एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने पत्र सूचना ब्यूरो की ओर से पत्रकारों की मान्यता के लिए जारी नए दिशानिर्देशों पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराते हुए कहा कि ये अस्पष्ट, मनमाने और कठोर निर्देश सरकारी मामलों की आलोचनात्मक और खोजी रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं.
नई दिल्ली: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (ईजीआई) ने पत्र सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की ओर से पत्रकारों की मान्यता के लिए जारी नए दिशानिर्देशों पर रविवार को अपनी आपत्तियां दर्ज कराते हुए कहा कि ये अस्पष्ट, मनमाने और कठोर निर्देश सरकारी मामलों की आलोचनात्मक और खोजी रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने के इरादे से जारी किए गए हैं.
पत्रकारों के इस संगठन ने इन दिशानिर्देशों को वापस लेने की मांग करते हुए पीआईबी से अपील की है कि वह संशोधित दिशानिर्देश के लिए सभी हितधारकों के साथ ‘सार्थक विमर्श’ करे.
बयान में कहा गया है, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया भारत के प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी किए गए नए केंद्रीय मीडिया मान्यता दिशानिर्देशों को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है, जो भारत सरकार के मुख्यालय तक पहुंचने और रिपोर्ट करने के लिए पत्रकारों को मान्यता देने के वास्ते नियम निर्धारित करता है.’
बयान में कहा गया है कि नए दिशानिर्देशों में कई नए प्रावधान शामिल हैं जिनके तहत एक पत्रकार की मान्यता ‘मनमाने और बगैर कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाए’ रद्द की जा सकती है.
बयान में कहा गया है, ‘यह बहुत ही विचित्र बात है कि केवल आरोपित होने पर भी मान्यता रद्द करने के नियम का उल्लेख किया गया है. यह तो और भी खराब बात है कि संबंधित पत्रकारों को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया जाएगा. बहुत ही आश्चर्य की बात है कि मान्यता रद्द करने के कारणों में ‘मानहानि’ को भी शामिल किया गया है.’
गिल्ड ने कहा है कि बहुत सारे प्रावधान ऐसे हैं जो ‘प्रतिबंधात्मक’ हैं. बयान में कहा गया है कि गिल्ड ने पीआईबी को पत्र लिखकर इन मुद्दों को विस्तारपूर्वक उसमें समाहित किया है.
गौरतलब है कि इस महीने की सात तारीख को घोषित केंद्रीय मीडिया मान्यता दिशानिर्देश-2022 के अनुसार, यदि कोई पत्रकार देश की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता के खिलाफ काम करता है या नैतिकता या अदालत की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिए उकसाने के संबंध में कार्य करता है, तो मान्यता वापस ली जाएगी या निलंबित कर दी जाएगी.
इन दिशानिर्देशों में कहा गया है कि ‘भारत सरकार केंद्रीय मीडिया मान्यता समिति (सीएमएसी) नामक एक समिति का गठन करेगी, जिसकी अध्यक्षता पत्र सूचना आयोग (पीआईबी) के प्रधान महानिदेशक करेंगे और इसमें भारत सरकार द्वारा नामित 25 सदस्य तक हो सकते हैं, जो इन दिशानिर्देशों के तहत निर्धारित कार्यों का निर्वहन करेंगे.’
सीएमएसी का कार्यकाल दो साल का होगा और वह तीन माह में एक बार या फिर जरूरत के मुताबिक बैठक करेगी.
दिशानिर्देशों में एक मान्यता प्राप्त पत्रकार की मान्यता निलंबित या रद्द करने के संबंध में दस क्लॉज दिए गए हैं. दिशानिर्देशों में यह भी उल्लेख है कि यदि कोई पत्रकार ‘गैर-पत्रकारीय गतिविधियों’ के लिए मान्यता का इस्तेमाल करते हुए पाया जाता/जाती हैं या उन पर कोई ‘गंभीर संज्ञेय अपराध’ दर्ज होता है तो उनकी मान्यता को निलंबित या रद्द किया जा सकता है.
मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश चिंता बढ़ाने वाले इसलिए हैं क्योंकि इनमें ऐसा प्रावधान है कि पत्रकार की मान्यता निलंबित करने या रद्द करने संबंधी फैसला सरकार द्वारा नामित अधिकारी के विवेक पर निर्भर होगा. वह तय करेगा कि भारत की संप्रभुता या अखंडता के लिए क्या अपमानजनक या नुकसानदेह है.
एडिटर्स गिल्ड बयान में आरोप लगाया गया है कि अस्पष्ट, मनमाना और कठोर क्लॉज़ सरकारी मामलों की किसी भी महत्वपूर्ण या खोजी रिपोर्टिंग को प्रतिबंधित करने के लिए शामिल किए गए हैं और नए दिशानिर्देश पत्रकारों के निकायों, मीडिया संगठन या कोई अन्य प्रासंगिक हितधारक के साथ किसी पूर्व परामर्श के बिना जारी किए गए हैं.
उपरोक्त बयान के अलावा ईजीआई ने पीआईबी के प्रमुख महानिदेशक (डीजी) जयदीप भटनागर को भी एक पत्र लिखा है जिसमें यह कहा गया है कि दिशानिर्देश पत्रकारों पर एकतरफा, कठिन और मनमानी शर्तें लगाते हैं.
पत्र में उपरोक्त मुद्दों को और अधिक विस्तार से पीआईबी के प्रमुख डीजी के साथ उठाया गया है. मान्यता रद्द करने की अनुमति देने वाले प्रावधान के संबंध में कहा है कि यदि एक पत्रकार पर ‘गंभीर, संज्ञेय अपराध का आरोप लगाया जाता है’ या यदि पत्रकार इस तरह से कार्य करता है जो ‘संप्रभुता और अखंडता के प्रतिकूल है’ तो उनकी मान्यता रद्द की जा सकती है.
पत्र में ऐसे कई कारणों का विवरण है जो इस प्रावधान को कानून की उचित प्रक्रिया का मनमाना और उल्लंघन करता हुआ बताते हैं.
इन कारणों में एक है किसी न्यायनिर्णायक प्राधिकारी की अनुपस्थिति, निवारण या अपील के लिए कोई तंत्र निर्धारित नहीं किया जाना. यह देखते हुए कि इस अपराध के लिए कानून में पहले ही इसका उपाय मौजूद है, इस तरह की सजा ‘असंगत और अनुचित’ है.
इसके अलावा क्योंकि निलंबन का आधार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों पर रोक लगाने का हैं, ऐसे में यदि यह निर्णय कार्यपालिका के किसी सदस्य द्वारा दिए जाते हैं तो वे शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत का उल्लंघन हैं.
इसी तरह, पत्र में पुलिस सत्यापन की आवश्यकता और गंभीर, संज्ञेय अपराधों के आरोपित पत्रकारों की मान्यता को रद्द करने, उन्हें मनमाना, अस्पष्ट और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया है.
पत्र स्वतंत्र पत्रकारों को मान्यता देने वाले प्रावधान पर भी बात करता है, जहां डिजिटल/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकारों को मान्यता के लिए बीते छह महीनों से उनके द्वारा की गई ख़बरों के कम से कम 20 लिंक प्रस्तुत करने की बात कही गई है, जो ‘असामान्य रूप से अधिक’ है.
अंत में, पत्र में इस तथ्य पर रोष जताया गया है कि पत्रकारों को सीधे प्रभावित करने के बावजूद मीडिया बिरादरी के संबंधित हितधारकों से परामर्श के बिना नए दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार किया गया है.
मालूम हो कि इससे पहले विभिन्न पत्रकार संगठनों ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर को पत्र लिखकर पीआईबी द्वारा मीडियाकर्मियों की मान्यता के लिए हाल ही में जारी किए गए नए दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताई थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)