राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें एक नाबालिग मुस्लिम लड़की के अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर सकने की बात कही गई थी. आयोग का कहना है कि बाल विवाह पर इसके संभावित प्रभाव और पॉक्सो प्रावधानों को देखते हुए यह एक 'गंभीर मुद्दा' है.
बीते 10 जनवरी को महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले में स्थित अस्पताल की एक महिला डॉक्टर को 13 साल की लड़की का कथित रूप से गर्भपात कराने के मामले में गिरफ़्तार किया गया था. आरोप है कि बलात्कार के बाद गर्भवती लड़की पर आरोपी लड़के के माता-पिता गर्भपात का दबाव बना रहे थे. पुलिस ने मामले में महिला डॉक्टर, लड़के के माता-पिता समेत पांच लोगों को गिरफ़्तार किया है.
संसद ने बीते बृहस्पतिवार को पॉक्सो संशोधन विधेयक को मंजूरी दी, जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी को परिभाषित करने के अलावा बच्चों के खिलाफ जघन्य अपराध के मामलों में मृत्युदंड तक का भी प्रावधान किया गया है.
पुरुषत्व और मर्दवाद की स्थापना के चलते लड़कों के लैंगिक शोषण को महत्वहीन विषय माना गया है. यदि कोई यह शिकायत करता है तो उसे अपमान झेलना पड़ता है और कमज़ोर माना जाता है.
पुलिस ने बताया कि अधिक जल जाने की वजह से लड़की की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी. आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया गया है.
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा, ‘बाल यौन शोषण का सबसे अधिक नजरअंदाज किए जाने वाला वर्ग पीड़ित लड़कों का है. बचपन में यौन शोषण का शिकार होने वाले लड़के जीवन भर गुमसुम रहते हैं.’
उच्चतम न्यायालय ने कहा, 'मीडिया रिपोर्टिंग पीड़ित का नाम लिए बगैर भी की जा सकती है. भले ही पीड़ित नाबालिग या विक्षिप्त हो तो भी उसकी पहचान का खुलासा नहीं करना चाहिए.'
बाल अधिकारों के लिए लड़ने वाले संगठन 'सेव द चिल्ड्रेन' से जुड़ीं बिदिशा पिल्लई ने कहा, ‘मौत की सज़ा समस्या का समाधान नहीं हो सकता है.’
बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने अध्यादेश के विरोध में कहा है कि मौत की सज़ा के प्रावधान के बाद बच्चियों से बलात्कार के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे. क्योंकि ज्यादातर मामलों में परिवार के सदस्य ही आरोपी होते हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी नाबालिग भतीजी का बार-बार बलात्कार करने का दोषी क़रार देते हुए ज़मानत देने से इनकार कर दिया.