संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ख़ुर्रम परवेज़ की तत्काल रिहाई की मांग की

एनआईए ने 22 नवंबर को टेरर फंडिंग से जुड़े एक मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ को गिरफ़्तार किया था. इससे पहले इस साल की शुरुआत में श्रीनगर में उनके घर और कार्यालय की तलाशी ली गई थी. वैश्विक मानवाधिकार संगठनों ने इस क़दम की आलोचना करते हुए हिरासत में यातना के जोख़िम को लेकर चिंता जताई थी.

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खुर्रम परवेज़ (फोटो साभारः ट्विटर)

एनआईए ने 22 नवंबर को टेरर फंडिंग से जुड़े एक मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ को गिरफ़्तार किया था. इससे पहले इस साल की शुरुआत में श्रीनगर में उनके घर और कार्यालय की तलाशी ली गई थी. वैश्विक मानवाधिकार संगठनों ने इस क़दम की आलोचना करते हुए हिरासत में यातना के जोख़िम को लेकर चिंता जताई थी.

खुर्रम परवेज़ (फोटो साभारः ट्विटर)

नई दिल्लीः मानवाधिकार के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनओएचसीएचआर) ने 22 दिसंबर को बयान जारी कर कहा कि खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में उनकी वैध गतिविधियों को लेकर की गई प्रतिशोधात्मक कार्रवाई है.

रिपोर्ट के अनुसार, इसके साथ ही यूएनओएचसीएचआर ने उनकी तत्काल रिहाई का भी आह्वान किया गया. इस बयान पर कई संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने हस्ताक्षर किए.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने परवेज के श्रीनगर स्थित आवास और उनके ऑफिस पर छापेमारी के बाद गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत इस साल 22 नवंबर को उन्हें गिरफ्तार किया था.

ओएचसीएचआर ने जारी बयान में कहा, ‘परवेज ने भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में गुमशुदगी और गैरकानूनी हत्याओं सहित गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के दस्तावेजीकरण के लिए बड़े पैमाने पर काम किया है. संयुक्त राष्ट्र के साथ इस जानकारी को साझा करने के लिए परवेज इन प्रतिशोध की घटनाओं के शिकार हुए.’

विशेषज्ञों ने कहा, ‘हमें खेद है कि भारत सरकार जम्मू कश्मीर और बाकी देश में नागरिक समाज, मीडिया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की मौलिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने हेतु जबरन यूएपीए का लगातार उपयोग कर रही है. हम एक बार फिर सरकार से मानवाधिकार कानून के तहत भारत के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के अनुरूप कानून लाने का आग्रह करते हैं.’

द वायर  को प्राप्त खुर्रम की गिरफ्तारी मेमो की कॉपी के मुताबिक, ‘यह मामला आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 121ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का साजिश के लिए सजा) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 की धारा 17 (आतंकी गतिविधियों के लिए धन जुटाना), 18 (साजिश के लिए सजा), 18बी (आतंकी कृत्य के लिए लोगों को भर्ती करना), 38 (आतंकी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध ) और 40 (आतंकी संगठन के लिए धन जुटाने का अपराध) के संबंध में की गई.’

परवेज की गिरफ्तारी के बाद ओएचसीएचआर ने आधिकारिक कार्यकर्ता रूपर्ट कॉलविल के समक्ष अपनी आपत्तियां जताते हुए कहा था कि परवेज की गिरफ्तारी और भारत द्वारा लगातार यूएपीए का इस्तेमाल करना चिंताजनक हैं.

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार रक्षकों की विशेष दूत मैरी लॉलर ने ट्वीट कर इस पर अपनी चिंता जताई थी. भारत सरकार ने हालांकि इन चिंताओं को खारिज किया था. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि यह बयान आधारहीन है.

ओएचसीएचआर ने अपने मौजूदा बयान में कहा कि रोहिणी जेल परिसर, जहां परवेज को रखा गया है, वह दरअसल देश के तीन सबसे भीड़भाड़ और अस्वच्छ जेलों में से एक है और इसके परिणामस्वरूप परवेज के स्वास्थ्य विशेष रूप से कोविड-19 से का जोखिम है.

ओएचसीएचआर ने यह भी कहा कि जैसा कि उसने पहले भी कहा था कि यूएपीए में 2019 के संशोधन ने राज्य एजेंसियों की शक्तियों को बढ़ाया है और इस वजह से देशभर में विशेष रूप से कश्मीर में गिरफ्तारियां की संख्या में चिंताजनक वृद्धि हुई है.

इस संदर्भ में मानवाधिकार विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया, ‘हम एक बार फिर सराकर से मानवाधिकार कानून के तहत भारत के अंतरराष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के अनुरूप कानून लाने का आग्रह करते हैं.’

इस बयान पर कई मानवाधिकार विशेषज्ञों ने हस्ताक्षर किए.

बता दें कि खुर्रम (44) आंशिक तौर पर शारीरिक रूप से अक्षम भी हैं. एक कार लैंडमाइन ब्लास्ट में उन्होंने अपने पैर खो दिए थे. इस विस्फोट में उनकी सहयोगी और पत्रकार आसिया गिलानी की मौत हो गई थी.

अलगाववादी गतिविधियों की फंडिंग से संबंधित मामले में पिछले साल खुर्रम का ऑफिस उन दस स्थानों में से जहां एनआईए ने छापेमारी की. इस दौरान श्रीनगर के अंग्रेजी समाचार पत्र ग्रेटर कश्मीर के कार्यालय पर भी छापेमारी की गई.

मालूम हो कि खुर्रम को 2006 में रिबुक ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. उन्हें 2016 में संयुक्त राष्ट्र अधिकार परिषद के सत्र में हिस्सा लेने के लिए स्विट्जरलैंड जाने से रोक दिया गया था, जिसके एक दिन बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था.

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