पनामा पेपर्स घोटाले का खुलासा करने वाली पत्रकार की हत्या

पत्रकार डेफ्ने कारुआना गालिज़िआ ने माल्टा में पनामा पेपर्स से जुड़े घोटाले को उजागर किया था. उनकी रिपोर्ट में माल्टा के प्रधानमंत्री की पत्नी, चीफ आॅफ स्टाफ और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पर आरोप लगाया गया था.

‘भारत में हिंदुत्ववादी कट्टरपंथियों के कारण मीडिया में सेल्फ सेंसरशिप की प्रवृत्ति बढ़ी’

अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि 2015 से अब तक सरकार की आलोचना करने वाले नौ पत्रकारों की हत्या कर दी गई.

हम भी भारत, एपिसोड 04: जय अमित शाह का जादुई ‘विकास’

हम भी भारत की चौथी कड़ी में आरफ़ा ख़ानम शेरवानी द वायर में जय अमित शाह​ की कंपनी से जुड़ी रिपोर्ट लिखने वाली पत्रकार रोहिणी सिंह, कॉमन कॉज़ संस्था के विपुल मुद्गल और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु के साथ चर्चा कर रही हैं.

सरकार मीडिया उद्योग को मदद करे, पत्रकारों के लिए वेजबोर्ड का कोई तुक नहीं है: आईएनएस

मीडिया मालिकों के संगठन इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी ने कहा, नोटबंदी के कारण विज्ञापनों में कमी आने से अख़बार प्रभावित हुए हैं.

‘जब भी कोई दल बहुमत से सत्ता में होता है, तब प्रेस की आज़ादी पर हमले होते हैं’

वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन ने प्रेस की आज़ादी और लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका द्वारा समर्थित प्रेस और मीडिया को ही एकमात्र उपाय बताया.

‘मीडिया मालिकों ने पत्रकारों को बंधुआ मजदूर बना रखा है’

पत्रकारों के लिए जस्टिस मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफ़ारिश और सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण से बातचीत.

वो मीडिया को उस कुत्ते में बदल रहे हैं जिसके मुंह में विज्ञापन की हड्डी है, ताकि वह उन पर न भौंके

शुक्रवार, 9 जून को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने मीडिया के वर्तमान परिदृश्य पर अपने विचार रखे. पढ़ें उनका पूरा भाषण...

पहले मामूली चूक पर भी संपादक शर्मिंदा होता था, अब पूरी ख़बर फर्ज़ी हो तब भी दांत दिखाकर हंसेगा

वेबसाइट की सफलता के लिए जितना झूठ परोसेंगे, उतना हिट मिलेगा. जितना हिट मिलेगा, उतना विज्ञापन मिलेगा. झूठ का कारोबार आज सच के लिए चुनौती बन गया है.

हमारे न्यूज़ चैनल तू-तू, मैं-मैं पर क्यों उतर आए हैं?

न्यूज़ चैनल हर विषय पर दलीय प्रवक्ताओं की भीड़ क्यों इकट्ठा करना चाहते हैं? क्या वे राजनीतिक दलों, ख़ासकर सत्ताधारी दल को हर मुद्दे पर अपना फोरम मुहैया कर खुश रखने की कोशिश करते हैं?

झूठी ख़बरों पर भरोसा करने के पीछे का विज्ञान

हम अक्सर किसी टिप्पणी या दलील को महज़ इसलिए स्वीकार कर लेते हैं, क्योंकि वे हमारी परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप होती हैं. ऐसा करते वक़्त हम न तो इनके पीछे के तर्कों की परवाह करते हैं, न दावों की प्रामाणिकता जांचने की ज़हमत उठाते हैं.

मोदी के राष्ट्रवाद से भारतीय पत्रकारिता ख़तरे में: रिपोर्ट

प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर अंतर्राष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से किए गए एक अध्ययन में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर है.

क्या हमारे मीडिया को अपनी आलोचना से डर लगने लगा है?

राज्यसभा में चुनाव सुधार पर केंद्रित लंबी चर्चा के दौरान विपक्षी नेताओं ने भारत में मीडिया की अंदरूनी संरचना और उसकी भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए.

संसद में बोले शरद यादव, यह भाषण कोई नहीं छापेगा

राज्यसभा सांसद शरद यादव ने यह भाषण 22 मार्च 2017 को राज्यसभा में दिया. सदन में चर्चा के दौरान अपनी बात रखते हुए शरद यादव ने देश में पत्रकारिता की ​दशा और दिशा पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. पढ़ें पूरा भाषण...

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