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सरकार जिस उमर ख़ालिद उनके मज़हब तक सीमित कर देना चाहती है, पर वो एक गंभीर शोधार्थी हैं, जिनकी पीएचडी का विषय सिंहभूम का आदिवासी समाज हैं. उनकी थीसिस में लिखा गया हर शब्द एक ऐसे शख़्स को हमारे सामने लाता है, जो बेहद गहराई से लोकतंत्र और इसके अभ्यासों के साथ जिरह कर रहा है.
वीडियो: जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने वर्ष 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में भड़के दंगों से जुड़े एक मामले में जेल में 1,000 दिन पूरे कर लिए हैं. बीते दिनों उनकी रिहाई की मांग और उनके समर्थन में हुई एक सभा में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने अपने विचार रखे.
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने वर्ष 2020 में उत्तर पूर्व दिल्ली में भड़के दंगों से जुड़े एक मामले में जेल में 1,000 दिन पूरे कर लिए हैं. ख़ालिद को दिल्ली पुलिस द्वारा सितंबर 2020 में गिरफ़्तार किया गया था और उन पर यूएपीए और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं.
अमेरिकी विदेश विभाग की 2022 में भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर जारी एक वार्षिक रिपोर्ट में मनमानी गिरफ़्तारियों, यूएपीए के इस्तेमाल और 'बुलडोज़र न्याय' जैसी विभिन्न घटनाओं का ज़िक्र करते हुए देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है.
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के पूर्व जज वाली फैक्ट-फाइंडिंग समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गृह मंत्रालय की लापरवाह प्रतिक्रिया, हिंसा में दिल्ली पुलिस की मिलीभगत, मीडिया की विभाजनकारी रिपोर्टिंग और सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ भाजपा का घृणा अभियान दिल्ली दंगों के लिए ज़िम्मेदार थे.
जेएनयू के कुलपति के रूप में एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकीं शांतिश्री डी. पंडित ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विश्वविद्यालय की छवि ‘राष्ट्र विरोधी’ के तौर पर बना दी गई, लेकिन अब जेएनयू अकादमिक नवोन्मेष और अनुसंधान उत्कृष्टता के रूप में लौट आया है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद के आवेदन पर नोटिस जारी कर तिहाड़ जेल के अधीक्षक से जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी. उमर उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगा मामले में सितंबर 2020 से जेल में बंद हैं.
दिल्ली दंगों संबंधी मामले में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार उमर ख़ालिद ने अपनी बहन की शादी के मद्देनज़र दो सप्ताह की अंतरिम ज़मानत मांगी थी. अदालत ने उन्हें 23 से 30 दिसंबर की अवधि के लिए ज़मानत देते हुए कहा कि वे इसके विस्तार की मांग न करें.
उत्तर-पूर्व दिल्ली में साल 2020 के दंगों से जुड़े एक मामले में दिल्ली की एक अदालत ने बीते तीन दिसंबर को कार्यकर्ता उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी को आरोपमुक्त कर दिया था.
मामले में बरी किए जाने के बावजूद कार्यकर्ता उमर ख़ालिद और ख़ालिद सैफ़ी जेल में अभी रहेंगे, क्योंकि उन पर दंगों से संबंधित एक अन्य मामले में ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं. दोनों दो साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं. उमर को सितंबर 2020 और सैफ़ी को फरवरी 2020 में गिरफ़्तार किया गया था.
दिल्ली दंगों संबंधी मामले में यूएपीए के तहत गिरफ़्तार उमर ख़ालिद ने अपनी बहन की शादी के मद्देनज़र दो सप्ताह की अंतरिम ज़मानत के लिए दिल्ली की एक अदालत में अर्ज़ी दायर की है. पुलिस ने इसका विरोध करते हुए कहा है कि उनकी रिहाई से ‘समाज में अशांति’ पैदा हो सकती है.
भारत में अदालतों में न्याय अब अपवाद बनता जा रहा है. ख़ासकर जब न्याय मांगने वाले मुसलमान हों या मोदी सरकार के आलोचक या विरोधी हों.
दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत से इनकार करते हुए कहा कि उमर ख़ालिद मामले के अन्य सह-आरोपियों के साथ लगातार संपर्क में थे और उनके ख़िलाफ़ आरोप प्रथमदृष्टया सही हैं. दिल्ली पुलिस द्वारा सितंबर 2020 में गिरफ़्तार ख़ालिद ने ज़मानत का अनुरोध करते हुए अपनी अर्ज़ी में कहा था कि उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुई हिंसा में उनकी कोई आपराधिक भूमिका नहीं थी.
अक्सर सोचता हूं, यह अंधेरी सुरंग कितनी लंबी है? क्या कोई रोशनी दिखाई दे रही है? क्या मैं इसके अंत के नज़दीक हूं या अब तक सिर्फ आधी दूरी ही तय की है? या आज़माइश का दौर अभी बस शुरू ही हुआ है?