बीएचयू में लैंगिक भेदभाव के ख़िलाफ़ छात्राओं ने खोला मोर्चा

बीएचयू के महिला महाविद्यालय की एक छात्रा ने कैंपस में होने वाले लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय महिला आयोग से मदद की अपील की है.

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बीएचयू के महिला महाविद्यालय की एक छात्रा ने कैंपस में होने वाले लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ चेंज डॉट ओआरजी पर पिटीशन दायर करके राष्ट्रीय महिला आयोग से मदद की अपील की है.

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फोटो : Wikimedia Commons

पिछले काफ़ी समय से विश्वविद्यालय और कॉलेज कैंपसों में महिलाओं से हो रहे भेदभाव भरे रवैये के ख़िलाफ़ छात्राएं खुलकर सामने आ रही हैं. इस बात को ज़्यादा समय नहीं हुआ जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की चार छात्राओं ने एक टीवी चैनल के माध्यम से कैंपस में छात्राओं के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में बताया था.

उस समय प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने के कारण मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया गया, इसे कुलपति द्वारा एक विचारधारा विशेष से संबद्ध होने और विश्वविद्यालय को बदनाम करने की साज़िश कहा गया. एक दूसरे टीवी चैनल ने छात्राओं के इन आरोपों को ग़लत बताया. पर सही-ग़लत की इस बहस के बीच छात्राओं के साथ हो रहे भेदभाव के मुद्दे पर कोई एक्शन नहीं लिया गया.

अब उस समय सामने आई इन छात्राओं में से एक महिला महाविद्यालय (एमएमवी) में ग्रेजुएशन के दूसरे साल में पढ़ रही मिनेषी मिश्रा ने ऑनलाइन मंच चेंज डॉट ओआरजी पर एक पिटीशन शुरू किया है, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम के नाम एक पत्र भी लिखा है, जिसमें उनके साथ हो रहे भेदभाव का संज्ञान लेते हुए उन्हें समान अधिकार देने की गुज़ारिश की है.

मिनेषी ने पत्र में लिखा है, ‘बीएचयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है, जिस पर सभी छात्रों को संविधान के अंतर्गत समान अधिकार और अभिव्यक्ति की आज़ादी देने का उत्तरदायित्व है. पर यहां छात्राओं पर सुरक्षा के नाम पर लैंगिक भेदभाव करते हुए नियम थोपे जा रहे हैं.’

इस पत्र में साथ मिनेषी ने छात्राओं पर लागू नियमों के बारे में भी बताया है कि किस तरह एक ही कैंपस के हॉस्टलों में छात्र-छात्राओं के लिए अलग-अलग नियम बनाए गए हैं. उनका कहना है कि छात्राओं के हॉस्टल में रात 8 बजे तक लौटने का नियम है और सुबह 6 बजे से पहले छात्राएं बाहर नहीं जा सकतीं.

मिनेषी ने यह भी बताया कि छात्राओं को यह भी सलाह दी जाती है कि घर जाते समय वे अपनी बस या ट्रेन इस हिसाब से चुने कि इस समय-सीमा में उन्हें हॉस्टल से न निकलना पड़े.

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छात्रावास के नियम

वहीं लड़कियों के हॉस्टल में नॉन-वेज खाना नहीं दिया जाता जबकि लड़कों के हॉस्टल में इस पर कोई पाबंदी नहीं है.

बीते साल अक्टूबर में जब यह मुद्दा उठा था तब एमएमवी की प्रिंसिपल संध्या कौशिक ने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा, ‘आप मालवीय जी के हॉस्टल में मांस कैसे खा सकते हैं? वो तो अपने खाने में प्याज और लहसुन तक नहीं खाया करते थे.’

इस पर मिनेषी कहती हैं, ‘ऐसे कई कारण दिए जाते हैं पर मैं पूछना चाहती हूं कि क्या मालवीय जी की विचारधारा की ज़िम्मेदारी लड़कियों पर ही है. लड़कों के हॉस्टल में हफ़्ते में दो से तीन बार नॉन-वेज खाना दिया दिया जाता है. अब तो कई और कारण दिए जाते हैं कि लड़कियां ज़्यादा नहीं खाती हैं, खाना बर्बाद होता है आदि पर बात सिर्फ इतनी है कि हमें यह चुनने कि आज़ादी होनी चाहिए कि हम क्या खाना चाहते हैं, कैसे रहना चाहते हैं.’

रहन-सहन से जुड़ा मसला लड़कियों के पहनावे से भी संबंधित है. एमएमवी और कैंपस के हॉस्टलों में लड़कियों के पहनावे को लेकर सिवाय ‘शॉर्ट ड्रेस’ न पहनने के अलावा कोई अन्य लिखित नियम नहीं हैं पर मिनेषी के लिखे इस पत्र में लड़कियों को लेकर होने वाली ‘मोरल पुलिसिंग’ का ज़िक्र भी है.

