सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच की घटनाओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में राज्यों की निष्क्रियता को लेकर दायर याचिकाओं को सुनते हुए चेतावनी दी कि राज्य सरकारों की कार्रवाई वक्ता के धर्म की परवाह किए बिना होनी चाहिए. कार्रवाई में किसी भी तरह की हिचकिचाहट को अदालत की अवमानना के रूप में देखा जाएगा.
मामला कानपुर का है. पिछले हफ्ते ईद पर ईदगाह के बाहर एक सड़क पर बिना इजाजत नमाज अदा करने के आरोप में बजरिया, बाबू पुरवा और जाजमऊ थाने में अलग-अलग एफ़आईआर दर्ज की गई हैं. इससे नाराज़ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने कहा कि उन्हें धर्म के आधार पर निशाना बनाया जा रहा है.
सामूहिक हिंसा या घृणा के अलावा बिना किसी संगठन के भी ढेरों हिंदुओं में दूसरों के प्रति घृणा ज़ाहिर करने का लोभ अश्लीलता के स्तर तक पहुंच गया है. इन हिंदुओं के बीच ऐसे ‘कुशल’ वक्ताओं की संख्या बढ़ रही है जो खुलेआम हिंसा का प्रचार करते हैं. वक्ताओं के साथ उनके श्रोताओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है.
स्टैंड-अप कॉमेडियन और ब्लॉगर यश राठी के ख़िलाफ़ उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भगवान राम के बारे में कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने को लेकर केस दर्ज कराया गया है. हिंदुत्ववादी संगठन भैरव वाहिनी की राज्य इकाई के अध्यक्ष ने इस संबंध में पुलिस में शिकायत दी थी.
मुग़लों का इतिहास तो पढ़ाए न जाने के बावजूद इतिहास ही रहेगा- न बदलेगा, न मिटेगा. लेकिन छात्र उससे वाक़िफ़ नहीं हो पाएंगे और उनका इतिहास ज्ञान अधूरा व कच्चा रह जाएगा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: यह बहुत असाधारण समय है तो ऐसे में नागरिकता के कर्तव्य भी असाधारण होते हैं. ऐसे में हमारी सभ्यता का तकाज़ा है कि हम तरह-तरह से आवाज़ उठाएं, चुप न रहें. व्यापक जीवन, स्वतंत्रता-समता-न्याय के संवैधानिक मूल्यों, समरसता के पक्ष में और घृणा-हिंसा-हत्या-झूठ-अन्याय के विरुद्ध.
जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने नफ़रती भाषण के ख़िलाफ़ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सॉलिसिटर जनरल से यह सवाल किया. अक्टूबर 2022 में शीर्ष अदालत ने औपचारिक शिकायतों का इंतज़ार किए बिना आपराधिक मामले दर्ज करके नफ़रत भरे भाषणों के ख़िलाफ़ ‘तत्काल’ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.
उत्तर प्रदेश की मुरादाबाद पुलिस ने बजरंग दल के प्रदर्शन और धमकी के बाद एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा उनकी निजी इमारत में की जा रही सामूहिक तरावीह को रुकवा दिया. क्या अब यह सच नहीं कि मुसलमान या ईसाई का चैन और सुकून तब तक है जब तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन कुछ और तय न करें? क्या अब उनका जीवन अनिश्चित नहीं हो गया है?
तमिलनाडु के अरियालुर ज़िले का मामला. पादरी ने पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में आरोप लगाया है कि विहिप नेता मुथुवेल ने उनसे 25 लाख रुपये की मांग की थी. पादरी के अनुसार, ऐसा न करने पर मुथुवेल ने उन्हें स्कूली बच्चों को प्रताड़ित करने का आरोप लगाकर बदनाम करने की धमकी दी थी.
बीएचयू के धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने ‘भारतीय समाज में मनुस्मृति की प्रयोज्यता’ पर शोध का प्रस्ताव दिया है. 21वीं सदी की तीसरी दहाई में जब दुनियाभर में शोषित उत्पीड़ितों में एक नई रैडिकल चेतना का संचार हुआ है, 'ब्लैक लाइव्ज़ मैटर' जैसे आंदोलनों ने विकसित मुल्कों के सामाजिक ताने-बाने में नई सरगर्मी पैदा की है, तब अतीत के स्याह दौर की याद दिलाती इस किताब की प्रयोज्यता की बात करना दुनिया में भारत की क्या छवि बनाएगा?
मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले का मामला. पुलिस ने इस संबंध में छात्रावास अधीक्षक को भी गिरफ़्तार किया है. स्थानीय बाल कल्याण समिति की एक रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है.
भले ही शास्त्रीय मान्यता न हो, व्यवहार में जातिगत भेद भारत के हर धार्मिक समुदाय की सच्चाई है. अमेरिका जाने वाले सिर्फ़ हिंदू नहीं, अन्य धर्मों के लोग भी हैं. अमेरिका के सिएटल में लागू जातिगत भेदभाव संबंधी क़ानून सब पर लागू होगा, सिर्फ़ हिंदुओं पर नहीं. फिर हिंदू ही क्यों क्षुब्ध हैं?
मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम ज़िले के चौकीपुरा गांव का मामला. पुलिस ने बताया कि इस संबंध में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है. उपद्रवियों की पहचान करने और उन्हें पकड़ने के लिए टीमें गठित की गई हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम समूह) के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने संगठन के 34वें महा अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत इस्लाम की जन्मस्थली और मुसलमानों का पहला वतन है. भारत हिंदी-मुसलमानों के लिए वतनी और दीनी, दोनों लिहाज़ से सबसे अच्छी जगह है.
2020 में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में देश में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों में प्रवेश पर लगी कथित रोक को अवैध और असंवैधानिक बताते हुए निर्देश देने का आग्रह किया गया था. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कोर्ट से कहा है कि मुस्लिम महिलाएं मस्जिद में जाने के लिए स्वतंत्र हैं और यह उन पर निर्भर करता है कि वे वहां नमाज़ पढ़ने के हक़ का इस्तेमाल करना चाहती हैं या नहीं.