ट्रैक्टर परेडः पत्रकारों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किए जाने की मीडिया संगठनों ने निंदा की

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वूमंस प्रेस कोर जैसे मीडिया संगठनों ने असत्यापित ख़बरें प्रसारित करने के आरोप में पत्रकारों के ख़िलाफ़ राजद्रोह की धाराओं में केस दर्ज किए जाने की कार्रवाई को मीडिया को डराने-धमकाने की कोशिश बताया है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: द वायर)

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और इंडियन वूमंस प्रेस कोर जैसे मीडिया संगठनों ने असत्यापित ख़बरें प्रसारित करने के आरोप में पत्रकारों के ख़िलाफ़ राजद्रोह की धाराओं में केस दर्ज  किए जाने की कार्रवाई को मीडिया को डराने-धमकाने की कोशिश बताया है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: मीडिया संगठनों ने गणतंत्र दिवस पर किसानों की ट्रैक्टर परेड और उस दौरान यहां हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ कई राज्यों में  प्राथमिकियां दर्ज किए जाने की कड़ी निंदा की है. साथ ही उन्होंने इस कार्रवाई को मीडिया को डराने-धमकाने की कोशिश बताया है.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने वक्तव्य जारी कर मांग की कि ऐसी प्राथमिकियां तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए.

वक्तव्य में कहा गया कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया.

गिल्ड ने कहा, ‘यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं. अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें. यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था.’

गिल्ड ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है. जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कीं.

इन वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों में गिल्ड के पूर्व एवं मौजूदा पदाधिकारी शामिल हैं. गिल्ड ने रेखांकित किया कि इन प्राथमिकियों में आरोप लगाया गया है कि ट्वीट इरादतन दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर हुए उपद्रव का कारण बने. उसने कहा कि कि इससे ज्यादा कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता है.

गिल्ड ने कहा, ‘उसी दिन ढेर सारी सूचनाएं मिल रही थीं. गिल्ड ने पाया कि विभिन्न राज्यों में दर्ज ये प्राथमिकियां मीडिया को चुप कराने, डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने के लिए थीं.’

गिल्ड ने कहा कि ये प्राथमिकियां 10 अलग-अलग प्रावधानों के तहत दर्ज की गई हैं, जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं.

गिल्ड ने पहले की गई अपनी यह मांग भी दोहराई कि उच्चतर न्यायपालिका को इस बात पर गंभीर संज्ञान लेना चाहिए कि देशद्रोह जैसे कई कानूनों का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए किया जा रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किया जाएं कि इस तरह के कानूनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल स्वतंत्र प्रेस के खिलाफ प्रतिरोधक के तौर पर नहीं किया जाए.

एडिटर्स गिल्ड के अलावा इंडियन वूमंस प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी) ने भी वरिष्ठ पत्रकार एवं आईडब्ल्यूपीसी की संस्थापक अध्यक्ष मृणाल पांडे और अन्य पत्रकारों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के उत्तर प्रदेश पुलिस के फैसले की निंदा की है.

यह प्राथमिकी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान कथित तौर पर उनके असत्यापित खबरें साझा करने को लेकर दर्ज की गई है.

आईडब्ल्यूपीसी ने एक बयान में कहा कि उसका मानना है कि पांडे के खिलाफ आरोप वास्तविक स्थिति से ध्यान भटकाने के लिए जान-बूझकर की गई एक कोशिश है.

आईडब्ल्यूपीसी ने कहा, ‘यह मीडिया को डराने-धमकाने और उसके अपने कहे मुताबिक चलने के लिए बाध्य करने की कोशिश है. साथ ही, पांडे और अन्य पत्रकारों पर यह आरोप उनकी छवि धूमिल करने की दुर्भावनापूर्ण कोशिश है.’

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने भी संबंधित राज्य सरकारों द्वारा पत्रकारों के खिलाफ उठाए कड़े कदमों की निंदा करते हुए कहा है कि इसे भड़काऊ रिपोर्टिंग कहना आपराधिक है.

अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को बताया था कि किसानों की ट्रैक्टर परेड और उस दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है. जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई, नेशनल हेराल्ड की वरिष्ठ सलाहकार संपादक मृणाल पांडे, कौमी आवाज के संपादक जफर आग़ा, द कारवां पत्रिका के संपादक और संस्थापक परेश नाथ, द कारवां के संपादक अनंत नाथ और इसके कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस शामिल हैं.

एक अनाम व्यक्ति के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई है.

इसी तरह मध्य प्रदेश पुलिस ने भी थरूर और छह अन्य पत्रकारों के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की है. यह प्राथमिकी हिंसा की घटना पर उनके कथित तौर पर गुमराह करने वाले ट्वीट को लेकर दर्ज की गई है.

बता दें कि 26 जनवरी को केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसान नेता राकेश टिकैत, दर्शन पाल और गुरनाम सिंह चढूनी सहित कई किसान नेताओं की अगुवाई में किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकाली थी. इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई थी. दिल्ली पुलिस का दावा है कि इस दौरान करीब 400 पुलिसकर्मी घायल हो गए थे.

पुलिस ने बाद में ट्रैक्टर परेड के दौरान हिंसा के संबंध में 37 किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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