठनों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे पत्र में कहा है कि आज हमारे समुदाय को एक घातक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. पत्रकारों के ख़िलाफ़ कठोर क़ानूनों का उपयोग तेज़ी से बढ़ गया है. ये क़ानून ज़मानत का प्रावधान नहीं करते, इसके तहत कारावास आदर्श है, न कि अपवाद.

वैश्विक निकाय ने ‘न्यूज़क्लिक’ पर कार्रवाई बंद करने और इसके संपादक की रिहाई का आह्वान किया

वैश्विक नागरिक समाज गठबंधन ‘सिविकस’ ने कहा है कि यह भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर पूर्ण हमला है और समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक की आलोचनात्मक और स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रति प्रतिशोध की कार्रवाई है. यूएपीए के तहत इस वेबसाइट पर आरोप लगाना, स्वतंत्र मीडिया, कार्यकर्ताओं और नागरिकों को चुप कराने और परेशान करने का एक बेशर्म प्रयास है.

न्यूज़क्लिक के दफ़्तर और गिरफ़्तार संपादक के घर की तलाशी के लिए पहुंची सीबीआई

न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती फिलहाल दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज यूएपीए मामले में न्यायिक हिरासत में हैं.

न्यूज़क्लिक केस: क़ानून विशेषज्ञों ने यूएपीए के तहत आरोपों को अनुचित बताया

बीते 3 अक्टूबर को न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और इसके एचआर प्रमुख अमित चक्रवर्ती को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार लिया था. उन पर गैरक़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं, लेकिन क़ानून के जानकारों का कहना है कि उन पर कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है, यूएपीए का मामला तो बिल्कुल भी नहीं.

न्यूज़क्लिक पर छापेमारी को पत्रकारों, कलाकारों, शिक्षाविदों ने प्रेस फ्रीडम पर हमला बताया

यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस ने बीते 3 अक्टूबर को समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और प्रशासक अमित चक्रवर्ती को गिरफ़्तार कर लिया था. वर्तमान एफ़आईआर की जड़ें कथित तौर पर बीते अगस्त माह में न्यूयॉर्क टाइम्स में आई एक रिपोर्ट से जुड़ी हुई है.

न्यूज़क्लिक पर हमला: क्या कहता है ‘राजदंड’ का यह निर्मम प्रहार?

देखते ही देखते संविधान व क़ानून दोनों का अनुपालन कराने की शक्तियां ऐसी राजनीति के हाथ में चली गई हैं, जिसका ख़ुद लोकतंत्र में विश्वास बहुत संदिग्ध है और जो निर्मम और अन्यायी होकर उसे अपने कुटिल मंसूबों और सुविधाओं के लिए इस्तेमाल कर रही है.

न्यूज़क्लिक केस: मोदी सरकार ‘टेरर फंडिंग’ पर गंभीर है, तो अमेरिका, चीन से संपर्क क्यों नहीं किया?

न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ दर्ज पुलिस केस के सही-गलत होने की बात न भी करें, तब भी उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता को देखते हुए कथित साज़िशकर्ताओं का पता लगाने और उन पर मुक़दमा चलाने को लेकर मोदी सरकार के रुख़ पर कई सवाल उठते हैं.

सरकार का ​मीडिया को संदेश है कि जो आवाज़ उठाएगा, यूएपीए में बंद कर दिया जाएगा: योगेंद्र यादव

वीडियो: यूएपीए के तहत दर्ज एक मामले में पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस ने बीते 3 ​अक्टूबर को समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और प्रशासक अमित चक्रवर्ती को गिरफ़्तार कर लिया था. इस मामले को लेकर स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव से बातचीत.

क्रोनोलॉजी समझिए: पांच दिन, चार एजेंसियां और निशाने पर विपक्षी नेता, पत्रकार और एक्टिविस्ट्स

अक्टूबर के शुरुआती कुछ दिनों में ही देश के विभिन्न राज्यों में केंद्रीय एजेंसियों के व्यवस्थित 'छापे', 'क़ानूनी कार्रवाइयां', नए दर्ज हुए केस और उन आवाज़ों पर दबाव बनाने के प्रयास देखे गए, जो इस सरकार से असहमत हैं या उसकी आलोचना करते हैं.