यूपी: देवरिया में आईटीआई की अधबनी इमारत कई युवाओं के टूटे सपनों की नींव पर खड़ी है

ग्राउंड रिपोर्ट: साल 2014 में देवरिया ज़िले में भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र के भवानी छापर गांव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आईटीआई का शिलान्यास किया था. ग्रामीण युवाओं को आस थी कि वे तकनीकी हुनर सीखकर आजीविका कमा सकेंगे. सात साल बीतने के बावजूद यह आईटीआई अब तक शुरू नहीं हो सका और रोजी-रोटी की तलाश में स्थानीय युवा अन्य राज्यों में मज़दूरी करने के लिए पलायन को मजबूर हैं.

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देवरिया के भवानी छापर गांव में आईटीआई के शिलान्यास का पत्थर और निर्माणाधीन इमारत.

ग्राउंड रिपोर्ट: साल 2014 में देवरिया ज़िले में भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र के भवानी छापर गांव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आईटीआई का शिलान्यास किया था. ग्रामीण युवाओं को आस थी कि वे तकनीकी हुनर सीखकर आजीविका कमा सकेंगे. सात साल बीतने के बावजूद यह आईटीआई अब तक शुरू नहीं हो सका और रोजी-रोटी की तलाश में स्थानीय युवा अन्य राज्यों में मज़दूरी करने के लिए पलायन को मजबूर हैं.

भवानी छापर गांव के रंजीत साहनी. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

देवरिया: ‘इस जमाने में तो हमारे गांव-जवार का विकास नहीं होना है. क्या पता हमारे बाल-बच्चों के समय कुछ हो जाए. हमारा सपना तो अब कुछ रहा नहीं. हम तो बस यह सपना देख सकते हैं कि किसी शहर में चले जाएं और हमें वहां मजदूरी मिल जाए.’

निराशा में डूबे यह शब्द 22 वर्षीय रंजीत साहनी के हैं जो अपने गांव भवानी छापर में सात वर्ष से बन रहे आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) के बाहर एक दर्जन युवाओं के साथ मिले.

देवरिया जिले के भाटपाररानी विधानसभा क्षेत्र के भवानी छापर गांव के मलाही टोले में पांच घरों के छोड़ सभी निषाद परिवार हैं. पांच घर राजभर जाति के लोगों के हैं.

देवरिया जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित भवानी छापर गांव के युवकों में आईटीआई बनने से उम्मीद जगी थी कि वे यहां पढ़ कर रोजगार प्राप्त कर सकेंगे. आईटीआई का शिलान्यास 12 मई 2014 में सपा सरकार के समय तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया था लेकिन सात वर्ष बाद भी यह बनकर तैयार नहीं हो सका है.

हर तहसील में आधुनिक कौशल विकास केंद्र की स्थापना करने की बात करने वाली भाजपा की वर्ष 2017 में सरकार बनने के बाद आईटीआई का काम और धीमा हो गया. चुनाव आने के कुछ समय पहले आईटीआई भवन की रंगाई-पुताई शुरू हुई है.

आईटीआई भवन में अभी तक खिड़कियां नहीं लगी हैं और न बिजली का काम पूरा हो पाया है. वर्कशॉप बनाने का काम भी अभी होना है.

जब यह आईटीआई बनना शुरू हुआ तो रंजीत साहनी में 12वीं पास किया था. उन्हें उम्मीद थी कि आईटीआई में पढ़ाई शुरू हो जाएगी तो एडमिशन ले लेंगे. आईटीआई की डिग्री मिल जाने के बाद उन्हें अपने जिले या जिले के बाहर कोई न कोई जाॅब मिल जाएगा लेकिन उनका यह सपना टूट गया.

साल दर साल बीतते गए लेकिन आईटीआई न बन सका न यहां पढ़ाई शुरू हो सकी. रंजीत साहनी आखिरकार मजदूरी करने तमिलनाडु चले गए. लॉकडाउन के बाद यह काम भी बंद हो गया और वे गांव लौट आए हैं.

गांव के कई अन्य नौजवान भी दिल्ली, पंजाब में मजदूरी करने गए हैं. इन्हीं में से एक अजित साहनी दिल्ली में प्लाई बनाने वाली कंपनी में काम करते हैं.

