मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने पेगासस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति को एल्गार परिषद मामले के सात आरोपियों- रोना विल्सन, आनंद तेलतुंबडे, वर्नोन गॉन्जाल्विस, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, हेनी बाबू और शोमा सेन के मोबाइल फोन सौंपने की एनआईए की अर्ज़ी को मंज़ूरी दी है. इन सभी का आरोप है कि पेगासस के ज़रिये उनके फोन में सेंधमारी की गई थी.
मुंबई: मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने पेगासस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित तकनीकी समिति को एल्गार परिषद मामले के सात आरोपियों के मोबाइल फोन सौंपने की राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की अर्जी को मंगलवार को मंजूरी दे दी.
एक आरोपी की ओर से पेश वकील ने कहा कि तकनीकी समिति ने एनआईए को ये मोबाइल फोन सौंपने को कहा था.
एनआईए ने विशेष अदालत से सात आरोपियों के फोन सौंपने की अनुमति मांगी, क्योंकि ये फोन अदालत के संरक्षण में है.
विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश डीई कोठालिकर ने एनआईए की अर्जी को मंजूरी दे दी. जिन सात आरोपियों के फोन सौंपे जाने हैं, उनमें रोना विल्सन, आनंद तेलतुंबडे, वर्नोन गॉन्जाल्विस, वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, हेनी बाबू और शोमा सेन शामिल हैं.
इन सातों ने हाल ही में तकनीकी समिति को अपना प्रस्तुतिकरण भेजकर आरोप लगाया था कि पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के जरिये उनके फोन में सेंधमारी की गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने कहा कि एनआईए की याचिका में उल्लिखित सामग्री – आरोपियों से जब्त किए गए 25 मोबाइल फोन – जो उसकी संरक्षण में हैं, जांच अधिकारी को सौंप दिए जाएं.
इसने अदालत के रजिस्ट्रार को बुधवार को आरोपियों और उनके वकीलों की मौजूदगी में सामग्री पर मुहर लगाने का निर्देश दिया. सामग्री को को फिर से सील कर दिया जाएगा और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति को प्रस्तुत करने के लिए जांच अधिकारी को सौंप दिया जाएगा.
तीन सदस्यीय समिति ने फोन 10 फरवरी को जमा करने की मांग की है. समिति द्वारा उपकरणों की डिजिटल प्रतियां बनाने के बाद उन्हें अदालत में वापस कर दिया जाएगा क्योंकि वे मुकदमे के लिए अभियुक्तों के खिलाफ सबूत का हिस्सा हैं.
आरोपियों के मोबाइल फोन पुणे सिटी पुलिस द्वारा उनकी गिरफ्तारी के समय जब्त किए गए थे, जिसने शुरू में मामले की जांच की थी और फिर एनआईए ने 2020 में जांच अपने हाथ में ले ली थी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने पिछले महीने एक सार्वजनिक नोटिस जारी कर उन लोगों को बुलाया था जिनके पास यह संदेह करने के लिए उचित कारण है कि उनके मोबाइल फोन पेगासस स्पायवेयर से प्रभावित हैं.
तकनीकी समिति ने बीते तीन फरवरी को इस समय सीमा को बढ़ा दिया था, ताकि वैसे और भी लोग समिति से संपर्क कर सकें, यदि उन्हें संदेह है कि उनके फोन में पेगासस स्पायवेयर का हमला हुआ है.
प्रमुख समाचार पत्रों में जारी सार्वजनिक नोटिस में कहा गया था कि उसकी पहली अपील के दौरान केवल दो व्यक्तियों ने अपने मोबाइल फोन समिति को सौंपे हैं.
नोटिस में कहा गया है, ‘इसलिए तकनीकी समिति एक बार फिर उन सभी से आठ फरवरी तक समिति से संपर्क का अनुरोध करती है, जिनके पास यह मानने का पर्याप्त कारण मौजूद है कि उनके मोबाइल फोन पेगासस स्पायवेयर से प्रभावित हैं.’
अभियुक्तों ने समिति के समक्ष अपने आवेदन में अपने फोन के सर्विलांस स्पायवेयर से प्रभावित होने के संदेह के पीछे के कारणों को अलग से बताया.
