एक्सक्लूसिव रिपोर्ट: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कृषि क़ानूनों का समर्थन करते हुए कहा है कि उनकी सरकार ने 2006 में एपीएमसी एक्ट ख़त्म कर दिया, जिसका बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला. हालांकि आधिकारिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि बिहार के कृषि मंत्रालय ने केंद्र को पत्र लिखकर बताया था कि उनके यहां न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही अनाज ख़रीदने की अच्छी व्यवस्था.
नई दिल्ली: मोदी सरकार के विवादित कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलनों के बीच हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र का समर्थन करते हुए कहा था कि उनकी सरकार ने साल 2006 में एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समितियां) एक्ट को खत्म किया था, जिससे बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिला है और अब इसी की तर्ज पर देश भर में ये कानून लागू किया जा रहा है.
उन्होंने कहा था, ‘पहले से ही वर्ष 2006 में बिहार में किसानों के हित में इस तरह की व्यवस्था लागू की गई है. अब यह व्यवस्था पूरे देश में लागू की गई है. बिहार में यह व्यवस्था लागू होने से किसानों को किसी प्रकार की समस्या नहीं हुई है. बिहार इसका उदाहरण है. यहां किसानों को किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं हो रही है और अनाज खरीद का कार्य चल रहा है. इस वर्ष 30 लाख टन से ज्यादा धान खरीद का लक्ष्य रखा गया है.’
इसके साथ ही नीतीश कुमार ने ये भी कहा कि कृषि बिल से किसानों के फसल खरीद में कोई कठिनाई नहीं होने वाली है. किसानों में अकारण गलतफहमी पैदा की जा रही है.
हालांकि द वायर द्वारा प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेजों से पता चलता है कि बिहार के कृषि मंत्रालय ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर बताया था कि उनके यहां न तो पर्याप्त गोदाम हैं और न ही खरीदी व्यवस्था अच्छी है, जिसके कारण किसानों को कम दाम पर अपनी उपज बेचनी पड़ती है.
केंद्र सरकार द्वारा साल 2020 की खरीफ फसलों के लिए न्यनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा से पहले राज्य के कृषि सचिव डॉ. एन. सरवना कुमार ने 22 मई 2020 को भेजे अपने पत्र में कहा था कि राज्य के उत्पादन लागत को ध्यान में रखते हुए धान की एमएसपी 2,532 रुपये प्रति क्विंटल और मक्का की एमएसपी 2,526 रुपये प्रति क्विंटल तय की जानी चाहिए.
हालांकि केंद्र ने धान की एमएसपी 1,868 रुपये और मक्का की एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल तय की है, जो बिहार सरकार के प्रस्ताव से काफी कम है.
अपनी इस मांग के समर्थन में कुमार ने कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में सलाहकार डॉ. श्रबानी गुहा को लिखा, ‘बिहार प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य है और धान यहां की प्रमुख खरीफ फसल है. लेकिन मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर, गोदाम और खरीद सुविधाएं न होने के कारण किसानों को कम मूल्य पर अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं और उन्हें लाभ नहीं मिलता है.’
संभवत: यह पहला ऐसा मौका है जब बिहार सरकार ने ये स्वीकार किया है कि उनके यहां कि खरीद व्यवस्था सही नहीं है, जिसके कारण किसानों को औने-पौने दाम पर अपने उत्पाद को बेचना पड़ता है.
यह बिहार के सहकारिता विभाग के उस दावे के भी विपरीत है, जो कि सितंबर महीने में द वायर द्वारा बिहार में गेहूं खरीद पर की गई एक स्टोरी के जवाब में बताया गया था.
विभाग ने कहा था कि राज्य में व्यापार मंडल और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) का उचित स्तर पर जाल बिछाया गया है, जो कि रिकॉर्ड खरीद कर रही है. हालांकि द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किसानों की मदद के दावे के बीच सरकार ने खरीद लक्ष्य का एक फीसदी गेहूं भी नहीं खरीदा है.
इसके अलावा बिहार का अधिकतर भू-भाग लंबे समय के लिए बाढ़ से भी प्रभावित रहता है, जिसके कारण उत्पादन लागत बढ़ती है और उत्पादन में कमी आती है.
इसका हवाला देते हुए बिहार कृषि सचिव ने अपने पत्र में कहा है, ‘चूंकि राज्य में बड़ी संख्या में छोटे व मझोले किसान हैं, नई तकनीक अपनाने की रफ्तार काफी धीमी है, सामाजिक-आर्थिक स्थिति काफी खराब है, दक्षिणी बिहार वर्षा आधारित खेती पर निर्भर है और दक्षिण-पश्चिम मानसून अनियमित रहता है, इसलिए इन पहलुओं को भी ध्यान में रखते हुए एमएसपी बढ़ाई जानी चाहिए ताकि किसानों को लाभ हो.’
हालांकि ने केंद्र ने बिहार राज्य के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.
