हैदराबाद में एक कार्यक्रम में शामिल हुईं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स को लेकर कहा कि इसके लिए 140 करोड़ के देश के 3,000 लोगों को फोन करके पूछा जाता है कि क्या वे भूखे हैं. बीते दिनों जारी इस साल के सूचकांक में भारत 125 देशों की सूची में 111वें स्थान पर आया है.
वीडियो: हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत 125 देशों में से 111 वें स्थान पर रहा, जहां यह बस कुछ बहुत छोटे अफ्रीकी देशों को ही पीछे छोड़ सका. भारत सरकार ने रिपोर्ट की मेथोडोलॉजी को ग़लत बताते हुए इसे अस्वीकार किया है. इंडेक्स बनाने वाली एजेंसियों ने सरकार की आपत्तियों पर कहा है कि इनमें दम नहीं है.
कोविड-19 लॉकडाउन में देश में भुखमरी की स्थिति देखने के बाद इसे नकारना अमानवीय है. वैश्विक भुखमरी सूचकांक ने भारत की दुर्दशा बताई, तो केंद्र सरकार ने रिपोर्ट को ही ख़ारिज कर दिया. सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने पिछले आठ सालों में भुखमरी और कुपोषण कम करने के लिए क्या किया है.
साल 2022 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत पिछले साल के 101वें स्थान से फिसलकर 107वें पायदान पर पहुंच गया है. इस रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को ‘चिंताजनक’ बताया गया है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आंकड़ों से इसे लेकर कोई भी संदेह दूर हो जाना चाहिए कि दुनिया भुखमरी, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण को समाप्त करने के अपने प्रयासों में पीछे जा रही है. सबसे हालिया उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि दुनिया भर में स्वस्थ खुराक का ख़र्च उठाने में असमर्थ लोगों की संख्या 11.2 करोड़ बढ़कर लगभग 3.1 अरब हो गई.
संयुक्त राष्ट्र की ओर से कहा गया है कि 53 देशों में लगभग 19.3 करोड़ लोगों को 2021 में खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा और यह स्थिति संघर्ष, असामान्य मौसम और कोविड-19 वैश्विक महामारी के आर्थिक प्रभावों की तिहरी मार के कारण उत्पन्न हुई. यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध की वजह से वैश्विक खाद्य उत्पादन प्रभावित होने से यह स्थिति और भयावह होने जा रही है.
सुप्रीम कोर्ट उस जनहित योजना पर सुनवाई कर रही है, जिसमें केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को भुखमरी और कुपोषण से निपटने के लिए सामुदायिक रसोइयों के लिए योजना बनाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है. अदालत ने केंद्र के इस प्रतिवेदन पर कड़ी प्रतिक्रिया दी कि किसी भी राज्य ने भूख से मौत की जानकारी नहीं दी है.
खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने राज्यसभा में बताया कि सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून 2013 लागू किया है, जो जनसंख्या के 67 प्रतिशत हिस्से की भूख का निराकरण करता है. साल 2021 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत पिछले साल के 94वें स्थान से फिसलकर 101वें पायदान पर पहुंच गया है.
सुप्रीम कोर्ट भूख और कुपोषण से निपटने के लिए सामुदायिक रसोई योजना तैयार करने के लिए केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश देने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. केंद्र द्वारा दायर हलफ़नामे पर अप्रसन्नता ज़ाहिर करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि यह भारत सरकार को अंतिम चेतावनी है.
वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक-2021 में 113 देशों के बीच भारत ने 71वां स्थान हासिल किया है. भारत कुल अंकों के लिहाज से दक्षिण एशिया में सबसे अच्छे स्थान पर रहा, लेकिन खाद्य पदार्थों की वहनीयता यानी अफोर्डेबिलिटी के मामले में अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान और श्रीलंका से पीछे है.
साल 2021 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत के 101वें पायदान पर पहुंचने के लिए विपक्षी दलों ने केंद्र की नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया कि यह सत्ताधीशों की कुशलता पर सीधा सवाल है. वहीं, सरकार ने इस गिरावट पर हैरानी जताते हुए रैंकिंग के लिए इस्तेमाल की गई पद्धति को ‘अवैज्ञानिक’ बताया है.
साल 2021 के वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत पिछले साल के 94वें स्थान से फिसलकर 101वें पायदान पर पहुंच गया है. आयरलैंड की एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी के संगठन वेल्ट हंगर हिल्फ द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई रिपोर्ट में भारत में भूख के स्तर को ‘चिंताजनक’ बताया गया है.
झारखंड में कथित तौर पर भूख से मौत के मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं. राशन लेने के लिए उन्हें आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है. इन्हें स्वास्थ्य की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है. पीने का शुद्ध पानी भी मयस्सर नहीं हो रहा है. जंगलों में रहने वाले इन लोगों की ज़मीन से ही सरकार खनिज निकाल रही है और ये लोग
गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाले संगठन ऑक्सफैम ने एक रिपोर्ट में कहा कि भुखमरी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक हो गई है. बीते एक साल में पूरी दुनिया में अकाल जैसे हालात का सामने करने वाले लोगों की संख्या छह गुना बढ़ी है.
सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि इसे विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह बहुत गंभीर मामला है. हम इस पर सुनवाई करेंगे. केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किए जाएं, जिन पर चार सप्ताह में जवाब दिया जाए.