किसी भी आदिवासी को उसके दावे का निपटारा किए बिना ज़मीन से बेदख़ल नहीं किया जाना चाहिए: एनएचआरसी

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने एक वेबिनार में कहा कि आयोग इस बात पर ग़ौर करेगा कि वह अपनी ज़मीन पर आदिवासी लोगों के दावों के न्यायनिर्णयन और उसके वितरण की नीति के संबंध में क्या कर सकता है. आयोग मानवाधिकार के नज़रिये से विभिन्न क़ानूनों की समीक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

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(फाइल फोटो: द वायर)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने एक वेबिनार में कहा कि आयोग इस बात पर ग़ौर करेगा कि वह अपनी ज़मीन पर आदिवासी लोगों के दावों के न्यायनिर्णयन और उसके वितरण की नीति के संबंध में क्या कर सकता है. आयोग मानवाधिकार के नज़रिये से विभिन्न क़ानूनों की समीक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

(फाइल फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने बृहस्पतिवार को कहा कि किसी भी आदिवासी को जमीन के अधिकार के उसके दावे का निपटारा किए बिना बेदखल नहीं किया जाना चाहिए.

अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने यह बात मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने वालों के साथ आयोजित एक वेबिनार में कही.

एनएचआरसी की ओर से जारी बयान में उनके हवाले से कहा गया कि किसी भी आदिवासी को जमीन के उसके दावे का निपटारा किए बिना बेदखल नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस संबंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा फैसला पहले ही दिया गया है.

समाचर एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मिश्रा ने आगे आश्वासन दिया कि आयोग इस बात पर गौर करेगा कि वह अपनी भूमि पर आदिवासी लोगों के दावों के न्यायनिर्णयन और उसके वितरण की नीति के संबंध में क्या कर सकता है.

उन्होंने कहा कि आयोग मानवाधिकार के नजरिये से विभिन्न कानूनों की समीक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.

मिश्रा ने कहा कि एनएचआरसी का इरादा मानवाधिकार रक्षकों और नागरिक समाज संगठनों के साथ अपनी बातचीत जारी रखने का है, ताकि मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के प्रयासों में सहयोग किया जा सके, ऐसे समय में जब देश को कोविड-19 के रूप में एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

बैठक के दौरान दिए गए कुछ महत्वपूर्ण सुझावों में विस्थापित लोगों की आजीविका के साथ-साथ इसके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव की दृष्टि से विकासात्मक परियोजनाओं की जांच करना शामिल है; विकास परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों का पुनर्वास परियोजना के कार्यान्वयन से पहले पूरी तरह से तैयार किया जाना चाहिए, जिसमें केवल वित्तीय सहायता शामिल नहीं होनी चाहिए.

इसके अलावा विभिन्न व्यवसायों में अंतिम संस्कार स्थलों पर कार्यरत श्रमिकों, कचरा बीनने वालों और खानाबदोश लोगों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

बयान में कहा गया है कि महिला कामगारों को अनौपचारिक क्षेत्र में पुरुषों के बराबर वेतन सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

साथ ही ट्रांसजेंडरों के उत्पीड़न और उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन पर रोक लगाने के लिए उनके अधिकारों को परिभाषित किया जाना चाहिए. अधिकारों के हर पहलू में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करने और इलाज के अंतर को कम करने का भी सुझाव दिया गया.

बयान में कहा है कि काम की जगह पर सिलिकॉसिस समेत स्वास्थ्य संबंधी सभी समस्याओं से प्रभावित असंघटित मजदूरों को उचित मेडिकल चेकअप और इलाज सुनिश्चित किया जाए.

चूंकि महामारी के दौरान उत्पन्न खाद्य असुरक्षा ने उत्पादन में अवैध व्यापार और मादक पदार्थों के उपयोग को बढ़ा दिया, इसलिए पुनर्वास के दौरान सुरक्षित आवास, रोजगार, स्वास्थ्य संरक्षण और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाए.

जंगलों में रहने वाले आदिवासियों की तरह शहरों में रहने वाले गरीबों को अतिक्रमणकारी ठहराने की प्रवृत्ति को त्यागना चाहिए और उनके आत्मसम्मान और अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)