वीडियो: सर्दियों की दस्तक के साथ ही दिल्ली-एनसीआर समेत समूचा उत्तर भारत वायु प्रदूषण की ज़द में आ जाता है. हर साल सरकारें क़दम उठाने की बात कहती हैं लेकिन कुछ ख़ास नहीं बदलता. समाधान क्या है? इस बारे में पर्यावरण पर काम करने वाली स्वतंत्र संस्था 'एनवायरोकैटलिस्ट' के संस्थापक और लीड एनालिस्ट सुनील दहिया और द वायर की हेल्थ रिपोर्टर बनजोत कौर के साथ चर्चा कर रही हैं मीनाक्षी तिवारी.
पर्यावरण क्षरण और जलवायु आपदाओं को ग्लोबल कहने से यह राय बनती है कि वे सभी को समान रूप से प्रभावित करती हैं, पर सच्चाई ये है कि जलवायु आपदाओं का सार्वभौमिक चरित्र है कि वे उसके दोषी पक्ष को अक्सर कम तथा निर्दोष सामान्यजन को अधिक प्रभावित करती हैं.
वीडियो: दिल्ली-एनसीआर में घटती वायु गुणवत्ता और बढ़ते प्रदूषण के बीच अक्सर पड़ोसी राज्यों के किसानों और पराली जलाने को इस समस्या का ज़िम्मेदार ठहराया जाया है, लेकिन क्या यह पूरा सच है? क्या है इसका समाधान? बता रहे हैं इंद्र शेखर सिंह.
ऑडियो: टाटा एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टिट्यूट की पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. अंजू गोयल का मानना है कि प्रदूषण को शिक्षा की तरह एक राजनीतिक मुद्दा बनाया जाना चाहिए, इससे बड़ा फर्क आएगा.
‘द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में साल 2019 में भारत में सभी प्रकार के प्रदूषण के कारण 23.5 लाख से अधिक मौतें समय से पहले हुई हैं, जिसमें वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख मौतें शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर हर साल होने वाली 90 लाख मौतों के लिए सभी प्रकार का प्रदूषण ज़िम्मेदार है.
केंद्र के राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम की एक विश्लेषण रिपोर्ट अनुसार, पिछले तीन सालों के दौरान देशभर में उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद की वायु गुणवत्ता ख़राब आबोहवा की श्रेणी में रखे जाने वाले 132 शहरों में सबसे ख़राब रही. वहीं, दिल्ली देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा.
उत्तर भारत के 56 शहरों में 137 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर भारत में ग़ाज़ियाबाद सबसे प्रदूषित शहर है और इसका पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर दिल्ली से भी ख़राब स्थिति में है. अधिकांश छोटे शहरों में वार्षिक औसत पीएम 2.5 का स्तर काफी कम है, लेकिन शुरुआती सर्दियों के दौरान जब पूरा क्षेत्र स्मॉग की चपेट में आ जाता है, तो छोटे शहरों की रिपोर्ट दिल्ली के बराबर होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2005 के बाद पहली बार अपने नए वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा है कि हर साल वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 70 लाख लोगों की अकाल मृत्यु होने और लाखों लोगों के स्वास्थ्य के प्रभावित होने का अनुमान है.
शिकागो विश्वविद्यालय के वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि 2019 का प्रदूषण स्तर बना रहता है तो उत्तर भारत के निवासी जीवन प्रत्याशा के नौ साल से अधिक खोने की राह पर हैं क्योंकि यह क्षेत्र दुनिया में वायु प्रदूषण के सबसे चरम स्तर का सामना करता है.
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में शनिवार सुबह घना कोहरा छाया रहा. सफ़दरजंग में दृश्यता गिरकर 50 मीटर और पालम में 250 मीटर रह गई थी. वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान केंद्र के अनुसार, वायु गुणवत्ता सूचकांक सुबह नौ बजे 331 रहा.
सुप्रीम कोर्ट ने बीते छह नवंबर को केंद्र को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग न हो. अब अदालत ने कहा है कि केंद्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में प्रदूषण से निपटने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा अब तक उठाए कदमों की जानकारी मुहैया कराए.
भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक हवा की गति और धीमी पड़ने का अनुमान है, इसलिए दिल्ली की वायु गुणवत्ता के अगले दो दिन में और ख़राब होने तथा ‘ख़राब’ से ‘अत्यंत ख़राब’ के बीच बनी रहने की आशंका है.
पीएम 2.5 कणों का आपात स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर और सुरक्षित स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर होता है. रविवार सुबह दिल्ली-एनसीआर में यह 396 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर था.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने त्योहारी मौसम के दौरान प्रदूषण में बढ़ोतरी होने की संभावना देखते हुए दिल्ली-एनसीआर में 17 नवंबर तक हॉट मिक्स संयंत्र और स्टोन क्रशर को बंद करने का निर्देश दिया है. दिल्ली में लगातार छह दिनों तक प्रदूषण स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी में बना रहा था.
राजधानी दिल्ली में लगातार छठे दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज किया गया. मौसम विज्ञान विभाग के पर्यावरण अनुसंधान केंद्र के प्रमुख ने कहा कि आने वाले दिनों में दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता में बड़ा सुधार आने की कोई अधिक संभावना नहीं है.