इस्मत चुग़ताई: बुरी बातें करने वाली भली औरत

वीडियो: यूं तो इस्मत चुग़ताई को उर्दू साहित्यकार माना जाता है, लेकिन उनका पाठक और प्रशंसक वर्ग हिंदी में भी उतना ही बड़ा है. उर्दू के जिन चार प्रगतिशील साहित्यकारों में उनका नाम शामिल है, उन्होंने समूचे भारतीय साहित्य को एक नई दिशा देने में अहम भूमिका निभाई. उनकी याद के बहाने स्त्री मन को टटोलने की कोशिश.

धर्म के द्वेष को मिटाना इस वक़्त का सबसे ज़रूरी काम है…

सदियों से एक दूसरे के पड़ोस में रहने के बावजूद हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के धार्मिक सिद्धांतों से अपरिचित रहे हैं. प्रेमचंद ने अपने एक नाटक की भूमिका में लिखा भी है कि 'कितने खेद और लज्जा की बात है कि कई शताब्दियों से मुसलमानों के साथ रहने पर भी अभी तक हम लोग प्रायः उनके इतिहास से अनभिज्ञ हैं. हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का एक कारण यह है कि हम हिंदुओं को मुस्लिम महापुरुषों के सच्चरित्रों का ज्ञान नहीं.'

रोहज़िन: इंसानी रूहों की आंतरिक व्यथा और बरसों से ठहरी उदासी की कहन…

पुस्तक समीक्षा: लेखक रहमान अब्बास के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उर्दू उपन्यास 'रोहज़िन' का अंग्रेज़ी तर्जुमा कुछ समय पहले ही प्रकाशित हुआ है. यह उपन्यास किसी भी दृष्टि से टाइप्ड नहीं है. यह लेखक के अनुभव और कल्पना का सुंदर मिश्रण है, जिसे पढ़ते हुए पाठक एक साथ यथार्थ और अतियथार्थ के दो ध्रुवों में झूलता रहता है.

गोपी चंद नारंग का जाना उर्दू अदब की साझी विरासत के प्रतीक का जाना है…

स्मृति शेष: बीते दिनों प्रसिद्ध आलोचक, भाषाविद और उर्दू भाषा व साहित्य के विद्वान डॉ. गोपी चंद नारंग नहीं रहे. ऐसे समय में जब उर्दू भाषा को धर्म विशेष से जोड़कर उसकी समृद्ध साझी विरासत को भुला देने की कोशिशें लगातार हो रही हैं, डॉ. नारंग का समग्र कृतित्व एक भगीरथ प्रयास के रूप में सामने आता है.

कर्मचारियों ने कहा, डीडी पर उर्दू न्यूज़ बुलेटिन घटाने को लेकर प्रसार भारती का ‘खंडन’ भ्रामक

द वायर की एक ख़बर में दूरदर्शन के मुख्य उर्दू चैनल पर उर्दू न्यूज़ बुलेटिन की संख्या घटाने की बात उठाई गई थी. इसका 'खंडन' करते हुए प्रसार भारती द्वारा किए गए ट्वीट में मूल सवाल को नज़रअंदाज़ करते हुए इसके सभी नेटवर्क पर प्रसारित हो रहे उर्दू बुलेटिन की संख्या गिनवाई गई है.

मध्य प्रदेश में पुलिस शब्दावली में उर्दू, फ़ारसी के शब्दों को हिंदी से बदलने की प्रक्रिया शुरू

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पिछले महीने पुलिस कार्रवाई में प्रयुक्त होने वाले अन्य भाषाओं के शब्दों को हिंदी के प्रचलित शब्दों से बदलने की घोषणा की थी. विभिन्न ज़िलों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को ग़ैर हिंदी के शब्दों को आधिकारिक शब्दावली से बदलने के बारे में सात दिन के अंदर सुझाव देने को कहा है.

क्या प्रसार भारती कर रहा है उर्दू भाषा की अनदेखी?

