मेघालय के तुरा से भाजपा की सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी की सांसद अगाथा संगमा ने नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी का मुद्दा लोकसभा में उठाते हुए कहा कि यह पहली बार नहीं है कि निर्दोष लोगों को आफ़स्पा की वजह से जान गंवानी पड़ी है. अब समय आ गया है कि इस क़ानून को हटाया जाए.
नई दिल्ली: नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद अगाथा संगमा ने नगालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 लोगों के मारे जाने की घटना का मुद्दा मंगलवार को लोकसभा में उठाया और कहा कि पूर्वोत्तर के राज्यों से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (आफ्सपा) हटाया जाना चाहिए.
उन्होंने सदन में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और मेघालय के तुरा से लोकसभा सदस्य अगाथा संगमा ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि निर्दोष लोगों को आफ्सपा की वजह से जान गंवानी पड़ी है.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में भाजपा की सहयोगी एनपीपी की नेता ने पूर्वोत्तर में पहले की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया और कहा, ‘कई नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है. अब समय आ गया है कि आफ्सपा को हटाया जाए.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, संगमा ने कहा, ‘यह पहली बार नहीं है जब ऐसी घटना हुई है जहां निर्दोष नागरिकों को आफस्पा जैसे कठोर कानूनों का खामियाजा भुगतना पड़ा. यह हमें 2000 में मणिपुर में हुई एक घटना की भी याद दिलाता है जिसे मालोम नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, जहां दस से अधिक नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इसने इरोम शर्मिला को 16 साल की भूख हड़ताल पर जाने के लिए प्रेरित किया.’
संगमा ने कहा, ‘उत्तर-पूर्व में उग्रवाद को रोकना सुनिश्चित करने के लिए 1958 में आफस्पा अधिनियमित किया गया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके बजाय इसने नागरिकों को गलत तरीके से प्रताड़ित हुए, बलात्कार और हत्याएं हुईं. अब इसे निरस्त कर देना चाहिए.’
मालूम हो कि 14 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम, 1958 यानी आफस्पा को वापस लेने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है.
बीते सोमवार को मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने भी आफस्पा को रद्द करने की मांग की थी. इसके अलावा नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने भी आफस्पा को निरस्त करने की मांग उठाई है.
गौरतलब है कि नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग और तिरु गांवों के बीच यह घटना उस समय हुई. गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब चार दिसंबर की शाम कुछ कोयला खदान के मजदूर एक पिकअप वैन में सवार होकर घर लौट रहे थे. मारे गए लोग कोन्यक जनजाति से थे.
गोलीबारी की पहली घटना तब हुई जब सेना के जवानों ने शनिवार (4 दिसंबर) शाम को एक पिकअप वैन में घर लौट रहे कोयला खदान कर्मचारियों को प्रतिबंधित संगठन एनएससीएन (के) के युंग आंग गुट से संबंधित उग्रवादी समझ लिया. इस घटना में छह लोग मारे गए थे.
पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले तथा इन लोगों ने सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई धक्का-मुक्की व झड़प में एक सैनिक की मौत हो गई और सेना के वाहनों में आग लगा दी गई. इसके बाद सैनिकों द्वारा आत्मरक्षार्थ की गई गोलीबारी में सात और लोगों की जान चली गई.
पुलिस ने कहा कि दंगा रविवार (पांच दिसंबर) दोपहर तक खिंच गया, जब गुस्साई भीड़ ने यूनियन के कार्यालयों और इलाके में असम राइफल्स के शिविर में तोड़फोड़ की और इसके कुछ हिस्सों में आग लगा दी. सुरक्षा बलों ने हमलावरों पर जवाबी गोलीबारी की, जिसमें कम से कम एक व्यक्ति की मौत हुई.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)