आईआईटी प्रोफेसर की जातिगत टिप्पणियों पर हज़ार से अधिक पूर्व छात्रों ने आपत्ति जताई

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के हज़ार से अधिक पूर्व छात्रों ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक को भेजे गए पत्र में कहा है कि आईआईटी पहले से ही दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए द्वेषपूर्ण होने को लेकर कुख्यात हैं और आगे ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है.

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आईआईटी खड़गपुर (फाइल फोटो साभार: Photo: iitkgp.ac.in)

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के हज़ार से अधिक पूर्व छात्रों ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक को भेजे गए पत्र में कहा है कि आईआईटी पहले से ही दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए द्वेषपूर्ण होने को लेकर कुख्यात हैं और आगे ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है.

आईआईटी खड़गपुर (फाइल फोटो साभार: Photo: iitkgp.ac.in)
आईआईटी खड़गपुर (फाइल फोटो साभार: Photo: iitkgp.ac.in)

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के 1,000 से अधिक पूर्व छात्रों ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी और शारीरिक तौर पर अक्षम छात्रों की प्रेपरटरी इंग्लिश की क्लास में एक प्रोफेसर के दुर्व्यवहार को लेकर आपत्ति दर्ज करवाई है.

पूर्व छात्रों ने प्रोफेसर के इस्तीफे की मांग की है और संस्थान को कुछ महत्वपूर्ण बदलाव करने को कहा है. इसके साथ ही उन्होंने प्रोफेसर के दुर्व्यवहार का शिकार हुए छात्रों के लिए मुआवज़े की भी मांग की है.

इन पूर्व छात्रों में आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, आईआईएससी बेंगलुरु के शैलेश गांधी और वेणु माधव गोविंदु और मैसी यूनिवर्सिटी के मोहन जे. दत्ता शामिल हैं.

गौरतलब है कि लाइववायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि एक वीडियो क्लिप में आईआईटी खड़गपुर की प्रोफेसर सीमा सिंह एक छात्र के कथित तौर पर राष्ट्रगान पर न खड़े होने पर उसे ‘ब्लडी बा**र्ड’ कहती हैं और एक अन्य छात्र को किसी परिजन के देहांत के चलते क्लास में गैर हाजिर रहने पर जातिसूचक शब्द कहती दिखती हैं.

डॉ. सिंह की पहली क्लिप पहले इंस्टाग्राम पर सामने आई थी, जहां उन्हें एक छात्र को क्लास छोड़कर जाने और उसके नंबर काटने की बात कहते सुना जा सकता है.

रिपोर्ट में बताया गया था कि इस क्लास में अधिकतर छात्र अनुसूचित जाति, जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग से होते हैं, साथ ही विशेष तौर पर सक्षम छात्र भी रहते हैं. देश भर के आईआईटी में अनुसूचित जाति, जनजाति या ओबीसी और शारीरिक विकलांग वर्ग में आने वाले छात्रों को इंजीनियरिंग कोर्स के लिए तैयार करने के उद्देश्य से एक साल का इंग्लिश कोर्स चलाया जाता है.

आईआईटी बॉम्बे की एक छात्र संगठन आंबेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्किल (एपीपीएससी) समेत कई बहुजन संगठन प्रोफेसर के इस व्यवहार के विरोध में खुलकर सामने आये थे. एपीपीएससी ने लाइववायर से यह भी कहा था कि इस तरह की कक्षाएं इस जातिगत धारणा को पुष्ट  करती हैं कि आरक्षित वर्ग के छात्रों की आईआईटी में पढ़ने के लिए विशेष प्रिपरेटरी कक्षाओं की जरूरत होती है.

पूर्व छात्रों ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक को भेजे गए पत्र में एपीपीएससी की बात से हामी का संकेत देते हुए कहा है कि आईआईटी पहले से ही दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए द्वेषपूर्ण होने को लेकर कुख्यात है.

उन्होंने कहा कि प्रोफेसर सिंह के व्यवहार से यह स्पष्ट है उन्हें लगता है कि उनका ‘जातिवादी व्यवहार और दुर्व्यवहार’ अनदेखा कर दिया जाएगा.

अपने पत्र में पूर्व छात्रों ने कई मांगें रखी हैं, जिनमें से एक प्रोफेसर सीमा पर एससी/एसटी अत्याचार निवारण कानून के तहत मामला दर्ज करवाना है.

उनकी मांगें हैं-

1. आईआईटी खड़गपुर और प्रोफेसर छात्रों से बिना शर्त माफ़ी मांगें.

2.  संस्थान प्रोफेसर को बर्खास्त करे.

3. संस्थान प्रोफेसर सिंह के खिलाफ कड़ी दंडात्मक कार्रवाई करे, क्योंकि उनका व्यवहार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के तहत आता है.

4. संस्थान संबंधित छात्रों को उनके अनुचित अपमान का सामना करने के लिए सभी जरूरी मदद मुहैया करवाए.

5. संस्थान (अन्य विश्वविद्यालयों की तरह और यूजीसी के पत्र क्रमांक F.126 / 76 (CP/SCT) दिनांक 27 जून, 1979 के अनुरूप) एससी, एसटी और ओबीसी सेल स्थापित करे, जो जातिगत भेदभाव विरोधी सेल की तरह काम करे, और जो रोजमर्रा के जातिवादी व्यवहार से लेकर और संरचनात्मक जातिवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सके और संरचनात्मक भेदभाव के बारे में परिसर को संवेदनशील बनाने की दिशा में काम करें.

6. संस्थान यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए कि छात्रों के साथ गरिमापूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार हो और परिसर से जातिवाद का उन्मूलन किया जाए.

लाइववायर के अनुसार, प्रोफेसर सीमा सिंह ने आखिरकार यह कहते हुए माफ़ी मांगी है की उनकी टिप्पणियां कोविड से उपजे तनाव का नतीजा हो सकती हैं.

इस पर बहुजन छात्रों का कहना है कि यह संतोषजनक जवाब नहीं है. किसी के जातिवादी व्यवहार को ढकने के लिए आप मानसिक तनाव को ढाल की तरह इस्तेमाल नहीं कर सकते.

(ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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