कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: राम की महिमा है कि उनकी स्तुति में शामिल होकर हत्यारे-लुटेरे-जघन्य अपराधी अपने पाप धो लेंगे और राम-धवल होकर अपना अपराधिक जीवन जारी रखेंगे. राम की महिमा है कि उन्होंने इतना लंबा वनवास सहा, अनेक कष्ट उठाए जो यह तमाशा, अमर्यादित आचरण भी झेल लेंगे.
अयोध्या को भारत की, या कहें हिंदुओं की धार्मिक राजधानी के रूप में स्थापित करने का राज्य समर्थित अभियान चल रहा है. लोगों के दिमाग़ में 22 जनवरी, 2024 को 26 जनवरी या 15 अगस्त के मुक़ाबले एक अधिक बड़े और महत्त्वपूर्ण दिन के रूप में आरोपित करने को भरपूर कोशिश हो रही है.
तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपने दादा एमके करुणानिधि का नाम लेते हुए कहा कि द्रमुक किसी विशेष धर्म या आस्था के ख़िलाफ़ नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि धर्म को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख नृत्यगोपाल दास को भेजे पत्र में कहा है कि परिसर में रामलला पहले से ही विराजमान हैं, 'तो यह प्रश्न उठता है कि यदि नवीन मूर्ति की स्थापना की जाएगी तो श्रीरामलला विराजमान का क्या होगा?'
वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि इस आयोजन को भाजपा और आरएसएस ने हड़प लिया है. एक धार्मिक आयोजन को चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक अभियान में बदल दिया गया है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने भी राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को पत्र लिखकर समारोह में शामिल होने में असमर्थता जताई है.
आज की अयोध्या में बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के समक्ष आत्मसमर्पण और उसका प्रतिरोध न कर पाने की असहायता बढ़ती जा रही है. आम लोगों के बीच का वह स्वाभाविक सौहार्द भी, जो आत्मीय रिश्तों तक जाता था, अब औपचारिक हो चला है.
अगर हिंदू जनता को यह यक़ीन दिलाया जा सकता है कि यह मंदिर उसकी चिर संचित अभिलाषा को पूरा करता है तो इसका अर्थ है कि हिंदू मन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरी तरह कब्ज़ा हो चुका है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: एक तरह का 'सभ्य अंधकार' छाता जा रहा है, पूरी चकाचौंध और गाजे-बाजे के साथ. लेकिन, नज़र तो नहीं आती पर बेहतर की संभावना बनी हुई है, अगर यह ख़ामख़्याली है तो अपनी घटती मनुष्यता को बचाने के लिए यह ज़रूरी है.
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से ख़ुश तबका भी प्राण-प्रतिष्ठा समारोह को राजनीतिक बताते हुए इस पर सवाल उठा रहा है.
चार शंकराचार्यों ने राम मंदिर के आयोजन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने ठीक ही कहा है कि यह धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा का राजनीतिक आयोजन है. फिर यह सीधी-सी बात कांग्रेस या दूसरी पार्टियां क्यों नहीं कह सकतीं?
स्मृति शेष: जेपीएस ओबेरॉय को जो बात उन्हें अलग करती थी, वो थी समाजशास्त्रीय अध्ययन को सिर्फ भारत की सीमाओं तक महदूद न करने की उनकी अनवरत कोशिश. उन्होंने अपने सहयोगियों और छात्रों को भी भारत के अलावा एशियाई, अफ्रीकी और यूरोपीय समाजों के अध्ययन के लिए प्रेरित किया. इसी क्रम में, ओबेरॉय ने डीयू के समाजशास्त्र विभाग में ‘यूरोपियन स्टडीज़ प्रोग्राम’ की भी शुरुआत की.
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का यह बयान तब आया है, जब एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि सीएए के नियमों को लोकसभा चुनावों की घोषणा से ‘बहुत पहले’ अधिसूचित कर दिया जाएगा. दिसंबर 2019 में संसद द्वारा सीएए पारित होने और राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिलने के बाद देश के कुछ हिस्सों में इसके ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे.
जो समाजवादी पार्टी 1993 के दौर से भी पहले से धर्म और राजनीति के घालमेल के पूरी तरह ख़िलाफ़ रही और धर्म की राजनीति के मुखर विरोध का कोई भी मौका छोड़ना गवारा नहीं करती रही है, अब उसके लिए धर्म अनालोच्य हो गया है.
उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में एक कार्यक्रम के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा का काम जनता को धोखा देना है. भाजपा पहले दिन से ही राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा कि धोखा देना भाजपा का व्यवहार, व्यवसाय और रणनीति है. यह लोगों के अधिकार और सम्मान को छीनने का काम कर रही है.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने राज्य में 23 दिसंबर से हिजाब पर प्रतिबंध के आदेश को वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि भाजपा लोगों और समाज को कपड़े, वेशभूषा और जाति के आधार पर विभाजित करने का काम कर रही है. हिजाब पर बैन बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार ने लगाया था.