कर्नाटक के उडुपी ज़िले में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में बीते साल दिसंबर में ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के लिए कुछ लड़कियों को कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी. धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया था.
बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने ‘हिजाब’ मामले में शुक्रवार को अपनी 11 दिनों की सुनवाई पूरी कर ली और अपना आदेश सुरक्षित रख लिया.
मुख्य न्यायाधीश ऋतुराज अवस्थी ने कहा, ‘सुनवाई पूरी हुई, आदेश सुरक्षित रखा जाता है.’ इसके साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ताओं को लिखित दलीलें (यदि कोई हो) देने को भी कहा.
मुख्य न्यायाधीश अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम काजी की पीठ का गठन नौ फरवरी को किया गया था और इसने संबंधित याचिकाओं की रोजाना आधार पर सुनवाई की.
कुछ लड़कियों ने याचिकाओं में कहा था कि जिन शैक्षणिक संस्थानों में ‘यूनिफॉर्म’ लागू हैं, उनमें उन्हें हिजाब पहनकर जाने की अनुमति दी जाए.
उडुपी में एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में गत दिसंबर में ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के लिए कुछ लड़कियों को कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी.
धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया और हिंसा हुई.
हिजाब के कारण प्रवेश नहीं पाने वाली छह लड़कियां प्रवेश पर प्रतिबंध के खिलाफ कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीपीआई) की ओर से एक जनवरी को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुई थीं. इसके बाद हिंदू छात्रों ने विरोधस्वरूप केसरिया शॉल रखना शुरू कर दिया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, अंतिम दिन सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील यूसुफ मुछला, रविवर्मा कुमार और मोहम्मद ताहिर द्वारा दलीलें (Rebuttal Arguments) सुनीं.
अदालत ने एक जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें पत्रकारों को शैक्षणिक संस्थानों के पास छात्रों और शिक्षकों का पीछा करने से रोकने की मांग की गई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील एस. बालन ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम लड़कियों को मीडिया और शिक्षा अधिकारियों द्वारा स्कूल और कॉलेज परिसरों के बाहर हेडस्कार्फ हटाने के लिए मजबूर करके परेशान किया जा रहा है.
उन्होंने मीडिया को छात्रों की निजता में घुसपैठ करने से रोकने के लिए उनका पीछा करने और स्कूल-कॉलेज के अधिकारियों को शैक्षणिक संस्थानों के प्रवेश द्वार पर हिजाब या बुर्का हटाने के लिए मजबूर करने से रोकने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की थी.
वकील ने तर्क दिया, ‘छात्राओं को अपमानित किया गया है’ और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के इस कार्य को उन्होंने ‘बाल शोषण’ कहा.
दो सप्ताह तक चली सुनवाई में मुस्लिम लड़कियों के वकीलों ने तर्क दिया कि कक्षाओं में हिजाब पहनने का अधिकार धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा था. उन्होंने कर्नाटक शिक्षा विभाग के 5 फरवरी के आदेश की आलोचना भी की जिसमें कहा गया था कि संस्थानों में हेडस्कार्फ को प्रतिबंधित किया जा सकता है.
5 फरवरी के आदेश को प्रशासनिक व्यवहार में अस्वीकार्य करार दिया गया था.
याचिकाकर्ताओं की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि कॉलेज समितियों के पास प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों में ड्रेस कोड निर्धारित करने की शक्ति नहीं है, क्योंकि वे वैधानिक निकाय नहीं हैं.
सुनवाई के दौरान कर्नाटक के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने कहा कि सरकार का आदेश नुकसानदायक नहीं था और धार्मिक पोशाक पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश नहीं दिया गया था, बल्कि इसे संस्थानों के विवेक पर छोड़ दिया था.
हालांकि, उन्होंने ने स्वीकार किया कि आदेश के कुछ हिस्से अनावश्यक हो सकते हैं.
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हिजाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और यह धर्म की स्वतंत्रता की श्रेणी में नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की श्रेणी में आता है, जिसे अनुशासन के लिए रोका जा सकता है.
अपने अंतरिम आदेश में पीठ ने सरकार से कहा था कि वह उन शैक्षणिक संस्थानों को फिर से खोले, जो आंदोलन से प्रभावित थे और अदालत द्वारा अंतिम आदेश जारी किए जाने तक विद्यार्थियों को धार्मिक प्रतीक वाले कपड़े पहनने से रोक दिया गया था.
गौरतलब है कि हिजाब का विवाद कर्नाटक के उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में सबसे पहले तब शुरू हुआ था, जब छह लड़कियां पिछले साल दिसंबर में हिजाब पहनकर कक्षा में आईं और उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया.
उनके हिजाब पहनने के जवाब में कॉलेज में हिंदू विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर आने लगे.
इस विवाद के बीच इन छह में से एक छात्रा ने कर्नाटक हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करके कक्षा के भीतर हिजाब पहनने का अधिकार दिए जाने का अनुरोध किया था.
याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि हिजाब (सिर पर दुपट्टा) पहनना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के तहत एक मौलिक अधिकार है और यह इस्लाम की एक अनिवार्य प्रथा है.
हिजाब के मुद्दे पर सुनवाई कर रही कर्नाटक हाईकोर्ट की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने 10 फरवरी को मामले का निपटारा होने तक छात्रों से शैक्षणिक संस्थानों के परिसर में धार्मिक कपड़े पहनने पर जोर नहीं देने के लिए कहा था. इस फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
इस पर तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को कहा था कि वह प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेगा और कर्नाटक हाईकोर्ट के उस निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर ‘उचित समय’ पर विचार करेगा, जिसमें विद्यार्थियों से शैक्षणिक संस्थानों में किसी प्रकार के धार्मिक कपड़े नहीं पहनने के लिए कहा गया है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)