Bihar Agriculture Ministry … by The Wire
मालूम हो कि बिहार की भाजपा समर्थित नीतीश सरकार ने साल 2006 में राज्य की एपीएमसी (कृषि उत्पाद विपणन समिति) एक्ट को खत्म कर दिया था और ये दावा था कि इससे राज्य में बड़ी संख्या में प्राइवेट खरीददार आएंगे, जिससे मार्केट में किसानों के सामने बहुत सारे विकल्प होंगे और वे उचित दाम प्राप्त कर सकेंगे.
हालांकि हकीकत ये है कि इस कानून को खत्म करने के बाद से राज्य के किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ा है, जहां ट्रेडर्स एमएसपी से काफी कम कीमत पर कृषि उत्पाद खरीदते हैं और इसी चीज को पंजाब और हरियाणा की मंडियों में ले जाकर एमएसपी पर बेच देते हैं.
पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडियों का जाल काफी अच्छे तरीके से बिछाया गया है और यहां पर बहुत बड़ी संख्या में किसानों को लाभ मिलता है.
मौजूदा समय में चल रही धान की खरीदी को लेकर बिहार से कई रिपोर्ट्स भी आने लगी हैं, जहां खरीदी अव्यवस्था और एमएसपी से कम दाम पर अपनी उपज बेचने को मजबूर किसानों की व्यथा बताई गई है.
द वायर ने भी रिपोर्ट कर बताया है कि किसानों ने नीतीश कुमार के दावे को खारिज किया है और कहा है कि सरकारी खरीद के इंतजाम नहीं होने के कारण वे एमएसपी पर कम मूल्य पर धान बेच रहे हैं. किसानों ने कहा है कि राज्य में समय पर खरीद नहीं होती है और अगर कुछ खरीद हो भी गई तो उसके भुगतान होने में कई महीने लग जाते हैं.
अब बिहार सरकार की तर्ज पर ही भारी विरोध के बीच (सड़क और संसद दोनों जगहों पर) बीते सितंबर महीने में केंद्र ने संसद से कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2020– पारित कराया था, जो कि एपीएमसी मंडियों के समानांतर एक अलग खरीद-बिक्री व्यवस्था का निर्माण करता है.
दूसरे शब्दों में कहें तो नया कानून पहले से स्थापित एपीएमसी मंडी सिस्टम को बायपास करता है और मंडी के बाहर कहीं भी उत्पाद बेचने की छूट देता है. इसमें यह भी लिखा है कि बाहर खरीदने या बेचने पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में टैक्स लगना जारी रहेगा.
हालांकि किसान एवं कृषि संगठनों का कहना है कि इस प्रावधान को लेकर बड़ी चिंता ये है कि इसके चलते आढ़ती, ट्रेडर्स मंडियों के बाहर कृषि उत्पादों को खरीदने लगेंगे, क्योंकि वहां उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ेगा, नतीजतन मंडियां धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी. मंडी खत्म होने से एमएसपी अपने आप अप्रासंगिक हो जाएगी.
बिहार में धान खरीद की स्थिति
बिहार के खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने 23 नवंबर 2020 से राज्य में एमएसपी पर धान की खरीद की मंजूरी दी थी. इस बार सरकार ने कम से कम 30 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा है.
हालांकि राज्य के सहकारिता विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक सात दिसंबर की सुबह तक सिर्फ 18297.15 टन की खरीद हुई है. इसमें से राज्य के कई जिलों में काफी कम खरीद हुई है. जमुई, लखीसराय, शेखपुरा जिले में धान की खरीद अभी शुरू नहीं हुई है.
वहीं अरवल जिले में अब तक सिर्फ 17.20 टन, बांका में 33.60 टन, गोपालगंज में 91.10 टन, कटिहार में 98 टन, किशनगंज में 93.80 टन, सारण में 26.40 टन, शेओहर में 22.70 टन, सीतामढ़ी में 88.10 टन, पश्चिमी चंपारण में 84.30 टन की ही खरीद हुई है.
सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में अब तक सबसे ज्यादा कैमूर जिले में 5731.60 टन, रोहतास में 2267.40 टन और सहरसा में 1076.90 टन धान की खरीद हुई है.
विभाग के मुताबिक, दो हफ्ते से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी सिर्फ 2273 किसानों से खरीद हो पाई है, जबकि सात दिसंबर तक 134,120 किसानों ने धान की खरीद के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है, जिसमें से 31,752 किसानों का सत्यापन किया जाना बाकी है. धान खरीद के लिए अब तक राज्य में 5,004 समितियों को चुना गया है.
इससे पिछले खरीदी सीजन में गेहूं की बिक्री के लिए 16,778 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. हालांकि सरकार बिहार में केवल 1,002 किसानों से गेहूं की खरीद करने में कामयाब रही थी.
मालूम हो कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान कड़कड़ाती ठंड में बीते 26 नवंबर से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. इसे लेकर सरकार और किसान के बीच पांच राउंड की बातचीत हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई प्रभावी निष्कर्ष नहीं निकल पाया है.
किसानों के साथ सरकार की अगली बातचीत नौ दिसंबर को होनी है. कृषि कानूनों के खिलाफ आठ दिसंबर को भारत बंद भी है, जिसका कई विपक्षी दलों एवं संगठनों ने समर्थन किया है.