बहुत साल पहले पाकिस्तान की कवियित्री फ़हमीदा रियाज़ ने लिखा था कि 'तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छुपे थे भाई. वो मूरखता वो घामड़पन, जिसमें हमने सदी गंवाई, आख़िर पहुंची द्वार तुम्हारे... देश के आज के हालात में ये पंक्तियां सच के काफ़ी क़रीब नज़र आती हैं.
इन आरोपियों में भाजपा विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा, कपिल देव शामिल हैं. दंगे से पहले जाट समुदाय के लोगों द्वारा बुलाई के गई महापंचायत के संबंध में ये केस दर्ज किया गया था. भाजपा विधायकों पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.
300 साल पुराना जन्मस्थान मंदिर 1980 के दशक में शुरू हुए रामजन्मभूमि आंदोलन के पहले राम के जन्म से जुड़ा था और एक मुस्लिम ज़मींदार द्वारा दान दी गई ज़मीन पर बनाया गया था. यह राम की सह-अस्तित्व वाली उस अयोध्या का प्रतीक था, जिसका नामो-निशान अब नज़र नहीं आता.
वीडियो: 6 दिसंबर 2019 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल पूरे हो गए. हम भी भारत की इस कड़ी में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की इस बारे में सामजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और वरिष्ठ पत्रकार कुर्बान अली से बातचीत कर रही हैं.
6 दिसंबर 1992 को सिर्फ एक मस्जिद नहीं गिरायी गई थी, उस दिन संविधान की बुनियाद पर खड़ी लोकतंत्र की इमारत पर भी चोट की गई थी. अतीत में जो कुछ हुआ उसे फिर से उलट-पलट कर देखने का मौका साहित्य देता है. हिंदी साहित्य में यह घटना भी कई रूपों में दर्ज है.
इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.
सुप्रीम कोर्ट भी विवादित भूमि रामलला को देते हुए यह नहीं सोचा कि उसका फ़ैसला न सिर्फ छह दिसंबर, 1992 के ध्वंस बल्कि 22-23 दिसंबर, 1949 की रात मस्जिद में मूर्तियां रखने वालों की भी जीत होगी. ऐसे में अदालत का इन दोनों कृत्यों को ग़ैर-क़ानूनी मानने का क्या हासिल है?
बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि ज़मीन विवाद में ‘सार्वजनिक शांति और सौहार्द’ बनाए रखने के लिए विवादित ज़मीन को न बांटने का जजों का निर्णय बहुसंख्यक दबाव से प्रभावित लगता है, जिसमें मुस्लिम पक्षकारों के क़ानूनी दावे को नज़रअंदाज़ कर दिया गया.
पुस्तक अंश: अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद में वर्ष 1949 में मूर्ति रखने के बाद की घटनाएं यह प्रमाणित करती हैं कि कम-से-कम फ़ैज़ाबाद के तत्कालीन ज़िलाधीश केकेके नायर तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत यदि मूर्ति स्थापित करने के षड्यंत्र में शामिल न भी रहे हों, तब भी मूर्ति को हटाने में उनकी दिलचस्पी नहीं थी.
पुस्तक अंश: फ़ैज़ाबाद में 1948 में हुए उपचुनाव में समाजवादी नेता आचार्य नरेंद्र देव मैदान में थे. कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ देवरिया के बाबा राघव दास को अपना प्रत्याशी बनाया. चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने कहा था कि आचार्य नरेंद्र की विद्वत्ता का लोहा भले दुनिया मानती है, लेकिन वे नास्तिक हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी?
आज जब यह सच्चाई और कड़वी होकर हमारे सामने है कि उस दिन बाबरी मस्जिद को शहीद करने वालों ने न सिर्फ अयोध्या बल्कि शेष देश में भी बहुत कुछ ध्वस्त किया था, यह देखना संतोषप्रद है कि देश के कवियों ने इस सच्चाई को समय रहते पहचाना और उसे बयां करने में कोई कोताही नहीं बरती.
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज अशोक कुमार गांगुली ने बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि संविधान के लागू होने के बाद वहां पहले क्या था, यह सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी नहीं है. उस समय भारत कोई लोकतांत्रिक गणतंत्र नहीं था. अगर हम इस तरह बैठकर फैसला देंगे तो बहुत सारे मंदिर, मस्जिद और अन्य ढांचों को तोड़ना पड़ेगा.
राम जन्मभूमि आंदोलन के शिल्पकार एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम पक्ष को पांच एकड़ ज़मीन अलग से देने के फैसले का भी स्वागत किया.
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद काशी और मथुरा के धार्मिक स्थलों को लेकर विहिप की आगामी योजना के बारे में पूछे जाने पर विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु सदाशिव कोकजे ने कहा कि बाकी विषयों पर समाज के रुख को राम मंदिर निर्माण के बाद देखा जाएगा.
अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में भावी योजना के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ आंदोलन नहीं करता, संघ का काम मनुष्य निर्माण है.