नगालैंड नागरिकों की मौत: कोन्यक यूनियन का सेना के साथ असहयोग जारी रखने के लिए नए नियमों का ऐलान

नगालैंड के मोन ज़िले में चार से पांच दिसंबर के दौरान एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों की जान चली गई थी. ऐसी ख़बरें थीं कि दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने और आफ़स्पा हटाने तक मुआवज़ा स्वीकार नहीं किया जाएगा. हालांकि ओटिंग ग्राम परिषद ने स्पष्ट किया है कि मुआवज़ा स्वीकार करना है या नहीं, यह फ़ैसला परिषद का नहीं पीड़ित परिवारों का है.

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नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के ताबूत. (फोटोः पीटीआई)

नगालैंड के मोन ज़िले में चार से पांच दिसंबर के दौरान एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान सेना की गोलीबारी में कम से कम 14 नागरिकों की जान चली गई थी. ऐसी ख़बरें थीं कि दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने और आफ़स्पा हटाने तक मुआवज़ा स्वीकार नहीं किया जाएगा. हालांकि ओटिंग ग्राम परिषद ने स्पष्ट किया है कि मुआवज़ा स्वीकार करना है या नहीं, यह फ़ैसला परिषद का नहीं पीड़ित परिवारों का है.

नगालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की गोलीबारी में मारे गए लोगों के ताबूत (फोटोः पीटीआई)

गुवाहाटीः नगालैंड के मोन जिले में रहने वाले कोन्यक नगा जनजाति समूह के शीर्ष निकाय कोन्यक यूनियन (केयू) ने कोन्यक की धरती पर सशस्त्र बलों के साथ अपने असहयोग को जारी रखने के लिए नए नियमों की घोषणा की है.

एक निर्णय की बीते चार दिसंबर को जिले के ओटिंग गांव में सुरक्षा बलों की उग्रवाद विरोधी अभियान के दौरान गोलीबारी में 14 आम नागरिकों की मौत के बाद लिया गया है. बताया जा रहा है कि इस गोलीबारी में जिन लोगों की जान गई, उनमें से अधिकांश इस जनजाति समूह से थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले बीते सात दिसंबर को कोन्यक यूनियन ने 27 असम राइफल्स की सभी इकाइयों से मोन जिला खाली करने को कहा था.

यूनियन की बीते सोमवार को जारी बयान में असहयोग नियमों की एक सूची जारी की, जिसमें गोलीबारी में मारे गए लोगों को न्याय मिलने तक भारतीय सैन्य बलों के काफिले और उनके गश्ती दल पर पूर्ण प्रतिबंध, मोन जिले में सैन्य नियुक्तियों से संबंधित रैलियों की मनाही, सैन्य बलों से विकासात्मक पैकेज को स्वीकार न करना शामिल हैं.

बयान में कहा गया, ‘जिन ग्राम परिषदों, छात्रों और समुदायों को मुआवजा पैकेज मिले हैं, उन्हें सुरक्षा बलों की तरफ से सुनिश्चित किए गए किसी भी तरह के पैकेज को तुरंत अस्वीकार  करना चाहिए.’

बयान में नगीनिमोरा, तिजित, लाम्पोंग शेंगहा, वाकिंग टाउन, मोन टाउन, लोंगशेन टाउन, शेंगहा वामसा, लोंगवा, चेन्मोहो, चेनलोशू, वांगती, अबोई, आंगजांगयांग, तोबू और मोन्याक्षू के अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी इलाकों में सैन्य शिविरों की स्थापना के लिए पूर्व में हुए भूमि समझौतों से संबंधित जमीन मालिकों को तुरंत पीछे हटने का निर्देश दिया गया है.

इस बयान पर संयुक्त रूप से कोन्यक यूनियन, कोन्यक न्युपूह शेको खोंग (केएनएसके- सर्वोच्च महिला निकाय) और कोन्यक छात्रसंघ ने हस्ताक्षर किए हैं.

इनके द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है, कि कोन्यक समुदाय सुरक्षा बलों के साथ सभी तरह के जनसंपर्कों से किनारा करेगा.