सात वर्ष से बन रहे इस आईटीआई ने गांव के कई युवाओं के सपने को तोड़ा है. इसी गांव के दुर्गेश साहनी को देवरिया जिले के भटनी में एक निजी आईटीआई में एडमिशन लेना पड़ा. वहां उन्हें दो वर्ष की पढ़ाई के लिए 30 हजार रुपये फीस देनी पड़ी. रोज आने-जाने का खर्च अलग से हुआ. इसी महीने के आखिर में उनकी परीक्षा होने वाली है.

दुर्गेश ने बताया कि जब यह आईटीआई बनना शुरू हुआ तब वे वे आठवीं कक्षा में पढ़ रहे थे. उन्होंने कहा, ‘उम्मीद थी कि जब तक वह इंटर की पढ़ाई पूरी करेंगे आईटीआई बन जाएगा और यहां एडमिशन ले लेंगे. गांव के पास आईटीआई होने पर दूर नहीं जाना पड़ता और बहुत कम फीस में पढ़ाई पूरी हो जाती.’

उन्होंने जोड़ा कि अब उनके मजदूर पिता ने बहुत कठिनाई से प्राइवेट आईटीआई में पढ़ाने के लिए फीस के लिए पैसे जुटाए.

दुर्गेश यदि सरकारी आईटीआई में पढ़ते तो उन्हें सिर्फ 40 रुपये मासिक की फीस देनी होती और उनके पूरे साल का खर्च दो हजार रुपये से भी कम होता लेकिन उन्हें निजी आईटीआई में पढ़ने के कारण 30 हजार रुपये खर्च करने पड़े.

दुर्गेश कहते हैं, ‘पढ़ाई पूरी होने के बाद वे नौकरी की तलाश शुरू करेंगे लेकिन इस सरकार में बेरोजगारी को जो आलम है उसमें नौकरी मिलना बहुत मुश्किल होगा.’

भवानी छापर का आईटीआई भले नहीं बन सका है लेकिन 2019 ये यहां एडमिशन दिए जा रहे हैं. एडमिशन लेने वाले छात्र पढ़ने के लिए यहां से 40 किलोमीटर दूर देवरिया स्थित आईटीआई में जाते हैं.

इस गांव से सिर्फ एक छात्र विपिन कुमार साहनी का 2019 में एडमिशन हुआ है. वे बेल्डिंग ट्रेड से पढ़ाई कर रहे हैं. वह गांव से रोज देवरिया आते-जाते हैं जिसमें 100 रुपये से अधिक खर्च होता है. विपिन कहते हैं कि यदि यहां पढ़ाई होती तो आने-जाने का खर्च व समय बचता.

देवरिया के भवानी छापर गांव में आईटीआई के शिलान्यास का पत्थर और निर्माणाधीन इमारत.

क्षेत्र के आईटीआई

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 31 लाख से अधिक आबादी वाले देवरिया जिले में कुल छह सरकारी आईटीआई हैं. इनमें भवानी छापर में सात वर्ष से बन रहा यह आईटीआई भी शामिल है.

इसके अलावा बरहज, देवरिया, बैतालपुर, गौरी बाजार और सलेमपुर में आईटीआई है. भवानी छापर आईटीआई के बाद वर्ष 2016 में बरहज में आईटीआई स्वीकृत किया गया जो अब बनकर तैयार हो गया है और वहां दो वर्ष पहले पढ़ाई भी शुरू हो गई है.

जिले में 28 प्राइवेट आईटीआई भी हैं. आईटीआई में 10वीं और 12वीं पास छात्र-छात्राओं को इंजीनियरिंग और नॉन इंजीनियरिंग ट्रेड में प्रशिक्षण दिया जाता है.

इस समय यूपी के सरकारी और निजी आईटीआई में 71 इंजीनियरिंग और 39 नॉन- इंजीनियरिंग कोर्स संचालित किए जा रहे हैं. भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद देवरिया जिले में किसी नए आईटीआई का निर्माण नहीं हुआ है.

देवरिया स्थित आईटीआई के प्रधानाचार्य और जिले के सभी छह आईटीआई के नोडल अधिकारी शोभनाथ ने बताया, ‘समय से बजट नहीं मिलने से भवानी छापर आईटीआई के बनने में विलंब हुआ है. दो वर्ष तक तो काम बंद रहा. अब बजट आया है तो काम फिर से शुरू हुआ है. वहां पर चार वर्कशॉप बनने हैं. इस आईटीआई का 2019 से एकेडमिक सेशन शुरू हो गया है. वह पर चार शिक्षकों की नियुक्ति हुई है. यहां एडमिशन लेने वाले छात्र-छात्राएं देवरिया आईटीआई में पढ़ते हैं.’

