सरकारी बैंकों के निजीकरण के ख़िलाफ़ बैंक अधिकारियों की यूनियन ने देशव्यापी आंदोलन शुरू किया

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लिए विनिवेश अभियान के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी. अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ ने सरकार से बैंकिंग क़ानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को वापस लेने की अपील की, जो संसद के शीतकालीन सत्र में पेश और पारित करने के लिए सूचीबद्ध है.

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अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ का प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/ट्राइबल आर्मी)

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लिए विनिवेश अभियान के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी. अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ ने सरकार से बैंकिंग क़ानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को वापस लेने की अपील की, जो संसद के शीतकालीन सत्र में पेश और पारित करने के लिए सूचीबद्ध है.

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ का प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/ट्राइबल आर्मी)

नई दिल्ली: बैंक अधिकारियों के एक संघ ने सरकारी बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के खिलाफ मंगलवार को देशव्यापी आंदोलन शुरू किया.

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने एक बयान में कहा कि ‘बैंक बचाओ देश बचाओ रैली’ मंगलवार को नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आयोजित की गई, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों के अधिकारी और अन्य हितधारक शामिल हुए.

एआईबीओसी के महासचिव सौम्य दत्ता ने रैली को संबोधित करते हुए, सरकार से बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 को वापस लेने की अपील की, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने और पारित करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

उन्होंने बैंक कर्मचारियों से किसान आंदोलन से प्रेरणा लेने की अपील करते हुए कहा, ‘अगर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के लिए विधेयक पेश करती है और उसे पारित कराती है तो बैंक अधिकारी बैंकिंग क्षेत्र के सभी हितधारकों को एकजुट करेंगे और देशव्यापी आंदोलन शुरू करेंगे.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश किए जाने वाले बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 से पीएसबी में न्यूनतम सरकारी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत करने की उम्मीद है.

पिछले सत्र में संसद ने राज्य द्वारा संचालित सामान्य बीमा कंपनियों के निजीकरण की अनुमति देने के लिए एक विधेयक पारित किया था.

सामान्य बीमा व्यवसाय (राष्ट्रीयकरण) संशोधन विधेयक, 2021 ने एक निर्दिष्ट बीमाकर्ता में कम से कम 51 प्रतिशत इक्विटी पूंजी रखने के लिए केंद्र सरकार की आवश्यकता को हटा दिया था.

अधिनियम, जो 1972 में लागू हुआ, सामान्य बीमा व्यवसाय के विकास को सुरक्षित करके अर्थव्यवस्था की बेहतर जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय बीमा कंपनियों और अन्य मौजूदा बीमा कंपनियों के उपक्रमों के शेयरों के अधिग्रहण और हस्तांतरण के लिए प्रदान किया गया.

सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग ने निजीकरण के लिए विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप को पहले ही दो बैंकों और एक बीमा कंपनी का सुझाव दिया है.

सूत्रों के मुताबिक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक निजीकरण के लिए संभावित उम्मीदवार हैं.

गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल की शुरुआत में वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश करते हुए 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने के लिए विनिवेश अभियान के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी.

उन्होंने कहा था, ‘वर्ष 2021-22 में आईडीबीआई बैंक के अलावा हम दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करने का प्रस्ताव करते हैं.’

सरकार इससे पहले आईडीबीआई बैंक का निजीकरण कर चुकी है. आईडीबीआई बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी बीमा क्षेत्र की कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम को बेच दी गई. इसके अलावा सरकार पिछले चार साल के दौरान 14 बैंकों का आपस में विलय भी कर चुकी है.

उसके बाद बीते 25 फरवरी को वित्त मंत्रालय ने निजी क्षेत्र के सभी बैंकों को कर संग्रह, पेंशन भुगतान और लघु बचत योजनाओं जैसे सरकार से जुड़े कामकाज में शामिल होने की अनुमति दे दी थी.

एक आधिकारिक बयान में कहा था कि इस कदम से ग्राहकों के लिए सुविधा बढ़ेगी, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और ग्राहकों को मिलने वाली सेवाओं के मानकों में दक्षता बढ़ेगी.

वहीं, बैंक अधिकारियों के संगठनों ने निजी बैंकों को सरकारी कामकाज करने की अनुमति देने का विरोध किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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