झारखंड के लातेहार ज़िले में अभिभावकों और छात्रों ने एक शिक्षक स्कूलों वाले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार शिक्षकों की पोस्टिंग की मांग की. इस अधिनियम के तहत प्रत्येक स्कूल में कम से कम दो शिक्षक और प्रत्येक 30 बच्चों के लिए कम से कम एक शिक्षक होना चाहिए.
शिक्षा मंत्री ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों से अनुरोध किया है कि वे 'समग्र शिक्षा' के तहत प्रत्येक स्कूल के पुस्तकालयों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखित 'एग्ज़ाम वॉरियर्स' किताब उपलब्ध कराएं ताकि अधिकतम संख्या में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को प्रधानमंत्री के ज्ञान और दृष्टि से शिक्षा मिल सके.
घटना पश्चिम बंगाल के मालदा ज़िले के एक स्कूल में हुई. ज़िला प्रशासन ने परिजनों के आरोप की जांच के आदेश दिए हैं. छात्रों के माता-पिता का आरोप था कि मिड-डे मील के तहत चिकन परोसे जाने वाले दिन शिक्षक लेग-पीस और अन्य बेहतर हिस्से ख़ुद रख लेते थे और बचे-खुचे हिस्सों को बच्चों को परोसा जाता था.
दिल्ली विश्वविद्यालय में पीएचडी प्रवेश की अपारदर्शी प्रक्रिया ने छात्रों को ढेरों अनसुलझे सवालों के साथ छोड़ दिया है.
असम के शिक्षा मंत्री ने विधानसभा में बताया कि 1,100 से अधिक स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है और बिजली का कनेक्शन भी तक़रीबन इतने ही स्कूलों में नहीं है. इसके अलावा 2,900 स्कूल एक शिक्षक के भरोसे चलाए जा रहे हैं, जबकि लगभग 4,800 शैक्षणिक संस्थान एक कमरे में संचालित होते हैं.
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में को लेकर उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण से यह प्रदर्शित होता है कि वंचित और आदिवासी बच्चे शिक्षा विभाग द्वारा असहाय छोड़ दिए गए. स्कूल दो साल बंद रहे, लेकिन बच्चों के लिए कुछ नहीं किया गया. इस दौरान ऑनलाइन शिक्षा केवल मज़ाक बन कर रह गई, क्योंकि सरकारी स्कूलों में 87 प्रतिशत छात्रों की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं थी.
ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी कॉलेज टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन ने ऐलान किया है कि वे 16 से 18 नवंबर के बीच नई दिल्ली में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के कार्यालय के सामने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में अपनी मांगों के समाधान को लेकर प्रदर्शन करेंगे.
वाराणसी में सात नवंबर को पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में देव दीपावली पर गंगा घाटों पर दस लाख दीए जलाए जाने की योजना है. ज़िले के बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी आदेश के अनुसार इस मौक़े पर बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों को साढ़े तीन लाख दीप जलाने होंगे.
उत्तर प्रदेश के हापुड़ स्थित एक सरकारी प्राथमिक स्कूल का मामला. दो महिला शिक्षकों पर 11 जुलाई को कथित तौर पर दो दलित छात्राओं को अपना यूनिफॉर्म उतारने के लिए मजबूर करने का आरोप है. दोनों शिक्षकों को 13 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था.
मामला अलवर ज़िले के एक सरकारी स्कूल का है. पुलिस ने बताया कि स्कूल के पूरे स्टाफ को प्राथमिकी में आरोपी बनाया गया है और मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित हुई है. छात्राओं के परिजनों ने मेडिकल जांच कराने से इनकार कर दिया है, अब उनके बयान अदालत में दर्ज किए जाएंगे.
पश्चिम बंगाल स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति बिद्युत चक्रवर्ती शनिवार को उस समय विवादों में आ गए जब सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में कथित तौर पर उन्हें विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए पर्याप्त क़दम न उठाने के लिए शिक्षकों के एक वर्ग को ज़िम्मेदार ठहराते हुए देखा गया.
संयुक्त राष्ट्र एजेंसी यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 6-13 वर्ष के बीच के 42 प्रतिशत बच्चों ने स्कूल बंद होने के दौरान किसी भी प्रकार की दूरस्थ शिक्षा का उपयोग नहीं करने की सूचना दी. इसका मतलब है कि उन्होंने पढ़ने के लिए किताबें, वर्कशीट, फोन या वीडियो कॉल, वॉट्सऐप, यूट्यूब, वीडियो कक्षाएं आदि का इस्तेमाल नहीं किया है.
विश्वविद्यालयों की स्थापना के पीछे सैद्धांतिक रूप से यह विचार कहीं न कहीं ज़रूर था कि ये ऐसी नई पीढ़ी के विकास में सक्षम होंगे, जो सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों से मुक्त होगी. पर व्यावहारिक रूप से सामने यह आया कि विश्वविद्यालय इन बुराइयों को समाज से हटा तो नहीं सके, साथ ही ख़ुद इसका शिकार बन गए.
वीडियो: कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच ग्रामीण उत्तर प्रदेश में स्व-वित्तपोषित स्कूल जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कई छात्र कक्षाओं में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि उनके परिवारों के पास ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आवश्यक उपकरण- स्मार्ट फोन या लैपटॉप नहीं हैं. स्कूल प्रबंधन शिक्षकों को भुगतान करने में असमर्थ हैं.
प्रताप भानु मेहता के इस्तीफ़े के बाद हुई बहस के दौरान एक अध्यापक ने कहा कि निजी के मुक़ाबले सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में अधिक आज़ादी है. शायद वे सोचते हैं कि यहां अध्यापकों को उनकी सार्वजनिक गतिविधि के लिए कुलपति तम्बीह नहीं करते. पर इसकी वजह बस यह है कि इन विश्वविद्यालयों के क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देते.