बात करने पर उन्होंने बताया, ‘कपड़ों को लेकर खुले तौर पर कोई नियम नहीं है, बस शॉर्ट्स और स्कर्ट्स नहीं पहन सकते. हमसे कहा जाता है कि नॉर्मल कपड़े पहनिए पर इस ‘नॉर्मल’ की परिभाषा हर एक के लिए अलग हो सकती है. दूसरी बात है कि बहुत कुछ आपकी वॉर्डन और हाउसकीपर के नजरिये पर भी निर्भर करता है, जैसे मान लीजिए हमने कोई टॉप पहना है जो उन्हें ठीक नहीं लगा तो वे टोक देंगी या उन्हें लगता है कि सूट का गला बड़ा है तब भी वे टोकेंगी, तो बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी वॉर्डन इन बातों को लेकर कितनी फ्लेक्सिबल हैं. 

इसके अलावा कैंपस में पुलिसिंग इस बात को लेकर भी होती है कि लड़की किसी लड़के के साथ तो नहीं घूम रही है. ऐसे कितने ही मामले हुए हैं जहां लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर तैनात प्रॉक्टोरियल बोर्ड के लोग सिर्फ किसी साथ जाते लड़का-लड़की को पकड़कर प्रॉक्टर ऑफिस ले जाते हैं और उनसे माफ़ी लिखवाई जाती है कि आगे से ऐसा कभी करेंगे.’

मिनेषी मानती हैं कि किसी भी कॉलेज कैंपस को सुरक्षित बनाने के लिए सुरक्षित माहौल उपलब्ध करवाया जाना चाहिए, जेंडर मुद्दों को लेकर समझ और संवेदनशीलता बढ़नी चाहिए न कि इस तरह के नियम थोपे जाने चाहिए. कैंपस की छात्राएं बताती हैं कि मीडिया में बीएचयू का ये मुद्दा आने से पहले लड़कियां अपने हॉस्टल में अपने निजी मोबाइल फोन रात 10 बजे के बाद बात नहीं कर सकती थीं. मीडिया के सामने यह बात आने के बाद अब ऐसा नहीं होता. 

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नियमावली संबंधी एक आरटीई पर कॉलेज प्रबंधन द्वारा दिया गया जवाब

पर रात दस बजे के बाद फोन पर बात करने में हर्ज़ क्या है? मिनेषी जवाब देती हैं, ‘यह भी पुलिसिंग का ही मसला था. इसे लेकर भी कोई नियम नहीं था. अगर आपकी हाउसकीपर को कोई परेशानी नहीं है तब ठीक है, पर कई हॉस्टलों में लड़कियों के फोन ले लिए जाते थे, उन्हें शर्मिंदा किया जाता था कि वे रात को लड़कों से गंदी-गंदी बातें करती हैं.’

वे कहती हैं, ‘खुद मेरे साथ ऐसा दो बार हुआ. एक बार तो उन्होंने मुझे खूब डांटने बाद के अगले दिन ही मेरा फोन लौटा दिया था. पर दूसरी बार मैं अपने किसी दोस्त को रात में उसके जन्मदिन की बधाई दे रही थी, जब उन्होंने मेरा फोन ले लिया और काफ़ी शर्मिंदा करने के बाद दो दिन बाद मुझे फोन लौटाया. यहां तक तो फिर भी ठीक था पर अगले साल हॉस्टल बदलने के समय जब मेरे पापा आए तो उनसे कहा गया कि आपकी बेटी रात को लड़कों से बात करती है!’

लड़कियों को लेकर इस तरह की ‘सुरक्षात्मक’ सोच पर प्रिंसिपल संध्या कौशिक का कहना है कि वे ज़ोर-ज़बर्दस्ती के ख़िलाफ़ हैं पर अनुशासन होना चाहिए. कुछ समय पहले उन्होंने एक अख़बार से बात करते हुए कहा था, ‘मुझे लड़कियों के लड़कों से घुलने-मिलने या उनके संबंध पर कोई एतराज़ नहीं है. मैं इस बारे में बहुत खुले विचार रखती हूं. पर ये लड़कियां नहीं जानती कि किस पर भरोसा करें या नहीं. अभी कुछ दिन पहले ही एक छात्रा साइबर अपराध का शिकार बनी थी. मैं लड़कियों से कहती हूं कि अगर आप बाहर जाना चाहती हैं, तो पूरी ज़िम्मेदारी आपकी है; अगर कुछ ग़लत हो जाता है तब शिकायत न करें.’