शोभनाथ के अनुसार इस क्षेत्र में छात्र-छात्राओं में आईटीआई शिक्षा के प्रति जागरूकता है. इस क्षेत्र के बच्चे अधिक संख्या में एडमिशन लेते हैं. इस आईटीआई के निर्माण से क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को बहुत फायदा होगा.

स्थानीय विधायक ने राज्य सरकार को ज़िम्मेदार बताया

भाटपार रानी विधानसभा क्षेत्र के सपा विधायक आशुतोष उपाध्याय कहते हैं, ‘भाजपा सरकार ने इस आईटीआई को जल्द बनाने के लिए जरूरी बजट ही नहीं दिया. अभी तक सिर्फ 70 फीसदी ही काम पूरा हुआ है. शिलान्यास के समय अखिलेश सरकार ने आईटीआई के लिए 50 फीसदी बजट दे दिया था लेकिन अगले पांच वर्ष में पैसा नहीं मिलने के कारण यह बन नहीं सका.’

उपाध्याय आरोप लगाते हैं कि विपक्षी विधायक होने के कारण भाजपा सरकार ने आईटीआई को जल्दी बनाने का काम नहीं किया. उनके क्षेत्र के महुआ बारी गांव में स्टेडियम बनाने का काम भी बहुत धीमा चल रहा है.

बिहार से सटे भाटपार रानी विधानसभा क्षेत्र से आशुतोष उपाध्याय दो बार विधायक रह चुके हैं. यह चुनाव भी वह सपा के टिकट पर लड़ रहे हैं. आशुतोष उपाध्याय के पिता कामेश्वर उपाध्याय इस क्षेत्र से पांच बार विधायक रह चुके हैं. वे अखिलेश सरकार में ग्राम विकास, खेलकूद, युवा कल्याण राज्यमंत्री रहे थे.

इस चुनाव में भाजपा ने सभाकुंवर और बसपा ने अजय कुशवाहा को यहां से प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस से केशव चंद्र यादव और भाकपा माले से श्रीराम कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं. इस विधानसभा क्षेत्र कोइरी (कुशवाहा) जाति के लोग सर्वाधिक हैं. ब्राह्मण, यादव, निषाद, राजभर जाति के लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी है.

देवरिया जिले में सात विधानसभा क्षेत्र हैं और यहां पर छठे चरण में तीन मार्च को मतदान है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस जिले में सात में से छह सीट भाजपा ने जीती थी. सिर्फ भाटपाररानी विधानसभा में सपा को विजय मिली थी.

क्या थे भाजपा के वादे

भाजपा ने 2017 के अपने चुनावी घोषणा पत्र में युवाओं के लिए अनेक सुनहरे वादे किए थे. उनके लोक संकल्प पत्र में कहा गया था कि ‘सपा-बसपा की 15 वर्ष के शासनकाल में प्रदेश बदहाली के कगार पर पहुंच गया है. नौजवान पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं. प्रदेश के युवाओं को शिक्षा एवं कौशल विकास में सपा सरकार पूर्णतया असफल सिद्ध हुई है. भाजपा सरकार प्रदेश केे युवाओं के लिए रोजगार के ऐसे अवसरों का निर्माण करेगी जिससे वे अपने गांव, कस्बे और शहर में जीवन के विकास की नई ऊंचाइयों को छू सकेंगे.’

लोक संकल्प पत्र में पांच वर्ष में 70 लाख रोजगार एवं स्वरोजगार के अवसर पैदा करने, 90 दिन में सभी रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने, हर घर के एक सदस्य को मुफ्त कौशल विकास प्रशिक्षण देने, प्रत्येक तहसील में आधुनिक कौशल विकास केंद्र की स्थापना करने (आईटी , बीपीओ, लॉजिस्टिक, हॉस्पिटैलिटी, पर्यटन पर केंद्रित) कॉलेज में एडमिशन लेने वाले युवाओं को लैपटॉप और एक जीबी इंटरनेट देने का वादा किया गया था.

यह भी वादा किया गया था कि 10 नए अंतरराष्ट्रीय स्तर के विश्वविद्यालय बनाए जाएंगे, हर जिले में एक इंजीनियरिंग या पॉलिटेक्निक कॉलेज की स्थापना की जाएगी और सभी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में मुफ्त वाई-फाई की सुविधा दी जाएगी.

