सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि खाद्यान्न देते हुए प्रशासन उन प्रवासी कामगारों को पहचान पत्र दिखाने पर ज़ोर न दे, जिनके पास फ़िलहाल दस्तावेज़ नहीं हैं. पीठ ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों को यह निर्देश भी दिया कि वे कोविड-19 के कारण फंसे प्रवासी कामगारों में से जो घर जाना चाहते हैं, उनके लिए परिवहन की समुचित व्यवस्था करें.
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुए रेहड़ी-पटरी वाले विक्रेताओं को उनकी आजीविका फिर शुरू करने के लिए सस्ते कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री स्वनिधि की शुरुआत की गई थी. अब कुछ बैंकों ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर लोन वसूलने में मदद करने को कहा है.
भोजन का अधिकार अभियान द्वारा कराए गए सर्वे में अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिमों समेत धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोग शामिल थे. सर्वे के अनुसार लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था. हालांकि सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन के सोना पड़ा.
पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी नाम के एक समूह ने मनरेगा पर एक रिपोर्ट जारी कर तेज़ी से ख़त्म होती आवंटित राशि की ओर ध्यान दिलाते हुए सरकार से आवंटन तथा कार्य दिवस तत्काल बढ़ाने की मांग की है.
केंद्र द्वारा ‘सफल’ घोषित की गई इस योजना के तहत आठ लाख टन खाद्यान्न वितरण का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार इसमें से सिर्फ 2.65 लाख टन राशन का वितरण हुआ है.
देश का इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पैसे के लिए मोहताज है, लेकिन सरकार हवाई क़िले बनाकर देश को इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के एक्सप्रेस-वे पर दौड़ाने का स्वांग रच रही है. कृषि क्षेत्र के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान इसी स्वांग का हिस्सा है.
कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए इस साल मनरेगा का बजट बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था. सरकारी आंकड़े दर्शाते हैं कि अब तक इसमें से 48,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि ख़र्च हो चुकी है. ऐसे में कई ग्राम पंचायतों के पास मनरेगा के तहत काम कराने के लिए पैसे नहीं बचे हैं.
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत भी जून महीने में कम से कम 15.58 करोड़ लाभार्थियों को राशन नहीं मिला है. कम वितरण के कारण अब केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत प्रवासी मज़दूरों को राशन देने की समयसीमा बढ़ाकर 31 अगस्त 2020 तक कर दी है.
कैबिनेट ने साढ़े छह दशक पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन को भी मंजूरी दे दी ताकि अनाज, दलहन और प्याज सहित खाद्य वस्तुओं को नियमन के दायरे से बाहर किया जा सके.
वित्त मंत्रालय द्वारा जारी की गई प्रेस रिलीज से यह भी पता चलता है कि सरकार को अप्रैल और मई महीने में जितनी दाल बांटनी चाहिए थी, उसका सिर्फ 40 फीसदी ही बांटा गया है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि प्रवासी श्रमिकों और गरीबों को खाद्यान्न देना पर्याप्त नहीं है. उन्हें खाना पकाने के लिए सब्जियां और तेल की भी आवश्यकता होती है और सबसे महत्वपूर्ण पैसा और आश्रय की जरूरत है.
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि लोन की किस्त भरने में तीन और महीने की मोहलत दी गई है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि उनका संदेश है कि सरकार उद्योग के साथ है. सरकार से जितना हो सकेगा वे उनकी मदद के लिए तैयार हैं.
कोरोना संकट से बढ़ती बेरोजगारी में मनरेगा रोजगार गारंटी योजना ही एकमात्र सहारा रह गया है. लोगों को रोजगार देने की उचित नीति नहीं होने के कारण मोदी सरकार को अपने कार्यकाल में मनरेगा का बजट लगभग दोगुना करना पड़ा है और हाल ही में घोषित अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये को जोड़ दें तो ये करीब तीन गुना हो जाएगा.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना आथिक पैकेज की पांचवीं और आखिरी किस्त में मनरेगा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा, कारोबार, कंपनी अधिनियम के उल्लंघनों को गैर-आपराधिक बनाने, कारोबार की सुगमता, सार्वजनिक उपक्रम और राज्य सरकारों से जुड़े संसाधनों के संबंध में घोषणाएं की.