रोना विल्सन ने पिछले साल दायर एक रिट याचिका के साथ बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें अमेरिका स्थित एक स्वतंत्र फॉरेंसिक फर्म आर्सेनल कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि उनका कंप्यूटर 2018 में उनकी गिरफ्तारी से दो साल पहले लगाए गए ‘मैलवेयर से प्रभावित’ था.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने इजरायली स्पायवेयर पेगासस के जरिये भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए पिछले साल अक्टूबर में सेवानिवृत्त जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया था.
उस समय मामले की सुनवाई करते हुए सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि सरकार हर वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा की बात कहकर बचकर नहीं जा सकती. इसके बाद अदालत ने इसकी विस्तृत जांच करने का आदेश दिया था.
उच्चतम न्यायालय ने समिति का गठन करते समय विशेष रूप से यह जांच करने को कहा था कि क्या स्पायवेयर को केंद्र या किसी राज्य सरकार अथवा किसी केंद्रीय या राज्य एजेंसी द्वारा नागरिकों के खिलाफ उपयोग के लिए खरीदा गया था.
बता दें कि जुलाई 2021 में द वायर सहित मीडिया समूहों के अंतरराष्ट्रीय कंसोर्टियम ने ‘पेगासस प्रोजेक्ट’ नाम की पड़ताल के तहत यह खुलासा किया था कि दुनियाभर में अपने विरोधियों, पत्रकारों और कारोबारियों को निशाना बनाने के लिए कई देशों ने पेगासस का इस्तेमाल किया था.
इस कड़ी में 18 जुलाई 2021 से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थीं, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
इस पड़ताल के मुताबिक, इजरायल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
भारत में इसके संभावित लक्ष्यों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, अब सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव (वे उस समय मंत्री नहीं थे) के साथ कई प्रमुख नेताओं के नाम शामिल थे.
तकनीकी जांच में द वायर के दो संस्थापक संपादकों- सिद्धार्थ वरदाजन और एमके वेणु, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, अन्य पत्रकार जैसे सुशांत सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता और एसएनएम अब्दी, मरहूम डीयू प्रोफेसर एसएआर गिलानी, कश्मीरी अलगाववादी नेता बिलाल लोन और वकील अल्जो पी. जोसेफ के फोन में पेगासस स्पायवेयर उपलब्ध होने की भी पुष्टि हुई थी.
इस बीच वकील और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, जिन्हें दिसंबर में जमानत पर रिहा किया गया है, ने मंगलवार को विशेष अदालत को सूचित किया कि सादे कपड़ों में कुछ पुरुष, सीआईडी से होने का दावा करते हुए, उनके दोस्त के घर अंधेरी में गए थे, जहां वह पहले रह रही थी.
पिछले महीने भारद्वाज ने पते में बदलाव की मांग की थी और उन्हें ठाणे में रहने की अनुमति दी गई थी.
भारद्वाज ने अदालत को सूचित किया, ‘इस हफ्ते सीआईडी से होने का दावा करने वाले कुछ पुलिसकर्मियों ने मेरे पहले के आवास का दौरा किया. उन्होंने कोई पहचान पत्र नहीं दिखाया. इस शहर में मेरा कोई घर नहीं है. मुझे दोस्तों के साथ रहना होता है. इन दोस्तों को इसलिए उत्पीड़न का शिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि वे मुझे आश्रय दे रहे हैं.’
एनआईए के विशेष लोक अभियोजक संदीप सदावर्ते ने कहा कि वे अधिकारी एनआईए के नहीं थे. विशेष न्यायाधीश कोठालिकर ने एजेंसी से यह पता लगाने के लिए कहा कि घर पर कौन आया था और उन्हें उचित निर्देश दें, क्योंकि भारद्वाज को अदालत ने अपना पता बदलने की अनुमति दी है और उनका पहले के पते से कोई लेना-देना नहीं है.
भारद्वाज ने अदालत को बताया कि उसने अपनी जमानत की शर्तों का पालन किया है और आवश्यकतानुसार स्थानीय पुलिस स्टेशन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)