बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के स्कूलों में कुपोषण की शिकार बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा गोवंडी, ख़ार और कुर्ला में है.
बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के स्कूलों में हर तीन बच्चों में एक बच्चा कुपोषण का शिकार है. एक आरटीआई में हुए खुलासे में ये बात सामने आई है कि कुपोषण से जूझ रहे बच्चों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है. बीएमसी स्कूलों में मिड-डे मील शुरू हुए अब लगभग 2 दशक हो चुके हैं और हालत दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, प्रजा फाउंडेशन नामक एक गैर सरकारी संगठन ने आरटीआई के तहत ये जानकारी हासिल की है. इन सभी के बीच एक अहम बात सामने आई है कि मिड-डे मील के लिए निर्धारित बजट का इस्तेमाल 81 प्रतिशत से गिर कर अब 65 प्रतिशत पर पहुंच चुका है.
आरटीआई के तहत प्रजा फाउंडेशन ने जो आंकड़े सामने रखे हैं, उसके अनुसार बीएमसी स्कूलों में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. 2013-2014 में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या 11831 थी. 2014-2015 में यही संख्या बढ़ कर 53408 हो गई थी. 2015-2016 में यही संख्या अब 64681 हो चुकी है. कुपोषण के शिकार बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले अधिक है. 2015-16 के आंकड़ों में कुपोषण के शिकार 35 प्रतिशत लड़कियां है, जबकि लड़कों की संख्या 33 प्रतिशत है.
प्रजा फाउंडेशन के संस्थापक निताई मेहता का कहना है, ‘हमने जो आंकड़े पेश किए हैं, ये सब बीएमसी के स्वास्थ योजनाओं के आंकड़े हैं. ये लोग ख़ुद अपने आंकड़ों को नहीं देख रहे हैं. बच्चों के स्वास्थ से जुड़ी सभी सरकारी एजेंसी को इस पर जल्द से जल्द काम करना चाहिए.’
आंकड़ों से पता चला है कि कुपोषित बच्चों में 6-7 वर्ष की आयु के बच्चे सबसे बुरी तरह प्रभावित हैं. प्रजा फाउंडेशन से जुड़े हुए मिलिंद म्हासेके का कहना है, ‘यह पोषण योजनाओं की प्रभावकारिता के बारे में एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाता है. जैसे कि एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) द्वारा 0-6 साल के बच्चों के लिए आंगनवाड़ी. यदि यह योजना बेहतर काम कर रही होती, तो इतने सारे कुपोषित बच्चे स्कूल आते नहीं दीखते.
म्हासेके आगे कहते हैं कि हो सकता है ये आंकड़े बच्चों में दस्त के कारण आए हों, जैसे शहर में बच्चों में दस्त के बहुत सारे मामले सामने आए हैं. आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि इन सभी बच्चों में से 50 प्रतिशत बीएमसी स्कूल के बच्चे कभी न कभी इलाज़ के लिए भेजे जा चुके हैं.
बृहन्मुंबई महानगरपालिका की स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. पद्मजा केसकर ने इस रिपोर्ट पर कहा है कि उन्हें अभी ये आंकड़े देखने होंगे और इसका अध्ययन करना होगा. उन्होंने यह भी बताया कि अगर किसी बच्चे में किसी भी तरह की दिक्कत नज़र आती है, तो वो साइन, केईएम और नायर अस्पताल भेज देते हैं.
आरटीआई में यह भी बात सामने आई है कि 2015-16 में बृहन्मुंबई महानगरपालिका के पार्षदों ने कुपोषण के मामले में सिर्फ़ 16 सवाल उठाए हैं. मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) में सबसे निचले स्तर वाले इलाक़े गोवंडी में कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या सबसे अधिक है. गोवंडी के बाद ख़ार दूसरे स्थान पर, तो वहीं कुर्ला तीसरे स्थान पर है.