ग़ाज़ीपुर सीमा झड़प: जाति आधारित दंगे भड़काने की साज़िश रच रही है भाजपा- राकेश टिकैत

दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर बुधवार को ग़ाज़ीपुर प्रदर्शन स्थल के पास भाजपा कार्यकर्ताओं और कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे आंदोलनकारी किसानों के बीच झड़प हुई थी. भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि यह प्रकरण सात महीने पुराने विरोध को दबाने के लिए भाजपा और आरएसएस की साज़िश है.

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30 जून पर गाजीपुर सीमा पर हुई झड़प. (फोटो: वीडियोग्रैब/पीटीआई)

दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर बुधवार को ग़ाज़ीपुर प्रदर्शन स्थल के पास भाजपा कार्यकर्ताओं और कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे आंदोलनकारी किसानों के बीच झड़प हुई थी. भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि यह प्रकरण सात महीने पुराने विरोध को दबाने के लिए भाजपा और आरएसएस की साज़िश है.

30 जून पर गाजीपुर सीमा पर हुई झड़प. (फोटो: वीडियोग्रैब/पीटीआई)
30 जून पर गाजीपुर सीमा पर हुई झड़प. (फोटो: वीडियोग्रैब/पीटीआई)

गाजियाबाद: गाजीपुर सीमा पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं और कृषि कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प के बाद भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बुधवार को भाजपा पर जाति आधारित दंगे भड़काने की साजिश रचने का आरोप लगाया.

भाकियू की ओर से जारी बयान के अनुसार, टिकैत ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने किसान नेताओं को काले झंडे दिखाये और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया.

बयान में कहा गया है कि वाल्मीकि समाज के सदस्यों ने कृषि कानूनों को लेकर जारी विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है.

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार झड़प उस वक्त हुई जब भाजपा कार्यकर्ता एक फ्लाईवे पर जुलूस निकाल रहे थे, जहां प्रदर्शनकारी मुख्य रूप से भाकियू के समर्थक नवंबर 2020 से डेरा डाले हुए हैं.

किसानों ने आरोप लगाया कि यह प्रकरण सात महीने पुराने विरोध को दबाने के लिए भाजपा और आरएसएस की साजिश है. उन्होंने कहा कि किसान पीछे नहीं हटेंगे.

टिकैत ने ट्वीट कर कहा, ‘इस समय देश पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया है. इनको देश की जनता, व्यापारी, किसान और मजदूरों से कोई लेना देना नहीं है. हैरानी की बात है कि किसान देश की राजधानी को घेर कर बैठे हैं और सरकार बात ही नहीं कर रही है. किसान भी पीछे नहीं हटेगा.’

वहीं, भारतीय किसान यूनियन ने आरोप लगाया कि भाजपा आंदोलन को हिंसा से तोड़ना चाहती है.

भाकियू ने ट्वीट कर कहा, ‘भाजपा अब आंदोलन को हिंसा से तोड़ना चाहती है जिसका उदाहरण आज की गाजीपुर बॉर्डर पर भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा की गई हिंसा है. सभी किसानों से अनुरोध है इनके बहकावे में ना आएं और अपने आंदोलन को बचाए रखें.’

वहीं, सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि जब वे भाजपा के नवनियुक्त महासचिव अमित वाल्मीकि के सम्मान में स्वागत जुलूस निकाल रहे थे तो अपशब्दों और जातिसूचक शब्दों का का इस्तेमाल किया गया, जिसकी वजह से झड़प हुई.

गौरतलब है कि दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित गाजीपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं और कृषि कानूनों का विरोध कर रहे आंदोलनकारी किसानों के बीच बुधवार को झड़प हो गई थी.

सोशल मीडिया पर वीडियो और तस्वीरें सामने आई हैं, जिनमें कथित रूप से कुछ गाड़ियां क्षतिग्रस्त हालत में दिख रही हैं. ये गाड़ियां भाजपा नेता अमित वाल्मीकि के काफिले का हिस्सा थीं और वाल्मीकि के स्वागत के लिए ही जुलूस निकाला जा रहा था.

वहीं, किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि यह प्रकरण तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कुचलने और इसे बदनाम करने की सरकार की एक और साजिश है.

मालूम हो कि केंद्र सरकार के विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.

केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)