असम सरकार ने गो-संरक्षण संबंधी विधेयक को मंज़ूरी दी, विधानसभा सत्र में पेश होगा

असम के संसदीय मामलों के मंत्री पीयूष हज़ारिका ने कहा कि असम मवेशी संरक्षण विधेयक 2021 को विधानसभा के 12 जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में पेश किया जाएगा. प्रस्तावित विधेयक में राज्य के बाहर से मवेशियों के परिवहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है. सूत्रों ने कहा कि गोवध या गोमांस के सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन हिंदू क्षेत्रों में इसके सेवन के संबंध में कुछ प्रावधान होंगे.

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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)

असम के संसदीय मामलों के मंत्री पीयूष हज़ारिका ने कहा कि असम मवेशी संरक्षण विधेयक 2021 को विधानसभा के 12 जुलाई से शुरू हो रहे सत्र में पेश किया जाएगा. प्रस्तावित विधेयक में राज्य के बाहर से मवेशियों के परिवहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है. सूत्रों ने कहा कि गोवध या गोमांस के सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन हिंदू क्षेत्रों में इसके सेवन के संबंध में कुछ प्रावधान होंगे.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)

गुवाहाटीः असम मंत्रिमंडल ने राज्य में गो-संरक्षण के लिए एक प्रस्तावित विधेयक को मंजूरी दी है. मंत्रिमंडल ने 12 जुलाई से शुरू हो रहे राज्य विधानसभा के बजट सत्र में मवेशी सरंक्षण विधेयक को पेश करने की मंजूरी दे दी है. यह जानकारी मंत्री और राज्य सरकार के प्रवक्ता पीयूष हजारिका ने बृहस्पतिवार को दी.

जल संसाधन मंत्री हजारिका ने गुवाहाटी में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा की अध्यक्षता में बुधवार को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में मौजूदा ‘असम मवेशी संरक्षण कानून-1950’ को रद्द करने और इसके स्थान पर आगामी विधानसभा सत्र के दौरान सदन में ‘असम मवेशी सरंक्षण विधेयक-2021’ पेश करने को मंजूरी दी गई.

विधेयक को प्रस्तावित करने की सरकार की योजना की घोषणा सबसे पहले मई में असम के राज्यपाल जगदीश मुखी ने की थी.

राज्यपाल मुखी ने भी 22 मई को 15वें असम विधानसभा के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए प्रस्तावित विधेयक का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि इसके प्रति बर्दाश्त नहीं किए जाने की नीति अपनाई जाएगी और दोषियों को कड़ी सजा दी जाएगी.

मुखी ने कहा था, ‘इस कदम का उद्देश्य असम में भारत-बांग्लादेश सीमा पर अवैध पशु तस्करी को रोकना है.’

हजारिका ने बताया, ‘प्रस्तावित विधेयक में राज्य से बाहर मवेशियों को ढोने पर पूर्ण रोक का प्रावधान होगा. सरकार ने उन अधिकारियों के मुकदमे का पूरा खर्च वहन करने का फैसला किया है, जिन्हें सीमा की सुरक्षा के लिए की गई उनकी कार्रवाई की वजह से मुकदमों का सामना करना पड़ता है.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हजारिका ने गुरुवार को कहा, ‘हमने पहले ही इसकी घोषणा कर दी थी लेकिन अब कैबिनेट ने औपचारिक रूप से इसे मंजूरी दे दी है.’

राज्यपाल जगदीश मुखी ने कहा, ‘हम जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएंगे और दोषियों के लिए कड़ी सजा पर जोर देंगे. एक बार विधेयक के पारित होने पर असम उन राज्यों में शामिल हो जाएगा, जहां पर इसी तरह के कानून को मंजूरी दी गई है.’

बीते दो महीनों में असम सरकार मवेशी तस्करों को लेकर बहुत सख्त रही है और यह विधेयक राज्य में मादक पदार्थों की तस्करी और गैंडों के अवैध शिकार जैसे संगठित अपराधों को समाप्त करने के बड़े अभियान का हिस्सा है.

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने इस हफ्ते की शुरुआत में कहा था कि गायों की तस्करी करने वालों को हर कीमत पर पकड़ा जाएगा.

उन्होंने कहा था, ‘गाय हमारे लिए भगवान की तरह है. यह हमें दूध, उपले देती है. ट्रैक्टर से पहले यह हमारी खेती में मदद करती थी. हमारे पूर्वज खेती पर निर्भर थे.’

सरकार ने संकेत दिए थे कि विधेयक में गायों के वध पर प्रतिबंध लगाने या इसकी खपत को रोकने का प्रस्ताव नहीं है.

एक सरकारी सूत्र ने कहा, ‘गोवध या गोमांस के सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन हिंदू क्षेत्रों में इसके सेवन के संबंध में कुछ प्रावधान होंगे, ताकि जिन इलाकों में हिंदू रहते हैं या उन्हें पूजा जाता है, विशेष रूप से मंदिरों के पास, वहां पर गायों का वध नहीं हो.’

उन्होंने कहा कि इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य मवेशियों की अवैध तस्करी को रोकना है.

कानून के मुताबिक, राज्य में 14 वर्ष से अधिक आयु की या काम करने के अयोग्य या प्रजनन में अक्षम मवेशियों के वध की मंजूरी है. इस तरह के मवेशियों को स्थानीय पशु चिकित्सा अधिकारियों द्वारा वध के लिए उपयुक्त प्रमाण पत्र दिए जाने की जरूरत है.

इसके अलावा मंत्रिमंडल ने जनजातीय जिलों कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदलगुड़ी में वर्ष 2003 से पहले से रह रहे गोरखा समुदाय को ‘संरक्षित श्रेणी’ में सूचीबद्ध करने का फैसला किया है.

उन्होंने बताया कि मंत्रिमंडल ने सदिया जनजातीय पेटी में रहने वाले मोरान, मटक, अहोम, सूतिया और गोरखा समुदाय को भी ‘संरक्षित श्रेणी के व्यक्ति’ की सूची में रखने का फैसला किया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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