दक्षिण कश्मीर के शोपियां के निवासी ज़फ़र अहमद पर्रे पर पिछले साल पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया था और उन्होंने अपनी हिरासत को अदालत में चुनौती दी थी. अदालत ने इस मामले पर सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत जैसा लोकतांत्रिक देश, जो क़ानूनसे चलता है, में पुलिस और मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए बिना उसे उठाकर पूछताछ नहीं कर सकते.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कश्मीरी पत्रकार आसिफ़ सुल्तान पर लगे जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) को रद्द कर दिया है. समाचार पत्रिका ‘कश्मीर नैरेटर’ के रिपोर्टर आसिफ़ को 2018 में उन आतंकवादियों को शरण देने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था, जिन्होंने उस साल श्रीनगर में एक मुठभेड़ के दौरान एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी थी.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कश्मीरी पत्रकार सज्जाद गुल के ख़िलाफ़ जन सुरक्षा अधिनियम के तहत लगाए गए आरोपों संबंधी सुनवाई में कहा कि सूबे के प्रशासन ने कार्यवाही को मंज़ूरी देते समय अपना दिमाग़ नहीं लगाया और ऐसा कुछ पेश नहीं किया जो साबित करता हो कि गुल राष्ट्रहित के ख़िलाफ़ काम कर रहे थे.
कश्मीरी पत्रकार और समाचार वेबसाइट ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फहद शाह को पहली बार पिछले साल 4 फरवरी को सोशल मीडिया पर ‘आतंकवादी गतिविधियों का महिमामंडन’ करने और दक्षिण कश्मीर के पुलवामा ज़िले में एक मुठभेड़ की कथित ‘ग़लत रिपोर्टिंग’ करके ‘देश के ख़िलाफ़ असंतोष’ पैदा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, छात्रों, श्रमिकों और आदिवासियों पर आरोप लगाने के लिए यूएपीए का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में जन सुरक्षा क़ानून (पीएसए) और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) और आईपीसी में राजद्रोह जैसे अन्य कठोर अधिनियम भी लागू किए गए हैं.
कश्मीर में पत्रकारों और रिपोर्टिंग की स्थिति पर बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में घाटी के कुछ पत्रकारों और संपादकों से बातचीत की है, जिन्होंने बताया है कि घटनाओं की रिपोर्टिंग को लेकर अधिकारियों द्वारा बनाए गए ‘डर और धमकी’ के माहौल के कारण वे ‘घुटन’ महसूस करते रहे हैं.
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, भारतीय विमेन प्रेस कोर, प्रेस एसोसिएशन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और वर्किंग न्यूज़ कैमरामैन एसोसिएशन ने कहा कि 'द कश्मीर वाला' के ख़िलाफ़ सरकार की कार्रवाई 'प्रेस की आज़ादी की स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है.'
वीडियो: श्रीनगर से संचालित होने वाली 'द कश्मीरवाला' न्यूज़ वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया है और इसके ट्विटर और फेसबुक पेज भी ब्लॉक हो चुके हैं. अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से सूबे में मीडिया के क्या हालात हैं, बता रहे हैं अजय कुमार.
स्वतंत्र मीडिया संस्थान ‘द कश्मीर वाला’ के संस्थापक-संपादक फहद शाह आतंकवाद के आरोप में 18 महीने से जम्मू जेल में बंद हैं, जबकि इसके ट्रेनी पत्रकार सज्जाद गुल भी जनवरी 2022 से जन सुरक्षा अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश में जेल में बंद हैं. संस्थान ने एक बयान में कहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के अलावा उन्हें श्रीनगर में अपने मकान मालिक से दफ़्तर ख़ाली करने का नोटिस भी मिला है.
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत हिरासत में लिए गए लोगों के वकीलों और परिजनों का कहना है कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान इन मामलों को दैनिक कार्य सूची में इतना नीचे स्थान दिया जाता है कि ये सुनवाई के लिए जज तक पहुंच ही नहीं पाते हैं, जिससे क़ैद से लोगों का बाहर आना चुनौती बना हुआ है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय राजकीय यात्रा पर अमेरिका गए हुए हैं. इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट ने एक बयान जारी करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से आह्वान किया है कि उन्हें इस अवसर का उपयोग भारत में प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को मोदी के समक्ष उठाने के लिए करना चाहिए.
जम्मू कश्मीर के बारामूला के रहने वाले 25 वर्षीय मुज़म्मिल मंज़ूर वार को 17 अगस्त 2020 को ‘देश की सुरक्षा और संप्रभुता’ के लिए ख़तरा पैदा करने के आरोप में ‘कठोर’ पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था. इसे उनके पिता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन रिहाई के दो आदेश के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया गया था.
कश्मीरी पत्रकार आसिफ़ सुल्तान को आतंकी संगठनों से संबंध के मामले में अदालत ने पांच अप्रैल को यह कहते हुए ज़मानत दी थी कि उन्हें दोषी ठहराने के पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं. हालांकि 10 अप्रैल को उन्हें दोबारा गिरफ़्तार कर पीएसए के तहत जेल भेज दिया गया. इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स का कहना है कि पत्रकारों को परेशान करने के लिए जन सुरक्षा अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है.
समाचार पोर्टल ‘द कश्मीरवाला’ के संपादक फहद शाह को अदालत से तीन बार ज़मानत मिलने के बाद उन पर जनसुरक्षा क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया है. पुलिस द्वारा इसके तहत दिए गए डोज़ियर में कहा गया है कि फहद अपने पेशे का दुरुपयोग कर राष्ट्रविरोधी कंटेंट पोस्ट करते हैं. पत्रकारों और कार्यकर्ताओं द्वारा उनकी गिरफ़्तारी का विरोध किया जा रहा है.
पांच जनवरी की रात वेब पोर्टल 'द कश्मीर वाला' के साथ जुड़े ट्रेनी पत्रकार और छात्र सज्जाद गुल को आपराधिक साज़िश के आरोप में बांदीपोरा ज़िले में उनके घर से गिरफ़्तार किया गया था. इस मामले में ज़मानत मिलने के बाद पुलिस द्वारा उन्हें जन सुरक्षा क़ानून के तहत मामले दर्ज करते हुए जेल भेज दिया गया.