लड़कियों की सुरक्षा के बारे में इतनी चिंता होने के बावजूद कैंपस में इंटरनल कंप्लेंट कमेटी (आंतरिक सुरक्षा समिति) का हाल बुरा है. गोपनीयता की शर्त पर एक छात्रा ने बताया कि अगर आपके पास इस तरह कि कोई शिकायत है तब कमेटी वो आखिरी जगह है, जहां किसी लड़की को जाना चाहिए. वहां पितृसत्तात्मक मानसिकता का ही बोलबाला है. पीड़िता से उलटे-सीधे सवाल किए जाते हैं. उनकी सीधी सोच है कि अगर किसी लड़की के साथ कुछ ग़लत हुआ है, तो ग़लती उसी की होगी.’

महिला आयोग अध्यक्ष के नाम लिखे इस पत्र में मिनेषी ने इस मसले पर भी लिखा है. यहां उन्होंने 2013 में यूजीसी द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए दी गई सक्षम गाइडलाइंस का भी हवाला दिया है.

एक मसला इंटरनेट सुविधा से भी जुड़ा है, जहां लड़कों के हॉस्टल में इंटरनेट के लिए वाई-फाई सुविधा दी गई है, वहीं लड़कियों के एक हॉस्टल को छोड़कर कहीं भी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा वाई-फाई सुविधा मुहैया नहीं करवाई गई है.

इसके अलावा इस पत्र में लिखा सबसे गंभीर मसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा है. हॉस्टल में प्रवेश के समय छात्राओं और उनके अभिभावक से एक शपथपत्र पर हस्ताक्षर करवाए जाते हैं कि छात्रा यहां पढ़ने के दौरान किसी धरने या विरोध प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लेंगी. अगर वे ऐसा करती हैं तब उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है.

इन सभी मांगों में सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि लड़कों को जो सुविधाएं आसानी से मिली हुई हैं, लड़कियों को नहीं मिलीं. न वे अपनी पसंद से खा सकती हैं, कपडे़ पहन सकती हैं न ही कहीं जा सकती हैं. 

मिनेषी कहती हैं, ‘अगर आप लड़कियों की सुरक्षा के प्रति असल में सचेत हैं तो कई और इंतज़ाम करवाइए. कैंपस में स्ट्रीट लाइटिंग की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, कैंपस के अंदर चलने वाली बसों की संख्या बढ़नी चाहिए, साथ ही कैंपस में सीसीटीवी कैमरा लगने चाहिए. इस तरह के माहौल में हम एक स्वतंत्र सोच विकसित होने की नहीं सोच सकते, जो कि किसी भी कॉलेज स्टूडेंट के लिए ज़रूरी है.

बीएचयू के विद्यार्थी अक्सर ही अपनी समस्याओं पर मुखर होकर बोलते रहे हैं पर यह पहली बार है जब छात्राएं इस तरह कैंपस में हो रहे लैंगिक भेदभाव के ख़िलाफ़ सामने आई हैं. हालांकि खुलकर बोलने या सामने आकर नाम बताने में अब भी झिझक है. मिनेषी बताती हैं कि उन्हें साथी विद्यार्थियों का सपोर्ट तो मिलता है पर बहुत कम लोग ही सामने आकर बोलना या अपना समर्थन ज़ाहिर कर रहे हैं. इसके पीछे भी वजह है.

मिनेषी बताती हैं, ‘सबको डर है कि कहीं इस बारे में बोलने पर उन्हें किसी विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है. वैसे भी जबसे हम छात्राओं ने इस बारे में टीवी पर कहा है, हमें तरह-तरह की बातें सुननी पड़ी हैं कि हमने कॉलेज को बदनाम किया है, शर्मिंदा किया है…आदि. यह भी हो सकता है कि इसका असर हमारे मार्क्स पर भी पड़े. इस तरह के जोखिम तो हैं ही पर इसके अलावा मेरी एक सीनियर को इस बारे में बोलने के बाद बलात्कार की धमकी भी मिली थी.’

भले ही कैंपस में छात्र-छात्राएं खुलकर मिनेषी के इस पिटीशन का समर्थन न कर पा रहे हों, पर ऑनलाइन मंच चेंज डॉट ओआरजी पर इस पिटीशन के नीचे आए कमेंट अलग ही कहानी बताते हैं. वहां देखें तो कॉलेज की ढेरों ऐसी पूर्व छात्राएं हैं जो इन नियमों में बदलाव लाने की हिमायत कर रही हैं, साथ ही बीएचयू के छात्र भी हैं जो मिनेषी के इस पिटीशन के साथ खड़े हैं.