बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के आश्रय गृह में बच्चियों के यौन शोषण की घटनाओं से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त होती, तो मुज़फ़्फ़रपुर में जो भी हुआ, वह नहीं होता.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर हम कोई निर्देश देते हैं तो उसे 'न्यायिक सक्रियतावाद' करार दे दिया जाता है. यदि अधिकारियों ने ठीक से अपना काम किया होता तो बिहार में मुजफ्फरपुर जैसी घटनाएं नहीं होतीं.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 2016-17 के सर्वेक्षण में बाल देखभाल संस्थाओं में रहने वाले बच्चों की संख्या क़रीब 4.73 लाख थी जबकि इस साल मार्च में पेश सरकारी आंकड़ों में संख्या 2.61 लाख बताई गई है.
हाल ही में बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर और उत्तर प्रदेश के देवरिया के बालिका आश्रय गृहों में रहने वाली युवतियों के साथ बलात्कार और यौन शोषण के मामले सामने आए हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सभी राज्यों के बाल आश्रय गृहों के सोशल ऑडिट का आदेश दिया था. बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, केरल, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और दिल्ली भी सोशल ऑडिट का विरोध कर रहे हैं.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि पिछले दो सालों से मैं सांसदों से अनुरोध कर रही हूं कि वे अपने इलाकों के आश्रयगृहों का दौरा करें. हमने एनजीओ से आश्रयगृहों का ऑडिट कराया, उन्होंने कुछ भी असामान्य नहीं होने की बात कही.