टीवी एंकर ने धर्मनिरपेक्षता को बीमारी बताया तो सेना ने इफ़्तार आयोजन का ट्विटर पोस्ट हटा दिया

रक्षा मंत्रालय के जनसंपर्क अधिकारी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सेना द्वारा आयोजित इफ़्तार आयोजन की कुछ तस्वीरें पोस्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की परंपरा बताया गया था, जिस पर निशाना साधते हुए सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि धर्मनिरपक्षता की बीमारी भारतीय सेना में भी घुस गई है. इसके तुरंत बाद ही पीआरओ ने ट्वीट डिलीट कर दिया.

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रक्षा मंत्रालय के जनसंपर्क अधिकारी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सेना द्वारा आयोजित इफ़्तार आयोजन की कुछ तस्वीरें पोस्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की परंपरा बताया गया था, जिस पर निशाना साधते हुए सुदर्शन न्यूज़ के प्रमुख सुरेश चव्हाणके ने कहा था कि धर्मनिरपक्षता की बीमारी भारतीय सेना में भी घुस गई है. इसके तुरंत बाद ही पीआरओ ने ट्वीट डिलीट कर दिया.

सुरेश चव्हाणके. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: भारतीय सेना में भी उग्र हिंदुत्व का मुस्लिम विरोधी एजेंडा थोपने का उदाहरण तब देखा गया, जब सेना के जनसंपर्क अधिकारी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इसके द्वारा आयोजित एक इफ्तार कार्यक्रम के बारे में किया गया ट्वीट डिलीट कर दिया गया. इसे पोस्ट करने की आलोचना एक दक्षिणपंथी टीवी एंकर ने की थी.

21 अप्रैल को जम्मू में रक्षा मंत्रालय के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद के ट्विटर हैंडल से डोडा जिले में सेना द्वारा आयोजित इफ्तार की कुछ फोटो पोस्ट की गई थीं.

तस्वीरों में इफ्तार कार्यक्रम, सेना की राष्ट्रीय राइफल्स के डेल्टा फोर्स के जनरल ऑफिसर कमांडिंग, स्थानीय मुसलमानों के साथ बातचीत करते हुए और एक वर्दीधारी व्यक्ति को नागरिकों के साथ नमाज अदा करते हुए दिखाया गया था.

साथ में अंग्रेजी भाषा में लिखा था, ‘धर्मनिरपेक्षता की परंपराओं को जीवित रखते हुए, भारतीय सेना द्वारा डोडा जिले के अरनोरा में एक इफ्तार का आयोजन किया गया था.’

अगले दिन ट्वीट पर निशाना साधते हुए सुदर्शन न्यूज के प्रमुख सुरेश चव्हाणके ने हिंदी में लिखा, ‘अब यह बीमारी भारतीय सेना में भी घुस गई है. दुखद…’

डिलीट कर दिए गए ट्वीट और उस पर व्यक्त की गई प्रतिक्रिया का स्क्रीनशॉट.

चव्हाणके के ट्वीट के तुरंत बाद ही पीआरओ ने ट्वीट डिलीट कर दिया. जहां चव्हाणके की इस टिप्पणी पर सेना या रक्षा पीआरओ की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, वहीं इंडियन एक्सप्रेस द्वारा पीआरओ रक्षा (जम्मू) लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र आनंद ने संपर्क किए जाने पर ट्वीट को हटाने पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया.

कई ट्विटर यूजर ने पीआरओ के इस कदम पर बात की, पत्रकार मान अमन सिंह ने कहा, ‘धर्मनिरपेक्षता का अंतिम गढ़ लड़खड़ा रहा है.’

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उत्तरी कमान के पूर्व जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उस ट्वीट का बचाव करने में विफलता और फिर आलोचना के कारण इसे हटाना ‘कायरता’ था.

उन्होंने कहा, ‘संबंधित पीआरओ और सेना में रमजान के दौरान इफ्तार आयोजित करने की परंपरा की रक्षा करने का साहस होना चाहिए था. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. यह स्थानीय आबादी का दिल और दिमाग जीतने की सेना की नीति का हिस्सा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हम स्थानीय आबादी के लिए भी आर्मी गुडविल स्कूल चलाते हैं और ये सभी उपाय स्थानीय आबादी को साथ ले जाने के लिए हैं, क्योंकि हम एक विदेश प्रायोजित आतंकवाद से लड़ते हैं और स्थानीय लोग इन प्रयासों की सराहना करते हैं. किसी भी मामले में जम्मू कश्मीर में इफ्तार आयोजित करने में कोई नई बात नहीं है और यह कई वर्षों से चलन में है.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिमी कमान के पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल तेज सप्रू (सेवानिवृत्त) ने ट्वीट को हटाने पर अपनी निराशा व्यक्त की है. उन्होंने नगरोटा कोर की कमान संभाली है, जिसके तहत डोडा आता है.

उन्होंने कहा, ‘ट्वीट में कुछ भी गलत नहीं था. इसका जोरदार बचाव किया जाना चाहिए था. सेना आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में इफ्तार का आयोजन करती है, क्योंकि स्थानीय आबादी तक पहुंचना आतंकवादियों से लड़ने का एक अभिन्न अंग है और जम्मू कश्मीर के इस हिस्से के मुसलमान आपसे या मुझसे ज्यादा भारतीय हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘सेना किसी अन्य धर्म के लिए भी यही काम करेगी यदि उस क्षेत्र में संघर्ष होता और जिससे वह निपट रही होती. वास्तव में हम ऐसा उत्तर पूर्व के राज्यों में भी ईसाई आबादी तक पहुंच बनाने के लिए करते हैं. इसका धर्म या राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और यह विशुद्ध रूप से लोगों को अपने साथ लेकर आतंकवाद से लड़ने का एक साधन है.’

चव्हाणके की आलोचना पर प्रतिक्रिया देते हुए सेना के पूर्व मेजर जनरल यश मोर ने ट्वीट किया, ‘भारतीय सेना अंतरधार्मिक सद्भाव में सबसे आगे रही है. हम अधिकारी के रूप में इस तथ्य पर गर्व करते हैं कि हमारा कोई धर्म नहीं है. हम उस सैन्य दल का धर्म अपना लेते हैं, जिसका हमें आदेश दिया जाता है.’

चव्हाणके अपनी सांप्रदायिक बयानबाजी और मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषणों के लिए कुख्यात हैं. हाल-फिलहाल वह पिछले साल दिसंबर में हिंदू युवा वाहिनी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में इस तरह की ही एक टिप्पणी करने के चलते एक जनहित याचिका (पीआईएल) में सुनवाई का सामना कर रहे हैं. तब उन्होंने भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए हिंदुओं से आह्वान किया था कि लड़ो, मरो, मारो.

हाल ही में चव्हाणके ने दिल्ली के बुराड़ी में आयोजित हिंदू महापंचायत में ‘मुख्य अतिथि’ के रूप में वक्तव्य दिया था, जहां पांच पत्रकारों (जिनमें चार मुसलमान थे) पर हमला हुआ था. घटना के बाद चव्हाणके का नाम दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में था.

इस एफआईआर में विवादास्पद कट्टरपंथी धर्मगुरु यति नरसिंहानंद और महापंचायत के आयोजक प्रीत सिंह का नाम भी शामिल है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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