सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एक ऐसे शख़्स की याचिका पर दिया, जिन्हें उनके ख़िलाफ़ विभिन्न राज्यों में दर्ज 13 मामलों में ज़मानत मिलने और ज़मानत राशि होने के बावजूद पर्याप्त ज़मानतदार न जुटा पाने की वजह से जेल में रहना पड़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने एक पक्षी के निवास स्थान को खोने से बचाए जाने की याचिका सुनते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता है.
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतरधार्मिक जोड़े द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होती है. अपनी याचिका में मुस्लिम महिला और उसके हिंदू पार्टनर ने उनके परिवार के सदस्यों को उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल में पीने के पानी, शौचालय, उचित सफाई जैसी विभिन्न बुनियादी सुविधाओं की कमी से जुड़ी याचिका सुनते हुए कहा कि एक क़ैदी के संवैधानिक अधिकार जेल में भी बने रहते हैं. कोर्ट ने जेल परिसर में सुविधाओं के निरीक्षण के लिए वकीलों की चार सदस्यीय समिति का गठन भी किया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने यह आदेश एक सीआरपीएफ कॉन्स्टेबल की याचिका पर दिया, जिसमें एकल-न्यायाधीश पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी. एकल पीठ ने सीआरपीएफ द्वारा जारी आदेश के ख़िलाफ़ कॉन्स्टेबल की अपील को ख़ारिज कर दिया था, जिसने उन्हें इस आधार पर पदोन्नति देने से इनकार कर दिया था कि वह एचआईवी पॉजिटिव पाए गए थे.
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि हिरासत में ली गई एक महिला, जांच के दायरे में आरोपी, पुलिस या न्यायिक हिरासत में गई महिला का कौमार्य परीक्षण असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जिसमें गरिमा का अधिकार भी शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने की मांग वाली और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के उस प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा, जो किसी पति को बालिग पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने की सूरत में दोषारोपण से सुरक्षा प्रदान करता है.
एक 26 वर्षीय महिला ने दिल्ली हाईकोर्ट से भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी असामान्यताएं होने के कारण गर्भपात की अनुमति मांगी थी. अदालत ने उनके पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में अंतिम फैसला जन्म देने संबंधी महिला की पसंद और अजन्मे बच्चे के गरिमापूर्ण जीवन की संभावना को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता मीरा कौर पटेल की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि पीसीपीएनडीटी अधिनियम की धारा 4 (3) (i) में 35 वर्ष की आयु का प्रतिबंध महिलाओं के प्रजनन अधिकारों पर पाबंदी है.
सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व क़ानूनी रूप से गर्भपात कराने का हक़ देते हुए कहा कि उनके विवाहित होने या न होने के आधार पर कोई भी पक्षपात संवैधानिक रूप से सही नहीं है.
इस साल मई महीने में दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ के एक जज ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दिए गए अपवाद के प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा था कि यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है. इस निर्णय को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है.
अगर संघ परिवारी सत्ताधीश और उनके समर्थक समझते हैं कि देश की छवि मध्य प्रदेश में भाजपाइयों द्वारा मोहम्मद होने के संदेह में भंवरलाल को पीट-पीटकर मार दिए जाने से नहीं, बल्कि राहुल गांधी द्वारा लंदन में यह चेताने से ख़राब होती है कि भाजपा ने देश में इस तरह मिट्टी का तेल फैला दिया है कि एक चिंगारी भी हमें बड़ी मुसीबत में डाल सकती है, तो उन्हें भला कौन समझा सकता है!
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले में खंडित फ़ैसला देने के बाद एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है. 11 मई को हाईकोर्ट की पीठ के एक जज ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दिए गए अपवाद के प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा था कि यह अपवाद असंवैधानिक नहीं है.
दिल्ली हाईकोर्ट की एक पीठ ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले में खंडित फ़ैसला दिया, जहां एक जज ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दिए गए अपवाद के प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है. कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय पर निराशा ज़ाहिर की है.
पत्नी द्वारा लगाए गए बलात्कार के आरोप पर दायर चार्जशीट के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 375 के तहत मिले अपवाद का हवाला देते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचे एक शख़्स को कोर्ट ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि क़ानून से मिली कोई भी छूट इतनी असीमित नहीं हो सकती कि यह अपराध करने का लाइसेंस बन जाए.