मई 2020 में तिनसुकिया ज़िले के बाघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के एक कुएं में गैस रिसाव के बाद लगी को क़रीब पांच महीने बाद बुझाया जा सका था. एनजीटी द्वारा इसके लिए गठित जांच समिति में कंपनी के प्रबंध निदेशक को शामिल किया गया था, जिस पर हैरानी जताते हुए शीर्ष अदालत ने इस निर्णय पर रोक लगा दी है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने असम के बाघजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) के तेल के कुएं में आग लगने की घटना में संबंधित व्यक्तियों की नाकामियों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराने के वास्ते छह सदस्यीय नई समिति गठित करने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूंड और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने इसके साथ ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, ओआईएल इंडिया और अन्य को नोटिस जारी करके उन्हें याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने अधिकरण के आदेश पर अचरज व्यक्त करते हुए कहा कि ओआईएल पर वेटलैंड को प्रदूषित करने के आरोप हैं, लेकिन उसने कंपनी के प्रबंध निदेशक को जांच समिति का सदस्य बनाया गया है.
पीठ ने कहा, ‘जिस प्रकार से एनजीटी ने इस मुद्दे को अपने हाथ से जाने दिया है, हम उस तरीके से बेहद निराश हैं. यह राष्ट्रीय अधिकरण है. इसे ऐसा नहीं करना चाहिए.’
न्यायालय ने 19 फरवरी के अधिकरण के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा कि ओआईएल असम के बाघजान तेल कुएं में आग लगने की घटना का दोषारोपण ठेकेदार पर करके और संबंधित व्यक्तियों की जिम्मेदारी तय करने के लिए छह सदस्यीय नई समिति का गठन करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता.
न्यायालय अधिकरण के 19 फरवरी के आदेश को चुनौती देने वाली अधिकार कार्यकर्ता बोनानी कक्कड़ की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनजीटी द्वारा गठित समिति ने इंडियन ऑयल लिमिटेड के बाघजान कुएं में विस्फोट के लिए निर्धारित मुआवजे को अंतिम रूप दिया था.
याचिकाकर्ताओं ने हितों के टकराव पर सवाल उठाया क्योंकि ऑयल इंडिया के प्रबंध निदेशक (ओआईएल) मुआवजे का निर्धारण करने वाले एनजीटी द्वारा नियुक्त समिति के सदस्य थे.
विशेषज्ञ समिति ने विस्फोट और आग से प्रभावित 173 परिवारों को 25 लाख रुपये और कम प्रभावित 439 परिवारों को 20 लाख रुपये का मुआवजा तय किया था. ओआईएल के पहले के एक बयान के अनुसार, कंपनी ने मुआवजे के रूप में 36.90 करोड़ रुपये जारी किए थे.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ओआईएल को एक नोटिस जारी किया और अपने आदेश में कहा कि ‘एनजीटी के आक्षेपित निर्णय और आदेश के संचालन पर रोक रहेगी.’
आदेश में कहा, ‘यह प्रस्तुत किया गया है कि ये प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा क्योंकि ऑयल इंडिया लिमिटेड का आचरण मूल रूप से मुद्दे में है और इसलिए, प्रबंध निदेशक को किसी भी मामले में समिति का सदस्य नहीं होना चाहिए.’
गौरतलब है कि 27 मई, 2020 को राजधानी गुवाहाटी से करीब 450 किलोमीटर दूर तिनसुकिया जिले के बाघजान गांव में ऑयल इंडिया लिमिटेड के पांच नंबर तेल के कुएं में विस्फोट (ब्लोआउट) हो गया था, जिसके बाद इस कुएं से अनियंत्रित तरीके से गैस रिसाव शुरू हुआ था.
ब्लोआउट वह स्थिति होती है, जब तेल और गैस क्षेत्र में कुएं के अंदर दबाव अधिक हो जाता है और उसमें अचानक से विस्फोट के साथ और कच्चा तेल या प्राकृतिक गैस अनियंत्रित तरीके से बाहर आने लगते हैं.
कुएं के अंदर दबाव बनाए रखने वाली प्रणाली के सही से काम न करने से ऐसा होता है. इसके बाद नौ जून को यहां भीषण आग लग गई, जिसमें दो दमकलकर्मियों की मौत हो गई थी. करीब पांच महीने बाद नवंबर में ऑयल इंडिया के कुएं की आग को पूरी तरह बुझाया जा सका था.
एनजीटी अध्यक्ष ए.के. गोयल के नेतृत्व वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा था कि प्रथम दृष्टया वह सहमत है कि सुरक्षा एहतियात बरतने में ओआईएल नाकाम रही और यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि दोबारा ऐसी घटनाएं ना हों.
पीठ ने कहा था, ‘हम पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के सचिव की अध्यक्षता में छह सदस्यीय कमेटी को डीजी हाइड्रोकार्बन और डीजी खान सुरक्षा, डीजी तेल उद्योग सुरक्षा और पीईएसओ (पेट्रोलियम और विस्फोटक सुरक्षा संगठन), विस्फोटक के मुख्य नियंत्रक, नयी दिल्ली के साथ तीन महीने के भीतर इस पहलू पर गौर करने का निर्देश देते हैं.’
पीठ ने कहा था कि यह समिति स्थिति की समीक्षा करेगी और घटना में संबंधित लोगों की नाकामियों के लिए जिम्मेदारी तय करने समेत समाधान के लिए उपयुक्त कदम का निर्देश देगी.
एनजीटी ने 24 जून 2020 को मामले पर गौर करने और एक रिपोर्ट सौंपने के लिए उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस बीपी कटाके की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था.
मालूम हो कि विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया था कि मई महीने से हो रहे गैस रिसाव के चलते आसपास के इलाके में भारी प्राकृतिक नुकसान हुआ. आसपास के संवेदनशील वेटलैंड, डिब्रु-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान और लुप्त हो रही प्रजातियों पर संकट मंडरा रहा है.
इसके बाद एनजीटी ने इस आग पर काबू पाने में असफल रहने पर ऑयल इंडिया पर 25 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. अधिकरण का कहना था कि कुएं में लगी आग से पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है.
शुरुआत में कुएं में आग लगने की घटना के बाद मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)