राजस्थान: विवाह पंजीकरण क़ानून में संशोधन, भाजपा ने बाल विवाह को जायज़ ठहराने का आरोप लगाया

भाजपा ने राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को काला क़ानून बताते हुए दावा किया कि इससे बाल विवाह वैध हो जाएंगे. हालांकि राजस्थान की कांग्रेस सरकार का कहना है कि क़ानून के तहत सिर्फ़ पंजीकरण की अनुमति दी गई है, इसका मतलब ये नहीं कि शादियां वैध हो जाएंगी.

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(इलस्ट्रेशन: एलीज़ा बख़्त/द वायर)

भाजपा ने राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 को काला क़ानून बताते हुए दावा किया कि इससे बाल विवाह वैध हो जाएंगे. हालांकि राजस्थान की कांग्रेस सरकार का कहना है कि क़ानून के तहत सिर्फ़ पंजीकरण की अनुमति दी गई है, इसका मतलब ये नहीं कि शादियां वैध हो जाएंगी.

(इलस्ट्रेशन: एलीज़ा बख़्त/द वायर)

जयपुर: शादियों के अनिवार्य पंजीकरण के लिए एक संशोधन विधेयक, राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021, के विरोध में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने बीते शुक्रवार को राजस्थान विधानसभा से बहिर्गमन किया. पार्टी ने दावा किया कि इससे बाल विवाह वैध हो जाएंगे.

इसे लेकर मूल कानून साल 2009 में बनाया गया था, जिसमें संशोधन करते हुए राज्य विधानसभा में विधेयक को ध्वनि मत से पारित किया गया.

सदन में राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 का बचाव करते हुए संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि प्रस्तावित कानून विवाह के पंजीकरण की अनुमति देता है, लेकिन कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि ऐसी शादियां अंतत: वैध हो जाएंगी.

मंत्री ने कहा कि यदि यह वास्तव में बाल विवाह है तो जिलाधिकारी और संबंधित अधिकारी परिवारों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई कर सकेंगे.

मंत्री ने सदन को यह भी बताया कि उच्चतम न्यायालय ने साल 2006 में सीमा बनाम अश्विनी कुमार मामले में निर्देश दिया था कि सभी प्रकार के विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि बाल विवाह का पंजीकरण उन्हें वैध बनाने के लिए नहीं है और जोर देकर कहा कि यदि नाबालिग विवाहित है, तो बालिग होने पर उसे विवाह रद्द करने का अधिकार होगा.

विधेयक में बाल विवाह के मुद्दे को यह कहते हुए शामिल किया गया है कि यदि 21 वर्ष से कम उम्र के लड़के और 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के बीच विवाह होता है, तो ऐसे में शादी के 30 दिनों के भीतर माता-पिता या अभिभावकों द्वारा इसका पंजीकरण कराया जा सकता है.

इसमें यह भी कहा गया है कि दूल्हा और दुल्हन उस स्थान के विवाह पंजीकरण अधिकारी को पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकते हैं, जहां वे 30 दिनों से अधिक समय से रह रहे थे.

इसके अलावा धारीवाल ने कहा कि कानून अब जिला विवाह पंजीकरण अधिकारी के साथ-साथ अतिरिक्त जिला विवाह पंजीकरण अधिकारी और ब्लॉक विवाह पंजीकरण अधिकारी स्तर पर पंजीकरण करने की अनुमति देगा.

उन्होंने कहा, ‘ये अधिकारी पंजीकरण के काम की निगरानी और समीक्षा कर सकेंगे. इससे आम लोगों को रजिस्ट्रेशन करने में आसानी होगी. इससे काम में सरलता और पारदर्शिता आएगी.’

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र एक कानूनी दस्तावेज था और इसके बिना विधवाओं को कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा था. अनिवार्य पंजीकरण के चलते विवाह में कोई भी पक्ष या दोनों पक्ष विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन कर सकेंगे और प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकेंगे.

विपक्ष ने इसे ‘काला कानून’ करार दिया और मांग की कि विधानसभा अध्यक्ष को मत विभाजन कराना चाहिए. विपक्षी सदस्य नारेबाजी करते हुए अध्यक्ष के आसन के करीब पहुंच गए, लेकिन ध्वनिमत से विधेयक पारित कर दिया गया. मत विभाजन की मांग स्वीकार नहीं किए जाने पर भाजपा सदस्यों ने बहिर्गमन किया.

इससे पहले, विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ और भाजपा विधायक अशोक लाहोटी ने संशोधन विधेयक को ‘काला कानून’ बताया और कहा कि यदि विधेयक पारित होता है तो ‘काला दिन’ होगा. विधायक ने कहा कि विधेयक बाल विवाह की अनुमति देता है.

संशोधन विधेयक के बयान और उद्देश्य में कहा गया है कि अगर जोड़े ने शादी की कानूनी उम्र पूरी नहीं की है तो माता-पिता या अभिभावक निर्धारित अवधि के भीतर एक आवेदन जमा करने के लिए जिम्मेदार होंगे.

भाजपा की ओर से विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने आरोप लगाया कि यह बाल विवाह के खिलाफ कानून का उल्लंघन है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह कानून पूरी तरह से गलत है. जिन विधायकों ने इसे पारित किया है, उन्होंने इसे नहीं देखा है. विधेयक की धारा 8 बाल विवाह के खिलाफ लागू मौजूदा कानून का उल्लंघन करती है.’

भाजपा नेता राम लाल शर्मा ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया, ‘अगर बाल विवाह पर प्रतिबंध है, तो वे इस विधेयक के तहत बाल विवाह को कैसे शामिल कर सकते हैं? यह सब कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति के लिए कर रही है.’

वहीं राजेंद्र राठौड़ ने कहा, ‘मुझे आश्चर्य है कि ऐसा राजस्थान में हो रहा है, जहां बाल विवाह को एक दकियानूसी प्रथा माना जाता है और जहां साल 1927 में शारदा अधिनियम (बाल विवाह रोक अधिनियम) लागू किया गया. इसे हरविलास शारदा द्वारा पारित किया गया था और फिर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, लेकिन आज आंकड़ें दर्शाते हैं कि राजस्थान अभी भी इस दकियानूसी प्रथा की जाल में है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)