संभल पर मंडराते अनुत्तरित प्रश्न: क्या मस्जिद पर हुआ विवाद सुनियोजित था?

उन्नीस नवंबर को याचिका दायर हुई, उन्नीस को ही अदालत ने सर्वे की अनुमति दे दी. उसी दिन सर्वे भी हो गया. जामा मस्जिद का पहला सर्वे रात के अंधेरे में हुआ, तो दूसरा एकदम सुबह हो गया. जो आधिकारिक प्रक्रिया दिन की रौशनी में आराम से पूरी हो सकती थी, उसे बेवक्त अंजाम दिया गया. ऐसा कब होता है कि किसी ऐतिहासिक इमारत का सर्वे पहले अंधेरे में हो, और उसके बाद सुबह जब लोग अमूमन दुकान भी नहीं

संभल मस्जिद: सुप्रीम कोर्ट का ट्रायल कोर्ट की सुनवाई रोकने का निर्देश, कहा- तटस्थ रहना होगा

सुप्रीम कोर्ट ने संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले अदालती आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति की याचिका सुनते हुए याचिकाकर्ताओं से हाईकोर्ट जाने को कहा है. साथ ही, ज़िला प्रशासन से यह सुनिश्चित करने को कहा कि इलाके में शांति बनी रहे.

देवांगना कलीता की केस डायरी से छेड़छाड़ से जुड़ी याचिका पर दिल्ली पुलिस को हाईकोर्ट का नोटिस

दिल्ली दंगा मामले में जून 2021 में तिहाड़ जेल से ज़मानत पर रिहा हुईं देवांगना कलीता केस डायरी को सुरक्षित रखने की मांग करते हुए आरोप लगाया कि पुलिस ने केस डायरी में ‘पूर्ववर्ती’ बयान जोड़े हैं और सबूतों से छेड़छाड़ की है.

आज की तारीख़ में गांधी

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इस समय गांधी सच्चे प्रतिरोध, प्रगतिशीलता, अध्यात्म और सच-प्रेम-सद्भाव-न्याय पर आधारित राजनीति के सबसे उजले प्रतीक हैं. उनकी मूल्यदृष्टि को पुनर्नवा कर भारत की बहुलता, उसकी आत्मा और अंतःकरण बचाए जा सकते हैं.

भारतीय समाज में हिंसा के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पांचेक दशक पहले गुंडई को अनैतिक माना जाता था और समाज में उसकी स्वीकृति नहीं थी. आज हम जिस मुक़ाम पर हैं उसमें गुंडई को लगभग वैध माना जाने लगा है- उस पर न तो ज़्यादातर राजनीतिक दल आपत्ति करते हैं, न ही मीडिया.

हल्द्वानी हिंसा: हाईकोर्ट ने 50 आरोपियों को डिफ़ॉल्ट ज़मानत दी, कहा- अतिरिक्त अवधि बढ़ाना ग़लत

फरवरी में उत्तराखंड के हल्द्वानी में एक मदरसे को गिराए जाने के ख़िलाफ़ मुसलमानों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 60 लोग घायल हुए थे. प्रदर्शन में कथित संलिप्तता के लिए 84 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था.

भारत में धर्मांतरण विरोधी क़ानून, तोड़फोड़ व हेट स्पीच में वृद्धि चिंताजनक: एंटनी ब्लिंकन

दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के मामलों का उल्लेख करते हुए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि उन्होंने भारत में धर्मांतरण विरोधी क़ानून, हेट स्पीच, अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के लोगों के घरों और पूजा स्थलों को तोड़ने के मामलों में चिंताजनक वृद्धि को दर्ज किया है.

क्या हैं विफलता के कर्तव्य?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विफल होने के बाद क्या करें या न करें यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि आपका क्या-कुछ दांव पर लगा है.

क्यों कल्लू ने बदला नाम

नागार्जुन की कविता ‘तेरी खोपड़ी के अंदर’ स्वतंत्रता के बाद विकसित हुए भारतीय जीवन पर एक फटकार है. कविता में जनतंत्र स्तंभ की सोलहवीं क़िस्त.

इज़रायल का जन्म: सहमति का मिथ और असहमति का इतिहास

फ़िलिस्तीन का उपनिवेशीकरण विभाजित पश्चिमी समाज के लिए एकता क़ायम करने का ज़रिया बन जाता है. यहूदी समस्या पश्चिम को दिखाई देती है, वहीं फ़िलिस्तीन को वह नज़रअंदाज़ करता है. एडवर्ड सईद ने इसे ‘दोहरा विज़न’ कहा है.

लोकतंत्र ही नहीं हमारी मानवीयता में भी लगातार कटौती हो रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी अंचल इस समय भाजपा और हिंदुत्व के प्रभाव में है, लगभग चपेट में. इस दौरान सार्वजनिक व्यवहार में कुल पंद्रह क्रियाओं से ही काम चलता है. ये हैं: रोकना, दबाना, छीनना, लूटना, चिल्लाना, मिटाना, मारना, पीटना, भागना, डराना-धमकाना, ढहाना, तोड़ना-फोड़ना, छीनना, फुसलाना, भूलना-भुलाना.

कविता का हस्तक्षेप

हर राजनीतिक दल जनता को जागरूक करना चाहता है. लेकिन अगर ‘पब्लिक’ सब जानती है तो उसे जागरूक करने की आवश्यकता ही क्यों हो?

लोकसभा चुनाव: मतदान के दौरान मणिपुर में गोलीबारी, बंगाल में झड़पें

पिछले 11 महीने से जातीय हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर की इनर मणिपुर लोकसभा सीट पर मतदान के दौरान हिंसा होने के साथ-साथ बूथ कैप्चरिंग के भी आरोप लग रहे हैं.

देश के विभिन्न हिस्सों में रामनवमी पर झड़पें हुईं, कई घायल

महाराष्ट्र के नागपुर में रामनवमी जुलूस के दौरान झंडा फाड़ने की अफवाह पर दो समूह आपस में भिड़ गए और एक-दूसरे पर पथराव किया. वहीं, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में रामनवमी के दौरान झड़पों में पुलिसकर्मियों सहित 18 लोग घायल हो गए.

भारत एक असभ्य-अभद्र-बर्बर युग में प्रवेश कर चुका है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंसा को सार्वजनिक अभिव्यक्ति का लगभग क़ानूनी माध्यम स्वीकार किया जाने लगा है. समाज उसे और उसके फैलाव को लेकर, उसके साथ जुड़े झूठों और घृणा को लेकर विचलित नहीं है. पढ़े-लिखे लोग उसे अवसर मिलते ही, उचित ठहराने लगे हैं.

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