चाहते हैं आफ़स्पा हटे, पर केंद्र की सहमति से, राष्ट्र सुरक्षा प्राथमिकता: मणिपुर मुख्यमंत्री

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि हम एक सीमावर्ती राज्य हैं और म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. मुझे राष्ट्रहित को भी देखना होगा. लेकिन एक मणिपुरी होने और मणिपुर का मुख्यमंत्री होने के नाते, मैं चाहता हूं कि आफ़स्पा हटा दिया जाए.

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एन. बीरेन सिंह. (फोटो साभार: फेसबुक)

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि हम एक सीमावर्ती राज्य हैं और म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. मुझे राष्ट्रहित को भी देखना होगा. लेकिन एक मणिपुरी होने और मणिपुर का मुख्यमंत्री होने के नाते, मैं चाहता हूं कि आफ़स्पा हटा दिया जाए.

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने रविवार को कहा कि उनके राज्य के लोग और वह खुद भी चाहते हैं कि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफस्पा) हटा दिया जाए, लेकिन ऐसा केवल केंद्र की सहमति से किया जाना चाहिए, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा उनकी शीर्ष प्राथमिकता है.

सिंह ने दिल्ली में एक साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘मेरा मानना है कि आफस्पा को केंद्र की सहमति से क्रमिक रूप से हटाया जा सकता है, लेकिन हमें अवश्य याद रखना चाहिए कि म्यांमार में राजनीतिक स्थिरता नहीं है और हमारे देश की सीमा उसके साथ लगी हुई है.’

मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी की ओर से बने पहले मुख्यमंत्री सिंह ने यह भी कहा कि चुनाव बड़े बदलाव को प्रदर्शित करेंगे और उनकी पार्टी सीटों की अपनी संख्या दोगुनी करेगी.

उन्होंने कहा, ‘हम दो-तिहाई बहुमत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हमारा कोई चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है, लेकिन जरूरत पड़ने पर चुनाव बाद गठबंधन किया जा सकता है.’

उन्होंने इस बार शांति, विकास और सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व को भाजपा का मुख्य चुनावी मुद्दा बताते हुए यह बात कही.

कांग्रेस के 28 विधायक होने के बावजूद अपने महज 21 विधायकों के साथ भाजपा ने दो स्थानीय दलों- एनपीपी और एनपीएफ के सहयोग से राज्य में 2017 में सरकार बनाई थी. मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में, 27 फरवरी और तीन मार्च को चुनाव होने हैं. मतगणना 10 मार्च को होगी.

आफस्पा हटाने की मांग को लेकर राज्य में कई आंदोलन हुए हैं. मणिपुर की इरोम शर्मिला का अनशन भी इसका एक मुख्य उदाहरण है, जो देश में सबसे लंबे समय तक चला था.

मणिपुर में आफस्पा हटाना, एक महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है और पड़ोसी राज्य नगालैंड में हाल में सैन्यकर्मियों की गोलीबारी में 14 आम लोगों के मारे जाने को लेकर एक बार फिर यह प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन सकता है.

सिंह ने कहा, ‘हम एक सीमावर्ती राज्य हैं और म्यांमार के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. मुझे राष्ट्रहित को भी देखना होगा. लेकिन एक मणिपुरी होने और मणिपुर का मुख्यमंत्री होने के नाते, मैं चाहता हूं कि आफस्पा हटा लिया जाए.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन साथ ही जमीनी हकीकत का आकलन किए बगैर ऐसा करना संभव नहीं है. केंद्र सरकार से परामर्श किए बगैर, यह संभव नहीं है.’’

सिंह ने कहा, ‘मेरे सहित मणिपुर के लोग चाहते हैं कि आफस्पा को हटा दिया जाए, लेकिन केंद्र सरकार की परस्पर सहमति के बाद, क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा हमारे लिए पहली प्राथमिकता है.’

सिंह ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में कोई बड़ी अप्रिय घटना नहीं हुई है और उग्रवाद 90 प्रतिशत तक कम हो गया है. उन्होंने कहा, ‘मणिपुर सरकार म्यांमार में रह रहे मणिपुरी उग्रवादियों के साथ सार्थक वार्ता करने की भी कोशिश कर रही है.’

कानून और व्यवस्था और आफस्पा को खत्म करने की लंबे समय से चली आ रही मांग के अलावा, राज्य का आर्थिक बदहाली के मुद्दे के चुनाव प्रचार के दौरान दो मुख्य दलों- भाजपा और कांग्रेस के एजेंडे में रहने की उम्मीद है. वहीं नेशनल पीपुल्स पार्टी और नगा पीपुल्स फ्रंट जैसे छोटे स्थानीय दलों की अपनी मांगें हैं.

चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य की राजधानी इंफाल का दौरा किया था और लगभग 1,850 करोड़ रुपये की 13 परियोजनाओं का उद्घाटन किया था. इसके अलावा 2,950 करोड़ रुपये की नौ परियोजनाओं की आधारशिला रखी थी.

पूर्व फुटबॉलर और पत्रकार एन. बीरेन सिंह ने पहली बार 2002 में डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी के उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव जीता था और 2007 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में इस सीट को बरकरार रखा था.

उन्होंने 2016 में कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गए थे. वह 2017 में अपनी हिंगांग विधानसभा सीट से फिर से चुने गए थे. 61 वर्षीय सिंह के फिर से उसी सीट से चुनाव लड़ने की संभावना है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मणिपुर में कई समूहों द्वारा उग्रवाद अभी भी राज्य की राजनीति में एक डरावना पहलू बना हुआ है. असम राइफल्स के एक कर्नल और उनके परिवार पर बीते साल नवंबर में घात लगाकर किए गए हमले जैसी घटनाओं में वृद्धि कानून-व्यवस्था को विकास कार्यों पर भारी पड़ने वाले सबसे बड़े मुद्दे में बदल सकती है.

मालूम हो कि पिछले साल चार दिसंबर को मणिपुर के पड़ोसी राज्य नगालैंड के मोन जिले में सेना की एक टुकड़ी द्वारा की गई गोलीबारी में 14 नागरिकों की मौत के बाद पूर्वोत्तर से आफस्पा को वापस लेने की मांग तेज हो गई है.

बीते 19 दिसंबर को नगालैंड विधानसभा ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर, खास तौर से नगालैंड से आफस्पा हटाने की मांग को लेकर एक प्रस्ताव पारित किया था. प्रस्ताव में ‘मोन जिले के ओटिंग-तिरु गांव में चार दिसंबर को हुई इस दुखद घटना में लोगों की मौत की आलोचना की गई थी.

नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में आफस्पा को हटाने की मांग उठाई है.

इन्होंने कहा है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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