सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह पर उच्च न्यायालयों में लंबित सभी याचिकाओं की ख़ुद करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाहों को क़ानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया है. केंद्र से 15 फरवरी तक इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं पर अपना संयुक्त जवाब दाख़िल करने को कहा और निर्देश दिया कि 13 मार्च तक सभी याचिकाओं को सूचीबद्ध किया जाए.

समलैंगिक विवाह को क़ानूनी मान्यता देने की एक और याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

इससे पहले नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने दो समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसे मान्यता देने की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. उस याचिका में कहा गया है कि एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी उनकी पसंद के व्यक्ति से विवाह का अधिकार मिलना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट में दर्ज एक याचिका में दो समलैंगिक जोड़ों ने विवाह करने और विशेष विवाह अधिनियम के तहत इसे मान्यता देने की अनुमति मांगी है. याचिका में कहा गया है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार एलजीबीटीक्यू+ नागरिकों को भी मिलना चाहिए.

समलैंगिक विवाह को मान्यता की मांग पर केंद्र ने कहा, सिर्फ जैविक महिला-पुरुष के बीच विवाह मान्य

दिल्ली हाईकोर्ट में विशेष, हिंदू और विदेशी विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के अनुरोध वाली कई याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर 30 नवंबर को अंतिम सुनवाई होगी. इस साल फरवरी में केंद्र ने इन याचिकाओं को ख़ारिज करने की मांग करते हुए अदालत में तर्क दिया था कि भारत में विवाह 'पुराने रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सांस्कृतिक लोकाचार और सामाजिक मूल्यों' पर निर्भर करता है.

समलैंगिक विवाह के लिए दायर याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर एक ओसीआई कार्डधारक के विदेशी मूल के जीवनसाथी को उसकी लैंगिकता की परवाह किए बिना ओसीआई पंजीकरण की अनुमति देने की मांग की गई है. उन्होंने तमाम विवाह क़ानूनों के तहत समलैंगिक शादी को मान्यता प्रदान करने की गुज़ारिश की है.

पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ कोर्ट का आदेश, कहा- एलजीबीटी समुदाय को हाशिए पर नहीं छोड़ सकते

पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय के संबंधों के प्रति समाज में परिवर्तन की ज़रूरत है. असली समस्या क़ानूनी मान्यता की नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति की है. हमारा मानना है कि सामाजिक स्तर पर बदलाव होने चाहिए.

केंद्र ने समलैंगिक शादी पर सुनवाई का किया विरोध, कहा- विवाह सर्टिफिकेट के बिना कोई मर नहीं रहा

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई है. इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालत में ऐसे विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में अपने एक फैसले में समलैंगिक यौन संबंध को सहमति प्रदान की थी, लेकिन इसमें समलैंगिकों की शादी का ज़िक्र नहीं था.

केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा- हमारा समाज समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हमारे क़ानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिकों के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह के लिए महिला और पुरुष होना जरूरी है.