हालांकि भाजपा सरकार इन वादों में से अधिकतर वादे पूरे नहीं कर पाई है. इस बार के चुनाव के लिए जारी लोक कल्याण संकल्प पत्र 2022 में योगी सरकार की रोजगार-शिक्षा के मुद्दे पर विफलताओं को ढकने की कोशिश की गई है.

पांच वर्ष में ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक भी विश्वविद्यालय’ नहीं बनवा पाने वाली योगी सरकार ने अपने इस घोषणा पत्र में कहा है कि हर मंडल में कम से कम एक विश्वविद्यालय बनाया जाएगा. इसके साथ ही 2500 करोड़ की लागत के साथ विश्वकर्मा तकनीकी उन्नयन कार्यक्रम शुरू किया जाएगा, युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए हर ब्लॉक में आईटीआई की स्थापना की जाएगी.

इसमें यह भी दावा किया गया है कि योगी सरकार ने पांच वर्ष में पांच लाख युवाओं को बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरी दी है, तीन लाख युवाओं को संविदा पर नौकरी दी है और 1.4 लाख सरकारी स्कूलों का कायाकल्प किया है और तीन करोड़ से अधिक रोजगार अथवा स्वरोजगार के अवसर पैदा किया है.

भवानी छापर गांव के युवा.

बेरोजगारी है मुद्दा

सरकारी नौकरी देने के दावों पर विपक्ष और युवा संगठन सवाल उठा रहे हैं. दस से अधिक छात्र-युवा संगठनों द्वारा बनाए गए छात्र युवा रोजगार अधिकार मोर्चा के संयोजक सुनील मौर्य करते हैं कि प्रदेश में 25 लाख से अधिक सरकारी पद रिक्त हैं.

उधर, समाजवादी पार्टी ने कहा है कि प्रदेश में 11 लाख सरकारी पद रिक्त है. सपा की सरकार बनने पर उसे भरा जाएगा.

कांग्रेस ने भी अपने भर्ती विधान में कहा है कि पिछले पांच वर्ष में बेरोजगारी पांच गुना बढ़ गई है. माध्यमिक शिक्षा स्तर पर तीन गुना, उच्च माध्यमिक शिक्षा स्तर पर चार गुना, स्नातक स्तर पर बेरोजगारी 21 प्रतिशत से बढ़कर 51 फीसदी तक और तकनीकी डिप्लोमा प्रमाण पत्र प्राप्त युवाओं में बेरोजगारी 13 फीसदी से बढ़ कर 66 फीसदी हो गई है. तकनीकी स्नातकों में बेरोजगारी 19 फीसदी से बढ़कर 46 फीसदी हो गई है.

कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में 20 लाख सरकारी नौकरी देने के साथ-साथ प्रदेश में आईटीआई की संख्या 3,302 से बढ़ाकर पांच हजार और पॉलिटेक्निक की संख्या 109 से बढ़ाकर 200 करने का वादा किया है.

भवानी छापर के रंजीत साहनी कहते हैं, ‘बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है. गांव के लड़के इंटर की पढ़ाई करने के बाद गांव छोड़ देते हैं. बहुत से लड़के दिल्ली, मुंबई, गुजरात मजूदरी करने चले गए हैं. रोजगार न मिलने की मजबूरी में शादी-ब्याह में 200-250 रुपये की मजदूरी में प्लेट साफ करने का काम कर रहे हैं. लॉकडाउन के बाद मेरे जैसे लोगों को यह काम भी छूट गया है. मेरे परिवार में छह लोग हैं. आप ही बताइए कि मैं कैसे उनका पेट भरूं?’

वे आगे कहते हैं, ‘हम लोगों के पास खेत भी नहीं हैं. कुछ लोग बटहिया (बंटाई) पर खेती कर रहे हैं. चुनाव आ गया है. हम तो चाहते हैं कि लोग बेरोजगारी, गरीबी पर वोट दें लेकिन गांव के लोग अक्सर जो पार्टी आगे चलती है, उसे ही वोट कर देते हैं. हमारे घर में छह वोट है. हमारे बैच का लड़का लोग तो अपने ही हिसाब से वोट करेगा.’

भवानी छापर गांव में सात वर्ष से अधूरा पड़ा आईटीआई, स्थानीय युवाओं के टूटते सपने और रोजगार के लिए पलायन इसकी गवाही हैं कि रोजगार-शिक्षा के क्षेत्र में योगी सरकार अपने वादों को पूरा करने में पूरी तरह विफल रही है. अब उसके वादों के नए पिटारे पर युवा कितना भरोसा जताते हैं, यह दस मार्च को ही साफ होगा.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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