बयान में कहा गया कि कोन्यक यूनियन ने अपने जन आंदोलन के तहत पहले चरण का प्रदर्शन 16 दिसंबर को सुनिश्चित किया है, जहां सभी जिलों में जनसभा की जाएगी. विरोधस्वरूप हर वाहन पर काले झंडे फहराए जाएंगे और सभी प्रदर्शनकारी काले बैज लगाएंगे.

 मुआवज़ा स्वीकार करने का फैसला पीड़ित परिवारों पर निर्भर: ओटिंग ग्राम परिषद

सेना की गोलीबारी में मारे गए 14 लोगों के परिवारवालों द्वारा घटना में शामिल सुरक्षाकर्मियों को न्याय के कटघरे में लाने तक सरकारी मुआवजा लेने से इनकार करने के बाद ओटिंग गांव परिषद के नेताओं ने बीते सोमवार को स्पष्ट करते हुए कहा कि मुआवजा स्वीकार करने का फैसला पीड़ित परिवारों का है न कि परिषद का.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में ओटिंग गांव परिषद के उप अंग चिंगवांग ने कहा, ‘मुआवजा स्वीकार करना है या नहीं, यह फैसला गांव परिषद पर निर्भर नहीं करता.’

उन्होंने कहा कि बीते 12 दिसंबर को परिषद द्वारा जारी बयान में एक वायरल सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर स्पष्टीकरण दिया गया था कि ग्रामीणों ने उन्हें पांच दिसंबर को सौंपे गए मुआवजे को स्वीकार कर लिया था.

परिषद ने बयान में कहा कि पांच दिसंबर को जब स्थानीय लोग अंतिम संस्कार की तैयारियों में व्यस्त थे. राज्यमंत्री पी. पाइवांग कोन्यक और जिला उपायुक्त द्वारा 18.30 लाख रुपये (मुआवजा स्वरूप) परिषद को दिए गए थे.

बयान में कहा, ‘पहले तो हमें लगा कि यह धनराशि मंत्री की ओर से हमें भेंट दी गई है, लेकिन बाद में हमें पता चला कि गोलीबारी में मारे गए और घायल हुए लोगों के परिवारवालों को यह राज्य सरकार की ओर से दिए गए मुआवजे की किश्त थी.’

बयान में कहा गया, ‘ओटिंग गांव परिषद और पीड़ित परिवार इस मुआवजे को तब तक स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक भारतीय सशस्त्र बलों के 21 पैरा कमांडो के अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा करने के साथ पूरे उत्तर-पूर्व से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफस्पा) खत्म नहीं कर दिया जाता.’

चिंगवांग ने कहा कि उन्हें लगा कि उन्हें इस मामले पर स्पष्टीकरण जारी करने की जरूरत है, क्योंकि पांच दिसंबर को उन्होंने पांच लाख रुपये के मुआवजे की पूरी राशि स्वीकार नहीं की थी, जैसा कि सोशल मीडिया के जरिये बताया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मुआवजा स्वीकार करने से मारे गए लोगों की जिंदगी नहीं लौटेगी इसलिए हमने यह भी कहा कि आफ्सपा को निरस्त किया जाए और पीड़ितों को न्याय मिले, लेकिन मुआवजा स्वीकार किया जाए या नहीं, यह गांव परिषद पर निर्भर नहीं करता है.’

उन्होंने कहा कि मोन जिले के उपायुक्त थवासीलनन अगले दो दिनों में गांव का दौरा करेंगे और मुआवजा राशि पर चर्चा करने के लिए निजी तौर पर पीड़ित परिवार से मुलाकात करेंगे.

मालूम हो कि बीते चार दिसंबर को मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच यह घटना हुई. गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर की शाम कोयला खदान के कुछ मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे.

केंद्र सरकार ने गोलीबारी की घटना में मारे गए 14 लोगों के परिवार वालों के लिए 11 लाख रुपये और नगालैंड सरकार ने पांच लाख रुपये के मुआवजे का ऐलान किया था. इसके साथ ही राज्य सरकार ने घायलों के लिए एक लाख रुपये और मामूली रूप से घायल लोगों के लिए 50,000 रुपये के मुआवजे का ऐलान किया था.

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