साल 2019 में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए थे, जो इससे पहले के सालों के मुक़ाबले अधिक हैं, हालांकि केवल तीन फीसदी राजद्रोह मामलों में ही आरोपों को साबित किया जा सका.
नई दिल्ली: साल 2019 के दौरान देश भर में दर्ज राजद्रोह और कठोर यूएपीए मामलों में बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसमें सिर्फ तीन फीसदी राजद्रोह मामलों में आरोपों को साबित किया जा सका है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट से यह पता चला है.
इसके मुताबिक साल 2019 में राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2018 में दर्ज 70 और साल 2017 में दर्ज 51 मामलों से अधिक है.
पिछले साल सबसे ज्यादा कर्नाटक में 22 मामले, इसके बाद असम में 17 मामले और जम्मू कश्मीर में एक मामले दर्ज किए गए.
इसी तरह यूएपीए के तहत साल 2019 में 1,226 मामले दर्ज किए गए. इससे पहले 2018 में यूएपीए के तहत 1,182 मामले और 2017 में 901 मामले दर्ज किए गए थे.
इस कठोर कानून के तहत पिछले साल सबसे ज्यादा मणिपुर में 306 मामले, इसके बाद तमिलनाडु में 270 मामले और जम्मू कश्मीर में 255 केस दर्ज किए गए थे.
हालांकि इस तरह के मामलों में दोषसिद्धि की दर काफी कम है. एनसीआरबी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 में सिर्फ 3.3 फीसदी मामलों में राजद्रोह के आरोप को साबित किया जा सका. वहीं यूएपीए कानून के तहत 29.2 फीसदी मामलों में दोषसिद्धि की गई है.
इससे पहले साल 2016 में राजद्रोह के मामलों में दोषसिद्धि दर 33.3 फीसदी थी, साल 2017 में 16.7 फीसदी थी और 2018 में 15.4 फीसदी थी.
वहीं यूएपीए मामलों में साल 2018 में आरोपों को साबित करने की दर रही 27.2 फीसदी की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी जरूर हुई है लेकिन यह साल 2017 में 49.3 फीसदी और साल 2016 में 33.3 फीसदी की दर से काफी कम है.
दोषसिद्धि की दर कम होने के कारण बरी किए गए जाने संख्या, सजा पाने वालों से अधिक रही है. साल 2019 में सिर्फ दो लोगों को राजद्रोह का दोषी ठहराया जा सका, जबकि 29 लोग बरी हो गए.
वहीं यूएपीए के तहत 34 लोगों को सजा दिया गया और 16 लोगों को छोड़ दिया गया तथा 92 लोग बरी हो गए.
साल 2018 में भी सिर्फ दो लोगों को राजद्रोह का दोषी पाया गया और 21 लोग बरी हो गए. वहीं यूएपीए के तहत 35 लोगों को दोषी ठहराया गया, 23 लोगों को छोड़ दिया गया और 117 लोग बरी हो गए.