केंद्र सरकार के बजट में सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा को न केवल दरकिनार किया गया है बल्कि मनरेगा सरीखी कई ज़रूरी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की गई है. ऐसे में झारखंड जैसा राज्य जो कुपोषण, ग़रीबी व ग्रामीण बेरोज़गारी से जूझ रहा है, वहां आने वाले राज्य बजट के पहले पिछले बजटों में की गई घोषणाओं के आकलन की ज़रूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम प्रवासी श्रमिकों को राशन सुनिश्चित करने का राज्य सरकारों को तौर-तरीके तैयार करने का निर्देश देते हुए कहा कि अंतिम लक्ष्य यह है कि भारत में कोई नागरिक भूख से नहीं मरे. अदालत ने कहा कि प्रवासी श्रमिक राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं और कहीं से भी उनके अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती.
विपक्ष ने योगी सरकार के उस कथित दिशानिर्देश पर प्रतिक्रिया दी है, जिसमें अपात्र कार्डधारकों को अपना कार्ड लौटाने अन्यथा खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत कार्रवाई के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी गई है. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेता ने दिशानिर्देशों को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि अगर तथाकथित अपात्र लोग ख़ुद राशन कार्ड नहीं देते हैं तो इनसे कोरोना जैसी महामारी के दौरान दिए गए राशन की वसूली और कुर्की तक की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी एक प्रोफार्मा प्रमाण-पत्र के आधार पर यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी किए जाने का निर्देश दिया और कहा कि यौनकर्मियों की गोपनीयता भंग नहीं होनी चाहिए और उनकी पहचान उजागर नहीं की जानी चाहिए.
29 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने राज्यों को पहचान के सबूत के बिना ही यौनकर्मियों को राशन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. अब कोर्ट ने समुदाय आधारित संगठनों से अपने क्षेत्रों में यौनकर्मियों की एक सूची तैयार कर उसे संबंधित ज़िला क़ानूनी सेवा प्राधिकरण या नाको द्वारा सत्यापित करने का निर्देश दिया है. अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा करते हुए राज्य के अधिकारी मामले में गोपनीयता बनाए रखें.
चामराजनगर ज़िले के उपायुक्त एमआर रवि ने कहा कि 'नो वैक्सीनेशन, नो राशन' अभियान के तहत ज़िले में मुफ़्त राशन चाहने वाले बीपीएल और अंत्योदय कार्ड धारकों को अनिवार्य रूप से टीकाकरण कराना होगा. कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने सवाल उठाया है कि क्या इसके लिए पर्याप्त टीके उपलब्ध हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार करने के लिए असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों के पंजीकरण के लिए सॉफ्टवेयर विकास में देरी पर कड़ा रुख़ जताया और कहा कि वह इस बात से चिंतित है कि जिन प्रवासी श्रमिकों के पास राशन कार्ड नहीं हैं, वे कल्याणकारी योजनाओं का लाभ कैसे उठा पाएंगे.
दिल्ली सरकार ने घर-घर राशन पहुंचाने की योजना की शुरुआत 2018 में करने की कोशिश की थी, लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल ने तब सलाह दी थी अंतिम निर्णय लेने से पहले पूरा विवरण केंद्र सरकार के समक्ष रखना चाहिए. इस साल मार्च में केंद्र ने यह कहते हुए दिल्ली सरकार से इस योजना को लागू न करने के लिए कहा था कि इसके लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आवंटित सब्सिडी वाले खाद्यान्न का उपयोग करने की अनुमति नहीं
महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले की रहने वाली हाली रघुनाथ बराफ को अपनी बहन को तेंदुए के चंगुल से बचाने के लिए 2013 में राष्ट्रीय बालवीर पुरस्कार मिला था. उन्होंने कहा है कि इस पुरस्कार से उनके परिवार की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ. परिवार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से राशन नहीं मिल रहा, क्योंकि ऑनलाइन प्रणाली में परिवार का नाम ही दर्ज नहीं किया गया.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खाद्यान्न देते हुए प्रशासन उन प्रवासी कामगारों को पहचान पत्र दिखाने पर ज़ोर न दे, जिनके पास फ़िलहाल दस्तावेज़ नहीं हैं. पीठ ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों को यह निर्देश भी दिया कि वे कोविड-19 के कारण फंसे प्रवासी कामगारों में से जो घर जाना चाहते हैं, उनके लिए परिवहन की समुचित व्यवस्था करें.
रामनगर में एक कार्यक्रम के दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि अगर लोगों को कोविड-19 के दौरान अधिक राशन पाना था तो दो से ज़्यादा बच्चे पैदा करते. इसी कार्यक्रम में रावत ने कहा कि भारत 200 साल अमेरिका का ग़ुलाम था और अब कोविड-19 ने उसकी शक्ति को भी कम कर दिया.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल 25 मार्च को सीमापुरी इलाके में 100 घरों तक राशन पहुंचाकर ‘मुख्यमंत्री घर-घर राशन योजना’ की शुरुआती करने वाले थे. केजरीवाल ने कहा है कि उन्हें योजना के नाम में ‘मुख्यमंत्री’ शब्द से आपत्ति है अब इस योजना का कोई नाम नहीं होगा. केंद्र जो राशन देगी हम उसे घर घर पहुंचाएंगे. इस पर उन्हें आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इसे विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह बहुत गंभीर मामला है. हम इस पर सुनवाई करेंगे. केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किए जाएं, जिन पर चार सप्ताह में जवाब दिया जाए.
भोजन का अधिकार अभियान द्वारा कराए गए सर्वे में अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिमों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे. सर्वे के अनुसार लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था. हालांकि सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन के सोना पड़ा.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को चार हफ़्ते के भीतर इस आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट दाख़िल करने का भी निर्देश दिया है कि कितनी यौनकर्मियों को राशन दिया गया. एक याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की वजह से यौनकर्मियों की स्थिति बहुत ही ख़राब है. उन्हें राशन कार्ड और दूसरी सुविधाएं उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया है.