मलयाली अभिनेता सिद्दीक़ी पर एक अभिनेत्री द्वारा बलात्कार के आरोप लगाए जाने के बाद उन्होंने एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स के महासचिव पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. इससे पहले एक बांग्ला अभिनेत्री मलयाली फिल्मकार व केरल चलचित्र अकादमी के अध्यक्ष रंजीत पर बदसलूकी के आरोप लगाए थे.
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मुंबई की निजी कंपनी के एक असिस्टेंट मैनेजर और सेल्स मैनेजर पर संस्थान की फ्रंट ऑफिस एक्ज़िक्यूटिव के यौन उत्पीड़न का आरोप है. एक स्थानीय अदालत ने उनकी अग्रिम ज़मानत की याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियां और साथ चलने के लिए बार-बार पूछना महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के समान है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न विरोधी क़ानून को पेश किए जाने के एक दशक बाद भी ‘स्थिति चिंताजनक’ है, जबकि यह केंद्र और राज्यों के लिए सकारात्मक कार्रवाई करने का समय था. अदालत ने कहा कि अक्सर देखा जाता है कि जब महिलाएं कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करती हैं, तो वे शिकायत करने से हिचकती हैं. उनमें से कई तो अपनी नौकरी छोड़ भी देती हैं.
2013 के बलात्कार मामले में तरुण तेजपाल को बरी किए जाने के ख़िलाफ़ दायर अपील पर तेजपाल के बंद कमरे में सुनवाई के अनुरोध से मना करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि किसी जज को यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा करने का अधिकार है कि महिला निडर होकर अपना बयान दे. किसी आरोपी के लिए ऐसा नहीं किया जा सकता है.
ऊटी गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज की एक प्रोफेसर ने फरवरी में एक अन्य शिक्षक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. कॉलेज की आंतरिक समिति ने शिक्षक को दोषी पाया. हालांकि महिला का आरोप है कि प्रिंसिपल ने कार्रवाई के नाम पर लीपापोती की क्योंकि आरोपी उनका सजातीय है.
भोपाल के हमीदिया अस्पताल की 50 से अधिक नर्सों ने पत्र लिखकर कहा था कि अधीक्षक डॉ. दीपक मरावी नर्सों से छेड़छाड़ करते थे, नशे की हालत में उनके चेंजिंग रूम में घुस जाते थे और विरोध करने पर नौकरी से निकलवा देने की धमकी देते थे. अस्पताल की जांच समिति पर लीपापोती करने के आरोप के बाद राज्य सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
तरुण तेजपाल ने 2013 बलात्कार मामले में उन्हें बरी किए जाने के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका की बंद कमरे में सुनवाई करने का अनुरोध किया था, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस एमएस जवलकर की पीठ ने ख़ारिज कर दिया.
गोवा की एक सत्र अदालत द्वारा पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के मामले से बरी करने को गोवा सरकार ने चुनौती दी है. राज्य सरकार ने कोर्ट में निचली अदालत के निर्णय को प्रतिगामी बताते हुए कहा कि मामले की सर्वाइवर को सार्वजनिक तौर पर शर्मसार किया गया.
पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने के फ़ैसले को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्र अदालत को नोटिस भेजा है. हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत का निर्णय रेप पीड़िताओं के लिए मैनुअल जैसा है जहां यह बताया गया है कि ऐसे मामलों में एक पीड़िता को कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए.
एक सत्र अदालत द्वारा पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी के यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने को गोवा सरकार ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. सरकार ने कहा कि मामले में दोबारा सुनवाई इसलिए हो क्योंकि जज ने पूछताछ के दौरान शिकायतकर्ता से निंदनीय, असंगत और अपमानजनक सवाल पूछने की मंज़ूरी दी.
तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने का फ़ैसला पीड़ित महिलाओं को लेकर प्रचलित पूर्वाग्रहों पर आधारित है. उचित संदेह के आधार पर हुई न्यायिक जांच से मिली बेगुनाही का विरोध कोई नहीं करता, पर इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि बलात्कार की सर्वाइवर्स को निष्पक्ष सुनवाई का अवसर ज़रूर मिले.
बीते 21 मई को गोवा की एक सत्र अदालत ने पत्रकार तरुण तेजपाल को महिला सहयोगी का यौन उत्पीड़न करने के मामले से बरी करते हुए कहा था कि घटना का कोई मेडिकल प्रमाण नहीं है और शिकायतकर्ता की ‘सच्चाई पर संदेह पैदा करने’ वाले ‘तथ्य’ मौजूद हैं.
तहलका के संस्थापक और संपादक तरुण तेजपाल को सहकर्मी से यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करते हुए गोवा की सत्र अदालत की जज क्षमा जोशी ने कहा कि घटना का कोई मेडिकल प्रमाण नहीं है और शिकायतकर्ता की 'सच्चाई पर संदेह पैदा करने' वाले 'तथ्य' मौजूद हैं. गोवा सरकार ने इस निर्णय को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है.
तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को यौन उत्पीड़न के आरोपों से बरी करने के फ़ैसले पर महिला पत्रकारों के संगठनों और कार्यकर्ताओं ने मामले की सर्वाइवर के साथ एकजुटता जताई है. एक संगठन ने कहा कि यह मामला शक्ति के असंतुलन का प्रतीक है जहां महिलाओं की शिकायतों पर निष्पक्षता से सुनवाई नहीं होती.