वीडियो: कोविड-19 से पहले डीडी न्यूज़ और ऑल इंडिया रेडियो, दोनों से उर्दू के दस बुलेटिन प्रसारित होते थे. 2020 में महामारी की पहली लहर के दौरान कोविड प्रोटोकॉल के कारण हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू डेस्क पर बुलेटिनों की संख्या कम कर दी गई थी. बाद में सभी भाषाओं के कार्यक्रम बहाल हुए, लेकिन डीडी न्यूज़ पर उर्दू के केवल दो और ऑल इंडिया रेडियो पर तीन बुलेटिन शुरू किए गए.

लद्दाख: राजस्व विभाग की नौकरियों से उर्दू जानने की अनिवार्यता ख़त्म करने के निर्णय पर विवाद

लद्दाख के राजस्व विभाग की नौकरियों के लिए उर्दू जानने की अर्हता ख़त्म करने के फ़ैसले पर स्थानीय नेताओं का कहना है कि यह लेह ज़िले और मुस्लिम बहुल कारगिल के बीच वैचारिक मतभेद खड़ा करने के उद्देश्य से लिया गया सांप्रदायिक क़दम है, लेकिन इससे राजनीतिक फायदा नहीं होगा, बस प्रशासन के स्तर पर समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

कर्नाटक: सरकारी कॉलेज में हिजाब पहनने वाली छात्राओं को कक्षा में प्रवेश देने से इनकार

मामला उडुपी के महिला पीयू कॉलेज का है. छह मुस्लिम छात्राओं का आरोप है कि प्राचार्य उन्हें कक्षा में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. साथ ही उन्हें उर्दू, अरबी और बेरी भाषा में बात करने नहीं दी जा रही है. प्राचार्य का कहना है कि छात्राएं परिसर में हिजाब पहन सकती हैं लेकिन कक्षा में इसकी इजाज़त नहीं है.  

भाजपा ने दिवाली को नफ़रत के त्योहार में बदल दिया है

फैब इंडिया के एक हालिया विज्ञापन पर आपत्ति के बाद कंपनी का उसे हटाने का फ़ैसला उसी बीमारी को उजागर करता है, जिसका भारत को डटकर सामना करने की ज़रूरत है.

फैब इंडिया का विज्ञापन वापस लेना देश के उद्योग जगत की प्राथमिकताएं दिखाता है

मिश्रित संस्कृति, भाषा की यात्रा आदि की शिक्षा का अब कोई लाभ नहीं है. उर्दू या मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रचार किसी अज्ञानवश नहीं किया जा रहा. यह उनके रोज़ाना अपमान का ही एक हिस्सा है. टाटा के बाद फैब इंडिया ने भी इसी अपमान को शह दी है.

हिंदुस्तान में चल रही भाषाई सियासत पर गांधी का क्या नज़रिया था…

महात्मा गांधी का मानना था कि अगर हमें अवाम तक अपनी पहुंच क़ायम करनी है तो उन तक उनकी भाषा के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है. इसलिए वे आसान भाषा के हामी थे जो आसानी से अधिक से अधिक लोगों की समझ में आ सके. लिहाज़ा गांधी हिंदी और उर्दू की साझी शक्ल में हिंदुस्तानी की वकालत किया करते थे.

रशीद जहां: उर्दू अदब की बाग़ी आवाज़…

जन्मदिन विशेष: 20वीं सदी में भारतीय नारीवाद के शैशवकाल में रशीद जहां न केवल स्त्रियों के विषय में विचार कर सकने वाली उभरती आवाज़ बनीं, बल्कि आने वाले समय के नारीवादी साहित्य के लिए उन्होंने ब्लूप्रिंट तैयार किया. उनका जीवन संक्षिप्त था, रचनाएं कम हैं, पर उनका प्रभाव युगांतरकारी है.

इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी: सब धुआं हो जाएंगे इक वाक़या रह जाएगा…

स्मृति शेष: पिछले दिनों उर्दू साहित्यकार और 90 वर्षों से ज़्यादा से छपने वाली पत्रिका ‘शायर’ के संपादक इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी इस दुनिया से चले गए. 'शायर' उन्हें पुरखों से विरसे में मिली थी, जिसे बनाए रखने का सफ़र आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने ज़िंदगीभर अपना सब कुछ लगाकर इसे मुमकिन किया.