‘हिंदुस्तान की सरज़मीं बहुत देर तक नफ़रत बर्दाश्त नहीं कर सकती’

मशहूर शायर और यूपी विधान परिषद सदस्य वसीम बरेलवी ने कहा, हमारी विचारधारा एक है. इतनी भाषाओं, मज़हब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे.

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मशहूर शायर और यूपी विधान परिषद सदस्य वसीम बरेलवी ने कहा, हमारी विचारधारा एक है. इतनी भाषाओं, मज़हब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे.

Waseem Barelvi Chandigarh Sahitya Akademi
शायर वसीम बरेलवी. (फोटो साभार: चंडीगढ़ साहित्य अकादमी)

लखनऊ: मशहूर शायर वसीम बरेलवी का मानना है कि हिंदुस्तान के समाज में जितनी भी नफ़रतें और कड़वाहटें हैं, उनका सिर्फ एक इलाज है मोहब्बत. मोहब्बत की ताकतों को इतना मज़बूत करना पड़ेगा कि समाज में फैली नफ़रत की शिकस्त हो जाए क्योंकि हिंदुस्तान की सरज़मीं बहुत देर तक इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती.

उन्होंने कहा, हमारा देश इसलिए विश्वगुरु कहलाता है क्योंकि हमारे पास पांच हज़ार साल पुरानी आपसी भाईचारे की संस्कृति है, सहनशीलता है, हमारी विचारधारा एक है. इतनी भाषाओं, मज़हब, अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम एक थे, एक हैं और हमेशा एक रहेंगे. दुनिया का कोई भी ऐसा देश बता दें जहां इतनी विभिन्नताओं के बाद भी इतनी संस्कृतियां एक साथ समाहित हैं.

उत्तर प्रदेश विधान परिषद के नामित सदस्य ज़ाहिद हसन वसीम बरेलवी बुधवार को परिषद में हो रहे सदस्यों के हंगामे के बीच में एक कोने में खामोशी से बैठे थे.

उन्होंने उम्मीद ज़ाहिर की कि जल्द ही नफ़रत का यह माहौल ख़त्म हो जाएगा क्योंकि हमारा मुल्क सभी मज़हबों, संस्कृतियों, भाषाओं को एक साथ लेकर चलने वाला देश है. उन्होंने अपनी बात की शुरुआत एक शेर से की…

वह मेरे चेहरे तक अपनी नफ़रतें लाया था,
मैंने उसके हाथ चूमे और बेबस कर दिया.

उन्होंने कहा, मैंने कौमी एकता को जिया ही नहीं बल्कि अपनी आत्मा में समा लिया है. उन्होंने कहा, नफ़रत के बल पर कोई चीज़ चलाई जाएगी तो उसकी उम्र बहुत कम होगी, हम मोहब्बत के पैरोकार हैं. टकराव और सदभाव दो चीज़े हैं जब टकराव से घर नहीं चल सकता तो समाज क्या चलेगा. मौजूदा माहौल में हमें यह सोचना है कि कैसे इस वक्ती टकराव को सदभाव में बदला जाए.

शायर वसीम बरेलवी ने कहा, मैं कालिदास, प्रेमचंद्र और ग़ालिब का वंशज हूं, हमें सारी नफ़रतों का जवाब मोहब्बत से देना होगा. जितना हम मोहब्बत और रचनात्मकता की ताकतों को मज़बूत करेंगे, उतना ही हम समाज की नकरात्मकता को दूर भगा सकेंगे.

उन्होंने कहा, हमारे लिए पहली प्राथमिकता समाज है, समाज को चलाने वाली सरकारें तो आती-जाती रहती हैं. समाज को ज़िंदा रखने के लिए हमें उन सभी ताकतों के हाथ मज़बूत करने होंगे जो हिंदुस्तान की सदियों पुरानी विचारधारा में यकीन रखते हैं.

मुल्क के मौजूदा हालात पर उन्होंने कहा कि हमारी पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता है, हमने बहुत कुछ सहन किया है, हम अपने मुल्क हिंदुस्तान को ज़िंदा रखना चाहते हैं. आजकल जो भी लोग नफ़रत की राजनीति कर रहे हैं वह वक्ती चीज़ है, इससे मुल्क में कुछ बदलने-बिगड़ने वाला नहीं है.

उन्होंने आगे कहा, हमें ख़राब ज़हनियत को बदलना होगा, हमें सबको एक साथ लेकर चलना है, हमें उम्मीद ही नहीं यकीन है कि यह देश बहुत दिन नफ़रत बर्दाश्त नहीं कर सकता. क्योंकि यह हमारे मुल्क की मिट्टी के मिजाज़ के ख़िलाफ़ है. हमारे आपस के सदियों पुराने रिश्ते को आप कुछ दिन में ख़त्म नहीं कर सकते हैं.

वसीम बरेलवी को पिछली सरकार ने कला साहित्य के क्षेत्र में विधान परिषद के लिए नामित किया था. उनका कहना है कि कवियत्री महादेवी वर्मा के बाद वह दूसरे साहित्यकार हैं जो कला साहित्य के क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में नामित किए गए हैं.

प्रोफेसर वसीम बरेलवी को उनकी शायरी के लिए फ़िराक़ इंटरनेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है. वह नेशनल काउंसिल फॉर प्रोमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज के वाइस चेयरमैन हैं. उनका जन्म 18 फरवरी 1940 को बरेली में हुआ था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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