हितोपदेश के एक श्लोक से वस्त्र की तरह गिरी एक पंक्ति और डर कर जमी हुई कविता में प्रतिध्वनियां

अनामिका की एक सामान्य-सी कविता के एक संदर्भ को लेकर चल रही बहस के भीतर चिंगारियां या अदावत का आह्लाद तलाश करने के बजाय यह देखना ज़रूरी है कि हम शब्दों के प्रति कितने सचेतन हैं कि कविता के शब्द कभी हमारी स्मृतियों के भीतर भी कभी नहीं गिरें. भले ही वे नारायण पंडित के हितोपदेश के किसी श्लोक के शब्द हों या फिर अनामिका की किसी स्मृति के बिंब से जुड़े.

ऐरोन बुशनेल का आत्मदाह इज़रायली क्रूरता के प्रति अमेरिकी शासन के अंधे समर्थन का परिणाम है

अमेरिकी सैनिक ऐरोन बुशनेल ने वॉशिंगटन डीसी में इज़रायली दूतावास के सामने 'फ्री फ़िलिस्तीन' का नारा लगाते हुए ख़ुद को ज़िंदा जला लिया ताकि दुनिया की नज़रें गाजा की ओर मुड़ जाएं. क्या बुशनेल जैसे लोग भुला दिए जाएंगे? क्या कोई युद्ध के विरोध में प्रतिबद्धता दिखाएगा और गाजा से लेकर यूक्रेन तक मानवीय नरसंहार का विरोध करने के लिए खड़ा हाेगा?

चौधरी चरण सिंह: भारत रत्न और ख़िज़ां में बहार तलाशती सियासी अय्यारियों की जुगलबंदी

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न का अलंकरण क़ाबिले-तारीफ़ है; लेकिन अगर उनके विचारों की लय पर सरकार अपने कदम उठाती तो बेहतर होता. सरकार से ज़्यादा यह दारोमदार रालोद के युवा नेता पर है कि वह अपने पुरखे और भारतीय सियासत के एक रोशनख़याल नेता के आदर्शों को लेकर कितना गंभीर है.

राजस्थान का सुरेंद्र पाल सिंह टीटी प्रकरण 76 साल पहले संविधान सभा में उठे सवाल याद दिलाता है

राजस्थान विधानसभा की श्रीकरणपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने अपने उम्मीदवार को जीत से पहले मंत्री बना दिया था. बाद में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने हरा दिया. 1948 में संविधान सभा में सवाल उठा था कि क्या विधायकों, सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद फिर निर्वाचन प्रक्रिया से गुज़रना चाहिए.

ममता बनर्जी: धर्मोन्माद की दुंदुभि के बीच स्त्री शक्ति का पर्याय

वैसे यह देश सुबह-शाम तक स्त्री महिमा का गायन करता है, लेकिन सच में यहां की न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, मीडिया और जन लोक... सबके सब पूरी ताक़त से स्त्रियों के विरोध में जुट पड़ते हैं. फिर भले वह सोनिया हो, वसुंधरा राजे हो या फिर ममता बनर्जी... वे विवेकहीन लोक का प्रहार झेलती ही हैं.